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20 रुपये से शुरू हुआ सफर, आज दुनियाभर के म्यूजियम की शोभा बढ़ा रही बिमला दत्त की पेंटिंग्स

Mithila Painting: मिथिला पेंटिंग की पुरानी परंपरा और संस्कृति को सहेजने वाली बिमला दत्त को राज्य पुरस्कार के साथ-साथ कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. बिमला दत्ता की पहली पेंटिंग 20 रुपये में बिकी थी. आज उनकी पेंटिंग्स दुनिया भर के संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रही हैं. पेश हैं उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश...

Mithila Painting: आज बिहार की मिथिला पेंटिंग की लोकप्रियता पूरे विश्व में हैं. इस पेंटिंग के कई कलाकार ऐसे भी हैं जिनकी उम्र 70 से ज्यादा है. इन्हीं में एक है मिथिला पेंटिंग कलाकार बिमला दत्त. भले ही उनकी उम्र 84 साल हो गई है, लेकिन उनकी कला यात्रा सात दशक से भी ज्यादा पुरानी है और उनकी शिल्पकला अनूठी रही है. वे विशुद्ध रूप से मिथिला के लोकाचार, संस्कृति और रीति-रिवाजों की कलाकार हैं और पौराणिक कथाओं से उन्हें विषय मिलते हैं.

सातवीं तक पढ़ी बिमला विपरीत परिस्थितियों में भी मिथिला पेंटिंग की पुरानी परंपरा और संस्कृति को बचाने में सक्रिय हैं और बाजार के तमाम तरह के दबावों से मुक्त रहकर अपनी परंपरा के प्रति सतत वफादार हैं. बिमला दत्त उस दशक में जापान गईं, जब वहां महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां थीं. उनकी पेंटिंग भारत के साथ-साथ अमेरिका, जर्मनी, जापान और इटली के संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रही हैं.

सवाल- आपने मिथिला पेंटिंग किनसे सीखी और शादी के बाद कैसे इससे जुड़ी रही?

जवाब- हम एक भाई और सात बहनें हैं. मैंने अपनी बड़ी बहन अन्नपूर्णा देवी से मिथिला पेंटिंग सीखी. सातवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद 17 साल की उम्र में मेरी शादी हो गई. जिसके बाद मैंने परिवार पर ध्यान दिया लेकिन पेंटिंग के प्रति मेरा जुनून कम नहीं हुआ. एक बार मैंने गोदावरी दत्त को अपनी पेंटिंग दिखाई जिसके लिए मेरी सराहना हुई. मैं पेंटिंग बनाकर व्यवसाय भी करना चाहती थी लेकिन मेरे ससुर चाहते थे कि मैं अपना समय बच्चों और परिवार को दूं. मैंने पहले अपने पति को मनाया लेकिन ससुर की अनुमति के बिना मैं कुछ नहीं कर सकती थी. बाद में मेरी छोटी बेटी की मदद से मेरे ससुर ने मुझे पेंटिंग का व्यवसाय करने की अनुमति दी.

सवाल- आपकी पहली पेंटिंग किसने ली थी?

जवाब- मैंने मिथिला की प्राचीन परंपरा के अनुसार राम, सीता, शिव, कृष्ण आदि देवी-देवताओं के चित्र बनाना शुरू किया. कचनी शैली में बनाई गई मेरी पेंटिंग सभी को पसंद आई. उस समय मैंने मिथिला की परंपरा के अनुसार कोहबर बनाया था जो क्षेत्र की प्रसिद्ध समाजसेवी गौरी मिश्रा को बहुत पसंद आया. उन्होंने उस पेंटिंग को 20 रुपये में खरीद लिया. यह मेरी पहली कमाई थी. जैसे-जैसे मेरी पेंटिंग की प्रसिद्धि बढ़ती गई, मेरी पेंटिंग देश-विदेश में जाने लगीं. मैंने सेवा मिथिला नामक एक संस्था के लिए लोगो में एक पक्षी बनाया था.

सवाल- आप 80 दशक में जापान में गयी थी वहां पर क्या खास काम किया?

जवाब- मधुबनी यात्रा के क्रम में मेरी मुलाकात जापान के हासेगावा से भी हुई थी. उनके अनुरोध पर मैं तीन बार जापान गयी और उनके मिथिला म्यूजियम के लिए ढेर सारे चित्रों का निर्माण किया. एक बार में चार माह तक जापान में रही और इस दौरान 8-8 फीट की दो पेंटिंग बनायी थी. उनमें एक पेंटिग बांस पर केंद्रित थी. जापान में मेरी पेंटिंग सखियों के बीच राधा-कृष्ण भी काफी प्रशंसित हुई थी.

सवाल- आज की पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहती हैं?

जवाब- मेरा मानना है कि मिथिला की अपनी विशिष्ट संस्कृति रही है. इस परंपरा को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए मैंने मैथिली भाषा में मिथिलाक पावनि तिहार एवं सोलह संस्कार नाम की एक पुस्तक का लेखन किया है जिसमें मिथिला के प्रमुख पर्व त्योहार, सोलह संस्कारों का चित्रों, कथानक के माध्यम से विस्तार से वर्णन है. मैं समय-समय पर आज की युवा पीढ़ी को परंपरागत मिथिला पेंटिंग का प्रशिक्षण भी देती रहती हूं.

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