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नहीं सुधर सका जल, जंगल व जमीन के रक्षकों का जीवन

झारखंड को अलग राज्य बने हुए 24 साल हो चुके हैं, लेकिन जल, जंगल, और जमीन के रक्षकों का जीवन आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में बदहाली से घिरा हुआ है.

झारखंड के 24 वर्षों बाद भी आदिवासी टोला की बदहाली निकेश कुमार, नारायणपुर झारखंड को अलग राज्य बने हुए 24 साल हो चुके हैं, लेकिन जल, जंगल, और जमीन के रक्षकों का जीवन आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में बदहाली से घिरा हुआ है. नारायणपुर प्रखंड के बरियारपुर आदिवासी टोला की स्थिति इस सच्चाई को सामने लाती है. इस टोले में ना तो आवागमन के लिए सही सड़कें हैं, ना ही घरों से निकलने वाले गंदे पानी की निकासी का कोई इंतजाम. बीमारी, बेबसी, और लाचारी ने इस गांव को इस हद तक जकड़ रखा है कि इसे देखकर कोई भी भावुक हो जाए. गांव में प्रवेश करते ही कीचड़ से भरी सड़कें स्वागत करती हैं. राज्य और केंद्र सरकार की विकास योजनाएं यहां नाममात्र ही पहुंच पाई हैं. बेरोजगारी की मार झेल रहे यहां के पढ़े-लिखे युवा भी घर पर बैठे हैं. टोला के जीवन सोरेन, बड़ा मुर्मू, सहदेव राय, और बुंदिया देवी जैसे ग्रामीण आज भी राशन कार्ड जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित हैं. जीवन सोरेन की खराब हालत 35 वर्षीय जीवन सोरेन, जो इस टोले के एकमात्र कमाऊ सदस्य थे, गंभीर बीमारी के चलते मजदूरी करने में असमर्थ हैं. उनकी पत्नी मुन्नी हेंब्रम ने बताया कि दो बच्चों समेत पूरे परिवार का गुजारा नमक और चावल पर किसी तरह हो रहा है. उन्हें न तो मंईंयां सम्मान योजना का लाभ मिला, न पक्का घर, और न ही राशन कार्ड. उनके घर में बिजली की स्थिति ऐसी है कि एक कमरे में रोशनी है तो दूसरे में अंधेरा पसरा हुआ है. मुन्नी ने कहा कि उनका परिवार बदहाली के जीवन को मजबूरी में जी रहा है, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं. सिर्फ मिला दिलासा, टोला का विकास नहीं गांव के ग्रेजुएट जितेंद्र सोरेन बताते हैं कि उनके परिवार में सात लोग हैं, लेकिन किसी को भी पेंशन या आवास योजना का लाभ नहीं मिला. वे खुद पढ़े-लिखे होने के बावजूद बेरोजगार हैं. गांव में जल निकासी की समस्या गंभीर है. लोगों को रहने के लिए अच्छे घर नहीं मिले हैं, और रोजगार के साधनों का अभाव है. उन्होंने सवाल उठाया कि आदिवासी हित और विकास की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले नेता कब इस गांव की वास्तविक स्थिति को समझेंगे और कुछ ठोस कदम उठाएंगे. गांव की सोनामुनी सोरेन और ज्योति हांसदा जैसे अन्य लोगों ने कहा कि उन्होंने हमेशा वोट दिया है, लेकिन अब भी यह विश्वास नहीं है कि इस बार उनके गांव में विकास की कोई किरण पहुंचेगी. बरियारपुर आदिवासी टोला की स्थिति झारखंड में जमीनी स्तर पर विकास की सच्चाई को उजागर करती है. ऐसे में सरकार और स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि इस गांव की मूलभूत समस्याओं को प्राथमिकता से हल करे, ताकि जल, जंगल, और जमीन के असली रक्षक भी सम्मानजनक जीवन जी सकें.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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