भागलपुर जिले के बाढ़ प्रभावित इलाकों से बाढ़ का पानी काफी पहले निकल चुका है, लेकिन 20 पंचायतों के 2000 किसानों के 1000 हेक्टेयर खेतों में अभी भी भारी जलजमाव है. निकट भविष्य में पानी घटने की कोई संभावना नहीं दिख रही है. ये पंचायतें सबौर, कहलगांव, गोराडीह और सन्हौला प्रखंड क्षेत्र के गंगा चौर इलाके में हैं. नतीजतन किसान चना, मसूर, मटर, सरसों, मक्का आदि की फसल नहीं लगा पा रहे हैं. इन किसानों के सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. उनका कहना है कि अगर जल्द पानी नहीं निकला तो वे दूसरों के खेतों में मजदूरी करने को मजबूर हो जाएंगे. कई किसानों ने जिला प्रशासन को आत्मदाह की चेतावनी भी दी है.
जमे पानी में मछली पालन भी नहीं किया जा सकता
किसानों का कहना है कि खेती के अलावा उनके पास रोजगार का कोई दूसरा साधन नहीं है. प्रभावित किसानों की मानें तो यहां मछली पालन नहीं हो सकता. जलभराव के कारण खेतों का सीमांकन नहीं हो सकता, ऐसे में मछली पालन कौन और कैसे कर पाएगा. मछली पालन में विवाद की स्थिति उत्पन्न होगी और खून-खराबे की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
ईंट भट्ठे के लिए बना दी सड़क और पानी निकासी को कर दिया बंद
लैलख से लेकर पक्कीसराय तक ईंट भट्टा के कारण हाल के दिनों में सड़क और बांध बना दिया गया है. इस कारण चौर इलाकों का पानी नहीं निकल पाता है. पिछले तीन साल से यह समस्या शुरू हुई है. इस बार भी भयावह स्थिति बन गयी है. सबौर और गोराडीह क्षेत्र में फोरलेन निर्माण के कारण पानी ठहर गया है.
किसानों ने दर्द किया बयां, दी आत्मदाह की चेतावनी
सिमरो के किसान वासुदेव सिंह, चंद्रशेखर सिंह, रमेश मंडल, अनिल सिंह, कृष्णानंद सिंह, राजेंद्र मंडल, साजन मंडल, हीरालाल मंडल, प्रेमप्रकाश सिंह, प्रशस्तडीह के उप मुखिया राकेश सिंह, सालपुर के विलास मंडल, किरो यादव, रामदास यादव आदि किसानों ने अपना दर्द बयां किया. इन किसानों ने जिला प्रशासन को आत्मदाह की चेतावनी भी दी है. इन किसानों ने कहा कि यदि जल्द जल निकासी नहीं हुई तो आत्मदाह के लिए मजबूर होंगे.
प्रभावित पंचायत और गांव
- सबौर प्रखंड की खनकित्ता, राजपुर, फतेहपुर मौजा, रजंदीपुर, कुरपट, चंदेरी, बैजलपुर.
- गोराडीह प्रखंड की घीया, रायपुरा, अगरपुर, सालपुर.
- सन्हौला प्रखंड की तारड़, सोनूडीह.
- कहलगांव प्रखंड की प्रशस्तडीह, कोदवार, सिमरो, उदयरामपुर, गोपालपुर आदि.
नहीं मिल पा रहा है सस्ता चना, सरसों का साग और अगैती मटर
किसान कृष्णानंद सिंह कहते हैं कि गंगा का पानी उतरने के बाद यहां की जमीन बिना खाद के उपजाऊ बनी रहट थी. न सिंचाई की जरूरत पड़ती थी और न खाद की. उत्पादन भी उम्मीद से ज्यादा होता था. आमतौर पर दुर्गा पूजा से पहले पानी उतर जाता था और रबी की अगेती फसल की खेती शुरू हो जाती थी. जिससे इलाके में सस्ता चना, सरसों का साग और अगेती मटर बाजार में आ जाते थे. अगेती मटर और साग की आपूर्ति गोड्डा, दुमका, बांका आदि जिलों में होती थी.
हाई कोर्ट में किसानों ने पीआइएल किया था दायर
कृष्णानंद सिंह ने बताया कि 2022 में पहली बार यहां यह समस्या आई थी. प्रभावित किसानों ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. कोर्ट के निर्देश के बाद कमिश्नर वंदना किनी ने 72 घंटे में समस्या का समाधान करवा दिया था. उनके निर्देश के बाद खनन विभाग के अधिकारियों ने पानी की निकासी करवाई और फिर रबी की फसल की खेती शुरू हुई थी.
क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि
फोरलेन का बांध बनने और ईंट भट्टा के कारण इलाके के खेतों में पानी भरा हुआ है. खेती नहीं हो पा रही है. जिला प्रशासन को अवगत कराया गया है. एक बार फिर मिलकर समस्या के समाधान की मांग करेंगे.
जयप्रकाश मंडल, सदस्य, जिला परिषद सदस्य, सबौर
पिछले तीन सालों से समस्या बढ़ गयी है. कई किसानों के पास एक बीघा भी खेती नहीं बची है. ऐसे में खाने के लाले पड़े हैं. लोग बाहर जाने को विवश हो गये हैं.
वासुदेव सिंह, बुजुर्ग किसान
जिलाधिकारी से मिलकर समस्या के समाधान की मांग करेंगे. पीड़ित किसानों को एकजुट किया जा रहा है. इससे पहले प्रखंड विकास पदाधिकारी को मामले की जानकारी दे चुके हैं.
राकेश सिंह, उप मुखिया, प्रशस्तडीह पंचायत, कहलगांव
यदि समाधान नहीं कराया गया, तो आत्मदाह को विवश होंगे. अभी पानी सूखने का इंतजार कर रहे हैं कि किसी तरह खेती शुरू हो जाये और भविष्य संवर सके.
राजेंद्र मंडल, किसान, सिमरो
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