बिंदापाथर. बिदापाथर में चल रहे सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सह भारत माता मेला के पहले दिन कथा सुनने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. नवद्वीप धाम के कथावाचक मुकुंद दास अधिकारी ने श्रीमद्भागवत महापुराण में कलियुग के आगमन का व्याख्यान किया. भागवत कथा के सार का वर्णन करते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत कथा कलियुग का संजीवनी है. वेद और उपनिषद् सनातन धर्म नामक वृक्ष की जड़ें हैं और श्रीमद्भागवत उस वृक्ष का अमृत फल है. कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण में श्री शुकदेवजी कहते हैं-परीक्षित तुम बड़े भाग्यवान हो. भगवान के प्रेमी भक्तों में तुम्हारा स्थान श्रेष्ठ है, तभी तो तुमने इतना सुंदर प्रश्न किया है. यों तो तुम्हें बार-बार भगवान की लीला-कथाएं सुनने को मिलती हैं, फिर भी तुम उनके संबंध में प्रश्न करके उन्हें और भी सरस और भी नूतन बना देते हो. रसिक संतों की वाणी, कान और हृदय भगवान की लीला के गान, श्रवण और चिंतन के लिए ही होते हैं. उनका यह स्वभाव ही होता है कि वे क्षण-प्रतिक्षण भगवान की लीलाओं को अपूर्व रसमयी और नित्य-नूतन अनुभव करते रहें. भगवान श्रीकृष्ण ने कहा मेरे प्यारे मित्रों तुम लोग भोजन करना बंद मत करो. मैं बछड़ों को लिये आता हूं. ग्वालबालों से इस प्रकार कहकर भगवान श्रीकृष्ण हाथ में दही-भात का कौर लिये ही पहाड़ों, गुफाओं, कुंजों एवं अन्यान्य भयंकर स्थानों में अपने तथा साथियों के बछड़ों को ढूंढने चल दिये. परीक्षित ब्रह्माजी पहले से ही आकाश में उपस्थित थे. प्रभु के प्रभाव से अघासुर का मोक्ष देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ. उन्होंने सोचा कि लीला से मनुष्य-बालक बने हुए भगवान श्रीकृष्ण की कोई और मनोहर महिमामयी लीला देखनी चाहिये. ऐसा सोचकर उन्होंने पहले तो बछड़ों को और भगवान श्रीकृष्ण के चले जाने पर ग्वालबालों को भी, अन्यत्र ले जाकर रख दिया और स्वयं अंतरध्यान हो गये. अंततः वे जड़ कमल की ही तो संतान हैं. भगवान श्रीकृष्ण बछड़े न मिलने पर यमुना के पुलिन पर लौट आये. परंतु यहां क्या देखते हैं कि ग्वालबाल भी नहीं हैं, तब उन्होंने वन में घूम-घूमकर चारों ओर उन्हें ढूंढा. परंतु जब वे ग्वालबाल और बछड़े उन्हें कहीं न मिले, तब वे तुरंत जान गये कि यह सब ब्रह्माजी की करतूत है. वे तो सारे विश्व के एकमात्र ज्ञाता हैं. अब भगवान श्रीकृष्ण ने बछड़ों और ग्वालबालों की माताओं को तथा ब्रह्माजी को भी आनंदित करने के लिए अपने-आप को ही बछड़ों और ग्वालबालों, दोनों के रूप में बना लिया. क्योंकि वे ही संपूर्ण विश्व के कर्ता सर्वशक्तिमान ईश्वर हैं. कथावाचक सुदामा उपाख्यान के वर्णन करते हुए कहा कि सुदामा जी भगवन श्रीकृष्ण के परम मित्र व भक्त थे. वे समस्त वेद-पुराणों के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मण थे. श्रीकृष्ण से उनकी मित्रता ऋषि संदीपनी के गुरुकुल में हुई. सुदामा जी अपना जीवन यापन ब्राह्मण रीति के अनुसार भिक्षा मांग कर करते थे. कथावाचक ने कहा कलियुग का आगमन ऋषि वाजिश्रवा बोले धरती पर कलि का प्रवेश हो चुका है. राजन अब ऐसे आचरण आश्चर्य की वस्तु नहीं रहेंगे. ऋषि के कथन पर महाराज एक क्षण के लिए चौंके उनके प्रशस्त ललाट की रेखाएं और गहरी हुई ‘कलि का प्रवेश’ आश्चर्य से दुहराया. कलि का प्रवेश सभासदों के होंठ बुद-बुदाये. अपराधी सिर नीचे किए खड़ा था उसके लिए यह चर्चा व्यर्थ थी. कान में जबरन घुस पड़े शब्दों से उसे ऐसा लगा कि कलि नाम के किसी नए अपराधी की चर्चा हो रही है. उसके बढ़े-चढ़े आपराधिक कारनामे महाराज और राजसभा को चिंतित कर रहे हैं. मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच कर श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कर पुण्य के भागीदार बने.
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