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श्रद्धालुओं ने अंजनी सरोवर की परिक्रमा कर मांगी खुशहाली

पंचकोसी परिक्रमा का कारवां चौथे दिन शनिवार को सदर प्रखंड के बड़का नुआंव स्थित उद्दालक आश्रम पहुंचा

बक्सर. पंचकोसी परिक्रमा का कारवां चौथे दिन शनिवार को सदर प्रखंड के बड़का नुआंव स्थित उद्दालक आश्रम पहुंचा. जहां श्रद्धालुओं ने अंजनी सरोवर की परिक्रमा कर सत्तू-मूली का प्रसाद ग्रहण किया और भजन कीर्तन के बीच उद्दालक मुनी को याद करते हुए रात गुजारी. सदर प्रखंड के भभुअर स्थित भार्गव आश्रम में शुक्रवार को रात्रि विश्राम के बाद तड़के श्रद्धालु बड़का नुआंव स्थित अंजनी सरोवर पर पहुंचे. वहां स्नान आदि के बाद माता अंजनी व हनुमान जी का दर्शन-पूजन किए और सत्तू-मूली का भोग लगाकर खुद खाए और सगे-संबंधियों को भी खिलाए. इसी के साथ पंचकोसी के अंतिम व पांचवें पड़ाव चरित्रवन में होने वाले लिट्टी-चोखा के महाभोज में शामिल होने के लिए भी दूर-दराज से लोग पहुंचने लगे हैं.

वितरित किये गये सत्तू-मूली पंचकोसी परिक्रम समिति के अध्यक्ष व बसांव पीठाधीश्वर श्री अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज के नेतृत्व में श्रद्धालुओं ने भजन-कीर्तन करते हुए अंजनी सरोवर की परिक्रमा किया. परिक्रमा के दौरान हनुमान जी माता अंजनी के जयघोष से माहौल भक्तिमय हो गया था. परिक्रमा के बाद समिति के सौजन्य से श्रद्धालुओं के बीच सत्तू, मूली व गुड़ आदि वितरित किए गए.

धर्माचार्यों ने बतायी उद्दालक आश्रम की महिमा :

समिति के अध्यक्ष सह बसांव पीठाधीश्वर श्री अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज के सान्निध्य में कथा-प्रवचन का आयोजन हुआ. जिसमें धर्माचार्यों द्वारा ऋषि उद्दालक के चरित्र की बखान की गई. इस क्रम में माता अंजनी व हनुमान जी की कथा का वर्णन भी किया गया. बसांव मठ के सुदर्शनाचार्य उर्फ भोला बाबा समेत अन्य धर्माचार्यों ने कथा की रसपान कराई. चरित्रवन में आज लगेगा लिट्टी-चोखा का मेला : पंचम विश्राम स्थल शहर के चरित्रवन में रविवार को लिट्टी-चोखा का मेला लगेगा. श्रद्धालु गंगा स्नान एवं लक्ष्मीनारायण भगवान का दर्शन-पूजन कर पंचकोसी यात्रा को विश्राम देंगे और लिट्टी-चोख का प्रसाद ग्रहण रात्रि विश्राम करेंगे. पांच दिवसीय इस पंचकोसी परिक्रमा का समापन सोमवार को स्टेशन रोड स्थित बसांव मठिया परिसर में किया जाएगा.

उद्दालक आश्रम की परिक्रमा से दूर होती है दरिद्रता : पंचकोसी परिक्रमा के चौथे पड़ाव नुआंव स्थित उद्दालक आश्रम की विधि-विधान के साथ परिक्रमा कर रात्रि विश्राम करने से दरिद्रता समाप्त हो जाती है. पैरागिक आख्यानों का उल्लेख करते हुए बसांव पीठाधीवर ने कहा कि माता लक्ष्मी की बड़ी बहन का नाम दरिद्रता है. ऐसे में उनके घर आने से दरिद्र होने की संभावना को लेकर उनसे कोई विवाह नहीं कर रहा था. जिससे वे कुंवारी थी. बड़ी बहन दरिद्रा को कुंवारी रहने की चिंता उनकी अनुजा लक्ष्मी जी को सता रही थी. सो माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा कि बड़ी बहन के अविवाहित रहते छोटी का विवाह मर्याद विरुद्ध है. इसपर भगवान विष्णु ने अपने परम भक्त उद्दालक ऋषि को दरिद्रा से विवाह करने को सलाह दिया. महर्षि उद्दालक व दरिद्रा की शादी हो गई और वह ऋषि आश्रम में रहने लगीं. परंतु ऋषि उद्दालक की ईश्वर आराधना व धर्म कर्म से वे परेशान हो गयी और आखिर में वे वहां से भाग गयी.

प्रभु श्रीराम को उद्दालक ऋषि ने खिलाई थी सत्तू-मूली : त्रेतायुग में महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ का सफलता पूर्वक संपन्न कराने के बाद प्रभु श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ पंचकोसी परिक्रमा पर निकले थे. पंचकोसी परिक्रमा के चौथे दिन अपने आश्रम पर प्रभु श्रीराम व लक्ष्मण के पहुंचने पर महर्षि उद्दालक ने सतू-मूली खिलाकर उनकी खातिरदारी की थी. उसी परंपर के तहत पंचकोसी के चौथे पड़ाव बड़का नुआंव में सत्तू एवं मूली का प्रसाद ग्रहण कर रात्रि विश्राम करने का विधान है.

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