जंगल एक औषधालय है और यहां उगने वाले सभी पेड़ पौधे विभिन्न बीमारियों की दवा के रूप में इस्तेमाल होते हैं. हम जागरूक व प्रशिक्षित होकर वानस्पतिक लाभ ले सकते हैं. वर्तमान में नित नयी बीमारियों के अल्प खर्च में इलाज व विभिन्न वानस्पतिक पेड़-पौधे के औषधीय गुण को एक वनरक्षी जन-जन तक पहुंचाने में लगे हुए हैं. हम बात कर रहे हैं गांडेय के वनरक्षी विष्णु किस्कू का, जो जंगलों में उगे विभिन्न पेड़-पौधों के विभिन्न बीमारियों में इलाज से संबंधित जानकारी लोगों को दे रहे हैं. इतना ही नहीं उन्होंने गांडेय में एक औषधीय पार्क का निर्माण भी शुरू किया है, जहां वह खुद विसिन्न वानस्पतिक पौधे लगाकर पारंपरिक धरोहर को सहेजने में जुटे हुए हैं.
100 वानस्पतिक पौधे लगाये
वनरक्षी विष्णु किस्कू होड़ोपैथी चिकित्सक डॉ पीपी हेंब्रम के सानिध्य में जंगल-झाड़ में उगने वाले वानस्पितक पेड़ पौधों के औषधीय गुण व उपयोग की सीख ली है. इसके बाद लोगों को भी होड़ोपैथिक पद्धति से बीमारियों का इलाज करने व उपयोग आने वाले पेड़ पौधों के प्रति जागरूक कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि वर्तमान में उन्होंने करीब सौ वानस्पतिक का पौधरोपण किया है. कहा कि उसने डॉ पीपी हेंब्रम की होड़ोपैथी पद्धति को को जन-जन तक पहुंचाने की दिशा में काम शुरू किया. बताया कि वन संपदा सिर्फ जंगल तक सीमिति नहीं है. वन एक औषधालय होता है. इस निहित वनों का संरक्षण जरूरी है. विभिन्न गांवों में वन सुरक्षा समिति का गठन कर महिलाओं को सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी है. इसका लाभ भी सभी को मिल रहा है.हमारा प्रयास लोग स्वयं करें अपना उपचार : डॉ पीपी हेंब्रम
होड़ोपैथी चिकित्सक डॉ पीपी हेंब्रम ने कहा कि हमारा प्रयास आम लोगों को होड़ोपैथी पद्धति व परंपरागत तरीके से विभिन्न बीमारियों के इलाज के प्रति जागरूक करना है. वन एवं वनस्पतियों की गहरी जानकारी से स्वत: लोग अपनी चिकित्सा कर सकते हैं. आदिवासियों की प्राचीनतम समृद्ध चिकित्सा ज्ञान का प्रचार प्रसार और संरक्षण हो इस दिशा में वह वर्षों से कार्य कर रहे हैं. इसमें विष्णु को सहयोग उन्हें मिल रहा है.
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