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BOKARO NEWS : इंटक में कई बार आये उतार-चढ़ाव, विवाद भी हुए

BOKARO NEWS : इंटक में कई बार उतार-चढ़ाव का दौर आया. कई बार विवाद भी हुए.

बेरमो. तीन करोड़ 33 लाख सदस्यता का दावा करने वाली इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) में कई बार उतार-चढ़ाव का दौर आया. कई बार विवाद भी हुए. कांति मेहता से लेकर बीपी सिन्हा के तक के समय भी मतभेद हुए, लेकिन संगठन को बिखरने नहीं दिया गया. झारखंड गठन के समय रांची में वर्ष 2002 के इंटक राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान चंद्रशेखर दुबे, स्व राजेंद्र प्रसाद सिंह व डॉ जी संजीवा रेड्डी के साथ विवाद शुरू हुआ था. 2003-2004 में विवाद गहराता देख सोनिया गांधी के हस्तक्षेप के बाद प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में सात सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया. इस कमेटी में कई वरिष्ठ कांग्रेसी को रखा गया था. कहने को तो विवाद सलट गया, लेकिन अंदर ही अंदर चिंगारी सुलग रही थी. विधायक के बाद सांसद बनते ही चंद्रशेखर दुबे राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ के महामंत्री बने. सांसद रहते हुए फिर से उनके समर्थकों ने अलग होने की हवा दी. इस बार पूर्व मंत्री स्व ओपी लाल को आगे कर अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव लाया गया, जिस पर विवाद हो गया. विवाद काफी गहरा गया. धनबाद के माइकल जॉन भवन में जमकर मारपीट दोनों गुट में हुई. राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ दो भाग में बंट गया. अलग-अलग यूनियन संचालित होने लगी. ओपी लाल ने फिर से 2010 में राजेंद्र सिंह से हाथ मिला लिया, लेकिन ददई दुबे नहीं मिले. ददई दुबे खेमे के ही ललन चौबे अलग होकर अलग से यूनियन चलाने लगे. निधन से एक-डेढ़ साल पहले राजेंद्र प्रसाद सिंह ने खुद पहल कर ददई दुबे को इंटक अध्यक्ष संजीवा रेड्डी से मिला कर विवाद सलटाने का भी प्रयास किया था, लेकिन बाद में ददई दुबे ने यह कह कर फिर विवाद खडा कर दिया कि संजीवा रेड्डी इंटक को एचएमएस के साथ विलय करना चाहते हैं. धीरे-धीरे विवाद इतना गहरा गया कि इंटक के चार गुट हो गये तथा सभी न्यायालय के दरवाजे तक पहुंच गये. फिलहाल वर्ष 2016 से इंटक कोल इंडिया की सभी कमेटियों से बाहर है और कोर्ट में मामला विचाराधीन है. 1984 में केंद्रीय इंटक के अध्यक्ष बने थे बिंदेश्वरी दुबे बेरमो कोयलांचल के मजदूर नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री बिंदेश्वरी दुबे 1984 में राष्ट्रीय इंटक के अध्यक्ष बने थे. धनबाद के कोयला नगर में आयोजित इस अधिवेशन में प्रधानमंत्री स्व इंदिरा गांधी व बिहार के सीएम डॉ जगरनाथ मिश्रा आये थे. बिंदेश्वरी दुबे कई वर्षों तक बिहार इंटक के अध्यक्ष तथा राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ के अध्यक्ष रहे. इसके अलावा बेरमो विस से 1962, 1967, 1972, 1979 में विधायक भी रहे थे. 1985 से 1988 तक बिहार के मुख्यमंत्री के अलावा केंद्र की राजीव गांधी सरकार में केंद्रीय श्रम व कानून मंत्री रहे. बिंदेश्वरी दुबे के बाद संसदीय व श्रमिक राजनीति में राजेंद्र प्रसाद सिंह ने भी लंबा सफर तय किया. हालांकि वह दिल्ली की संसदीय राजनीति तक नहीं पहुंचे पाये. केरल इंटक के अध्यक्ष चंद्रशेखरण के अलावा इंटक के अन्य दो नेता रघु रमैया व आरसी खुटिया की भी इंटक में गहरी पैठ रही है. बिंदेश्वरी दुबे व राजेंद्र सिंह ने दिल्ली तक पहुंचाया था बेरमो का नाम बेरमो कोयलांचल क्षेत्र का नाम इस क्षेत्र के कांग्रेस व ट्रेड यूनियन इंटक के दो दिग्गज नेता स्व बिंदेश्वरी दुबे एवं स्व राजेंद्र सिंह ने दिल्ली की राजनीतिक गलियारों तक पहुंचाया था. बेरमो में 50 के दशक से बिंदेश्वरी दुबे मजदूर राजनीति में सक्रिय थे. 1970 के बाद कोल सेक्टर में राष्ट्रीयकरण की सुगबुगाहट शुरू हो गयी थी. देखते-देखते कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण हो गया. श्री दुबे के सान्निध्य में राजेंद्र सिंह ने इंटक में प्रवेश किया और ब्रांच सेक्रेटरी एरिया सेक्रेटरी बने. 1990 में इंटक के महामंत्री बन गये. 1990 के बाद से वह लगातार महामंत्री रहे. कहते हैं इंटक के बीपी सिन्हा और बिंदेश्वरी दुबे के बीच जब वर्चस्व की जोर आजमाइश चल रही थी, तभी राजेंद्र सिंह इंटक में सक्रिय हुए थे और बिंदेश्वरी दुबे के खास विश्वासपात्र थे. बीपी सिन्हा व बिंदेश्वरी दुबे के बीच विवाद सलटाने का भी काम करते थे. बिंदेश्वरी दुबे के निधन के बाद राजेंद्र सिंह 1990 के आसपास राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ पर भी काबिज हो गये. 11-13 नवंबर 2019 में कानपुर में आयोजित इंटक के राष्ट्रीय काउंसिल की बैठक में अंतिम बार राजेंद्र सिंह शामिल हुए थे. इंटक का राष्ट्रीय अधिवेशन 2015 में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में हुआ था. इसमें भाषण के दौरान राजेंद्र सिंह को ब्रेन स्ट्रोक हुआ था. एसक्यू जामा के बाद बेरमो विधायक व राष्ट्रीय खान मजदूर फेडरेशन के अध्यक्ष कुमार जयमंगल हैं. चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे सामानांतर इंटक चलाते हैं. इसके अलावा केके तिवारी भी सामानांतर इंटक चलाते हैं.

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