दुर्गापुर.
भारतीय सभ्यता में प्राचीन पत्थरों से बने धार्मिक स्थल एवं मूर्तियां आज भी अपनी गरिमा को दर्शाती हैं. प्राचीन पत्थरों से बनी स्मृतियों को देखने के लिए देश-विदेशों से सैलानी ऐसे स्थलों पर जाना पसंद करते हैं. ऐसी ही एक प्राचीन पत्थर से बनी मूर्ति आजकल दुर्गापुर में चर्चा का केंद्र बनी हुई है. यह मूर्ति शहर से लगे कमलपुर स्थित ओम्स ऑर्गेनिक गार्डेन में स्थापित की गयी है. मातृत्व प्रेम को दर्शाती इस मूर्ति के जरिये माता की गोद में शिशु को स्तनपान करते दर्शाया गया है. 10 फीट की यह मूर्ति ओड़िशा में पाये जानेवाले दुर्लभ लाल बलुई पत्थर से बनी है. भारतीय संस्कृति में लाल बलुई पत्थर का अहम स्थान है. इसी पत्थर से ओड़िशा में पवित्र कोणार्क सूर्य मंदिर और विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथपुरी के मंदिर बनाये गये थे. इसकी खासियत यह है कि यह पत्थर किसी भी जलवायु अथवा, रासायनिक पदार्थ से क्षरित नहीं होता. सूत्रों की मानें, तो लाल बलुई पत्थर भारतीय इतिहास में 40 करोड़ वर्ष पुराना है. इस पत्थर का स्पर्श अथवा, दर्शन करना शुभ फलदायी माना जाता है. इस पत्थर से मातृत्व की मूर्ति गढ़ने का काम ओड़िशा के पद्मश्री मूर्तिकार प्रभाकर महाराणा ने किया है. उन्होंने एक वर्ष तक पहाड़ को काट कर लंबी कारीगरी के जरिये पत्थर की 10 फुट की प्रतिमा गढ़ी है.ओम्स ऑर्गेनिक गार्डेन के संरक्षक रामसेवक शाह ने बताया कि दुर्लभ पत्थर से बनी मूर्ति दुर्गापुर में पहुंच चुकी है. इसका निर्माण भुवनेश्वर में किया गया था. प्रतिमा की वजन 600 किलोग्राम होने के कारण इसे ओड़िशा से दुर्गापुर लाने में काफी दिक्कतें हुई थीं. लाल बलुई पत्थर से बनी मूर्ति को गार्डेन के ऊंचे पहाड़ पर विराजित किया गया है. उन्नत तकनीक का उपयोग कर बेस्ट लाइटिंग के साथ गोद में बैठ स्तनपान कर रहा नन्हा शिशु देखते ही बन रहा है. मूर्ति को देखने के लिए आसपास के शहरों से लोगों की भीड़ उमड़ रही है. मूर्ति लगाने का उद्देश्य प्राचीन पत्थर के महत्व से लोगों को अवगत कराना और गार्डेन को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करना है.
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