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जीवन बहुमूल्य है, इसे आत्महत्या का रास्ता चुन यूं न गवाएं

लोगों को डिप्रेशन से उबरने की जरूरत

प्रभात पड़ताल डिप्रेशन, गेमिंग, लव अफेयर व बेटिंग बन रहा जानलेवा, इससे उबरने की जरूरत फोटो:43- साइकोलॉजिस्ट शुभम कुमार. राहुल कुमार सिंह, अररिया जिले में इन दिनों आत्महत्या की घटनाओं में खासा इजाफा हुआ है. यह घटना युवाओं में विशेष तौर से देखा जा रहा है. खुद को गोली मारकर या फंदे में झूलकर आत्महत्या कर लेना. कहीं न कहीं परिवार से अलगाव, लव अफेयर, डिप्रेशन, गेमिंग व बेटिंग में भारी भरकम राशि गंवा देना मुख्य कारण हो सकता है. मौत को मुंह से लगा लेने वाले ऐसे युवाओं में खास तौर से देखा जा रहा है कि वे डिप्रेशन के शिकार होते हैं. आखिर यह डिप्रेशन कहां से आ रहा है. समाज में ऐसी घटनाओं में बढ़ोतरी को लेकर प्रभात खबर द्वारा साइकोलॉजिस्ट से बातचीत पर आधारित खबर प्रस्तुत है. जिससे समाज को आईना दिख सके व आत्महत्या जैसी घटनाओं से खुद को आत्महत्या से बचाने के लिए प्रेरित हो सकें. केस स्टडी:1 गत वर्ष पॉलिटेक्निक कॉलेज के एक छात्र ने अपने किराये के रूम में खुद को फंदे से लटका लिया. छात्रों के अनुसार वह अपने घर से परिवार से मिलकर आया था. घर से आने के बाद से ही सबसे दूरी बनाकर रहता था. किसी से बता तक नहीं करता था. इसके बाद उसने सुसाइड कर लिया. केस स्टडी:2 रविवार को फारबिसगंज में अलग-अलग समय पर दो युवकों ने सुसाइड कर लिया. पहला युवक पंकज कुमार 12वीं का छात्र था जो लॉज में खुद को पंखे से फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली. केस स्टडी:3 रविवार को फारबिसगंज के घोड़ाघाट में एक 30 वर्षीय युवक अमन चौहान ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. उक्त युवक कर्ज से जूझ रहा था. केस स्टडी:4 भरगामा में एक तरफा प्यार के चक्कर में एक युवक ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली. करीब छह घंटे तक हाई वोल्टेज ड्रामा, अपने सभी बातों को लिखित रूप से स्थानीय पुलिस से मनवा लेने के बाद. भी डिप्रेशन के शिकार युवक आत्महत्या कर ली. केस स्टडी:5 कुआड़ी थाना क्षेत्र के एसबीआइ सीएसपी संचालक शीत कुमार साह ने बैंक प्रबंधक के दबाव के कारण आत्महत्या का रास्ता चुन लिया. इसके बाद सुसाइड नोट भी छोड़ा. उसके मन में यह विचार आया कि उसका सीएसपी अब बंद हो गया है, रोजगार का रास्ता नहीं बचा, अब अपने परिवार का प्रतिपालन कैसे करेंगे, इस डिप्रेशन ने उन्हें ऐसा जकड़ा कि वे फंदे पर झूल गये. हालांकि उनके इस निर्णय ने पूरे परिवार को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया. …… पारिवारिक दूरी बढ़ा रहा अपनों में डिप्रेशन, लोग खुद को अलग-थलग कर रहे महसूस सदर अस्पताल में कार्यरत साइकोलॉजिस्ट शुभम कुमार ने सुसाइड की घटनाओं में हो रहे इजाफा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने सबसे पहले पारिवारिक कारण को चुना. इसके बाद काम के तनाव को भी उन्होंने गंभीर बताया है. साथ ही छात्रों में पढ़ाई के हार्ड वर्किंग को भी मुख्य कारण बताया है. लेकिन सबसे बड़ा कारण युवाओं में सोशल मीडिया के क्रेज को महत्वपूर्ण बताया गया. इसके साथ ही वीडियो रिल्स को देखना. लेकिन सोशल मीडिया पर ऐसे रिल्स में ज्यादा गम से भरे सॉन्ग का होना, युवाओं को अवसाद की ओर धकेल रहा है. साइकोलॉजिस्ट शुभम कुमार ने कहा कि आज के दौर में कम्युनिकेशन गैप का भी होना युवाओं को डिप्रेशन की ओर धकेल रहा है. आज के दौर में नशीली पदार्थ में स्मैक का प्रचलन को भी बड़ा कारण माना जा रहा है. अपने बच्चों को फिजूलखर्ची से रोकें. उन्हें समय दें. बिना किसी नतीजे पर पहुंचे हुए उनकी बातों को ध्यान से सुनें. जिससे बच्चों के अंदर की भावना बाहर आ सके. युवाओं में लव फेल्योर भी आत्महत्या का बहुत बड़ा कारण है. —————————————- सुसाइडल आइडिएशन के बाद इससे उबरने की जरूरत: चिकित्सक साइकोलॉजिस्ट डॉ शुभम कुमार ने बताया कि जब कोई शख्स आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगता है तो इस स्थिति को मनोचिकित्सक सुसाइडल आइडिएशन (आत्महत्या का ख्याल) कहते हैं. जरूरी नहीं है कि किसी एक वजह से ऐसा हो. विशेषज्ञों की राय में जब व्यक्ति को किसी मुश्किल से निकलने का कोई रास्ता नहीं मिलता है, तो वो अपना जीवन खत्म करने के बारे में सोचता है. आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह बताते हुये उन्होंने कहा कि ऐसे लोग ये सोचने लगते हैं कि अब जीवन में कुछ भी नहीं बचा है. यही वजह है कि अवसादग्रस्त लोगों में आत्महत्या करने की दर सबसे ज्यादा देखी गई है. ————————————— यदि किसी और को आत्महत्या का ख्याल आता हो तो क्या करें? ऐसे लोगों के साथ बैठकर उनको चुपचाप सुनना चाहिए. वह खुल कर अपनी बात कह सकें इतनी आत्मीयता से बात करनी चाहिये. चुपचाप उनकी बातों को सुनें, किसी नतीजे तक नहीं पहुंचें. उनकी समस्या को समझें व उसे स्वीकार करें. यह न कहें कि ये तो कोई समस्या नहीं है. उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करें. मानसिक विकार वाले लोगों के लिए परिवार की सहायता सबसे जरूरी पहलू है. परिवार के सदस्यों को भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए. मानसिक विकार व आत्महत्या के ख्याल पर किशोरों के साथ भी बातचीत करनी चाहिये. उसको लेकर किसी तरह की हिचक नहीं होनी चाहिए. विशेषज्ञों के मुताबिक परिवार के सदस्यों या दूसरों को आत्महत्या के विचारों से जूझ रहे किसी व्यक्ति को बिना सोचे समझे कोई सलाह भी नहीं देनी चाहिये.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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