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विदेशी पक्षियों के करलव से झीले बन जाता है आकर्षण का केंद्र

कुरसेला के नदी में पहुंचे विदेशी पक्षी

समुद्र, पहाड़ों को पार कर ठंड में प्रवास के लिए गंगा, कोसी के जलग्रहण क्षेत्रों में विदेशी मेहमान पक्षियों का आगमन बड़ी संख्या में इस साल भी हुआ है. नदियों के छारण व झीलों के बीच विचरण करते विभिन्न तरह के प्रवासी पक्षियों के झुंड का करलव आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. मेहमान परिंदे उस स्थान को बसेरा बना रहे हैं जहां प्रचुर आहार मिलने की संभावना के साथ आमलोगों के गतिविधियां कम होती है. कुरसेला में कोसी, गंगा नदियों का बड़ा प्रवाह क्षेत्र है. जिसके बीच छारण के साथ कई झीलनुमा स्थान है. प्रत्येक वर्ष इन्हीं जगहों के एक बड़े भू-भाग पर प्रवासी पंक्षी दूर देशों से आकर डेरा डालते है. यह मेहमान पंक्षी कुछ माह प्रवास के बाद वापस वतन लौट जाते हैं. प्रत्येक वर्ष के भांति इस साल भी नवंबर माह के दूसरे हफ्ते से गंगा, कोसी के जलग्रहण क्षेत्र, गाईड बांध स्थित झील में मेहमान प्रवासी पक्षियों का आगमन बड़ी संख्या में हुआ है. माना जा रहा है कि गंगा नदी के प्रवाह क्षेत्र के बीच विदेशी सैलानी पक्षी का विचरण और बसेरा होता है. विदेशी पक्षियों के झुंड में लालसर, अधंगा, चाहा, खंजन, फुदकी, चील, बाज सहित साइब्रेरियन क्रेन आदि शामिल है. यह पक्षी रुस के साइबेरिया, चीन, कजाकिस्तान, तिब्बत सहित दुसरे देशों से समूह में प्रवास के लिए यहां आते हैं. पक्षियों का झुंड का समूह सुरक्षा के तौर पर एक स्थान पर डेरा जमाते हैं. पक्षियों का उड़ान भी समूह में होता है. आमलोगों की गतिविधियों के भनक मिलते ही ये पक्षी उंची उड़ान भर लेते है. स्वयं के सुरक्षा के भरोसे प्रवास के माह को गुजारने का कार्य करते हैं. झीलनुमा नदियों के छारण क्षेत्र के आसपास प्रवासी पक्षियों को प्रचुर मात्रा में आहार मिल जाता है. भोजन के कम पड़ने पर प्रवासी पक्षी जगह बदल लिया करते हैं. शिकारियों से शिकार बनने का हमेशा रहता है खतरा भारत की सांस्कृतिक परंपरा अतिथि देवो भवः की रही है. बावजूद विदेशी मेहमान पक्षी यहां आकर शिकारियों के हाथों शिकार होकर जीवन गंवा जाते हैं. पक्षियों के आगमन के बाद इन पक्षियों के शिकार के लिए कई शिकारी सक्रिय हो जाते हैं. बताया जाता है कि रात में जाल डाल कर और दूसरे तरीकों से इस मेहमान पक्षियों का शिकार किया जाता हैं. दिन के उजाले में इन पक्षियों का शिकार करना कठिन होता है. शिकार के बाद इन पक्षियों को गुपचुप तरीकों से उंचे कीमतों पर बिक्री की जाती है. पंछियों में अधिक मांग लालसर, चाहा, अधंगा पक्षियों की होती है. बताया जाता है कि शिकार किये गये पंक्षियों का बाहर के व्यपारियों द्वारा खरीद कर बड़े शहरों तक पहुंचा कर मनमाने कीमतों पर बिक्री की जाती है. प्रवासी पंक्षियों के शिकार के लिए कुरसेला परिक्षेत्र में कई शिकारी सक्रिय बताये जाते है. जिनका मकसद इन पंक्षियों का शिकार कर मोटी कमाई करना होता है. प्रशासनिक स्तर पर पक्षियों के शिकार पर सख्ती की बंदिशें नहीं होने से शिकारियों का शिकार करने का सिलसिला चलते रहता है. पंक्षी खाने के ललक रखने वाले भी विदेशी परिंदों को शिकार कर आहार बना जाते हैं. ऐसे में प्रवास पर आने वाले पक्षियों के जीवन पर असुरक्षा का शामत बना रहता है. अनुकूल वातावरण व आहार के कमी से प्रवासी पक्षियों के आगमन की संख्या में निरंतर कमी आ रही है.

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