गया. महापुरुष किसी जाति, समूह, वर्ग, समुदाय का नहीं होता, वह सार्वकालिक, सार्वभौमिक व राष्ट्र का गौरव होता है. वह समाज और देश का होता है और जीने की दृष्टि देता है. देवता स्वर्ग से नहीं आते, जो दाता हैं, वही देवता हैं, वही विधाता है.| हमें बिरसा मुंडा की जीवन दृष्टि को समझना होगा और खुद से ऊपर उठकर अपने समाज अपने राष्ट्र के बारे में भी सोचना होगा. ये बातें दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो कामेश्वर नाथ सिंह ने बिरसा मुंडा आदिवासी अध्ययन केंद्र के द्वारा जनजातीय गौरव दिवस-2024 पखवारे के अंतर्गत आयोजित विशेष व्याख्यान के मुख्य अतिथि के रूप में कही. कुलपति ने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा उस वक्त ही उपनिवेशवाद से पनपी आगामी समस्याओं को भांप चुके थे और उन्होंने इसको समाप्त करने के लिए काफी संघर्ष किया.
14 से 26 नवंबर तक कार्यक्रम
पीआरओ मो मुदस्सीर आलम ने बताया कि सीयूएसबी में 14 नवंबर से 26 नवंबर 2024 तक जनजातीय गौरव दिवस- 2024 पखवाड़ा के अंतर्गत विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए आदिवासी जीवन संस्कृति को समझने के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जायेगा. कार्यक्रम में छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो पवन मिश्र, कुलानुशासक प्रो प्रणव कुमार व विभिन्न विभागों के प्रोफेसर तथा शोधार्थी शामिल थे. डॉ अनुज लुगुन अपने वक्तव्य में बिरसा मुंडा के योगदान व महत्व को समझाया. डॉ सुधांशु कुमार झा ने स्वाधीनता संघर्ष में आदिवासी समाज की भूमिका विषय पर जनजातियों के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि यह केवल जनजातीय गौरव दिवस नहीं बल्कि भारतीय गौरव दिवस है. आदिवासी आन्दोलन राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा है जिसके नायक बिरसा मुंडा हैं. प्रो सुरेश चन्द्र नें आदिवासी जीवन संस्कृति और इतिहास विषय पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि इतिहास जैसा है वैसा ही हमारे सामने आना चाहिये. कहा कि जल, जंगल, जमीन की लड़ाई हम सब की लड़ाई होनी चाहिए.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है