तपन महतो, नाला –
जामताड़ा जिले का नाला विधानसभा क्षेत्र में इस बार का चुनाव काफी दिलचस्प रहा. लोकसभा चुनाव में भाजपा को नाला विधानसभा से 21,659 वोटों की मिली बढ़त से इस सीट पर पार्टी की जीत पक्की मानी जाती थी. वहीं झामुमो के लिए इस सीट को बचाने की चुनौती थी. नाला विधानसभा क्षेत्र लंबे समय से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कब्जे में रहा. लगभग 40 साल तक इस क्षेत्र में भाकपा का दबदबा रहा, लेकिन 2005 के विधानसभा चुनाव में झामुमो प्रत्याशी रवींद्रनाथ महतो ने भाकपा के डॉ विशेश्वर खां जैसे धुरंधर नेता को शिकस्त देकर इस सीट से झामुमो का झंडा गाड़ने में सफल रहे. डॉ विशेश्वर खां के हारने के बाद धीरे-धीरे भाकपा का जनाधार खिसकते गया. 2024 के विधानसभा चुनाव में भाकपा का प्रदर्शन काफी दयनीय रहा. 2019 के विधानसभा चुनाव में भाकपा को 16000 के आसपास मत प्राप्त हुआ था, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव की ताजा स्थिति पर गौर करें तो जनाधार काफी खिसक चुका था. लोगों की माने तो एक समय नाला विधानसभा क्षेत्र में भाकपा का आदिवासी एवं पल्लव ग्वाला (यादव) को वोट बैंक था, लेकिन गुरुजी शिबू सोरेन ने संताल परगना से राजनीतिक गतिविधियां शुरू करने के कारण धीरे-धीरे आदिवासी समाज झामुमो की तरफ गोलबंद होने लगा. आदिवासी समुदाय को एकजुट रखने लायक कोई आदिवासी नेता नहीं रहने के कारण भाकपा से इस समाज का मोहभंग होना लाजिमी था. दूसरी डॉ विशेश्वर खां के देहांत के बाद भाकपा के पास द्वितीय पंक्ति के कोई चेहरा सामने नहीं आया या यूं कहें कि राजनीतिक दांव-पेंच में आने नहीं दिया. अंततः भाकपा का बागडोर कन्हाई चंद्र मालपहाड़िया ने संभाला. 2009 से अब तक कन्हाई चंद्र मालपहाड़िया को पार्टी ने प्रत्याशी तो बनाया, लेकिन वह संगठन बचाए रखने में असफल साबित हुए. धीरे-धीरे पार्टी का जनाधार खिसकते चला गया. 2024 का विधानसभा चुनाव परिणाम देखें तो भाकपा का कोई वजूद नहीं रह गया है. लोगों की मानें तो पार्टी ने जनभावनाओं के विपरीत फैसला लेते गए और यहां के आम जन की भावना को दर किनार कर दिया. भाकपा का वोट बैंक धीरे-धीरे भाजपा एवं झामुमो में शिफ्ट होते गया.रवींद्रनाथ महतो ने आदिवासी व अल्पसंख्यक वोट बैंक को किया संगठित
वहीं झामुमो पर विश्लेषण करें तो 2009 के विधानसभा चुनाव हारने के बाद वर्तमान विधायक रवींद्रनाथ महतो ने हार का विश्लेषण नये सिरे से किया. हार के कारणों को रेखांकित कर आगे बढ़ने लगे. झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई में रवींद्रनाथ महतो ने आदिवासी एवं अल्पसंख्यक वोट बैंक को संगठित किया. इसके अलावा क्षेत्र में विकास की गति को तेज की. साथ ही मृदुभाषी सादगीपूर्ण जीवन आत्मियता के साथ लोगों के साथ पेश आने से लोग उनके व्यवहार से प्रभावित होकर धीरे-धीरे उनके सानिध्य में आने लगे. जानकारी हो कि नाला विधानसभा क्षेत्र में मजरोठ यादव, कृष्णोत यादव एवं पल्लव यादव का सबसे ज्यादा वोट है. रवींद्रनाथ महतो ने मजरोठ यादव से आते हैं. इसलिए ये वर्ग तो उनके साथ-साथ था ही कृष्णोत यादव को साधने में सफल हुए. 2019 विधानसभा चुनाव जीतने के बाद वे विधानसभा के अध्यक्ष बने और विधानसभा क्षेत्र में सभी वर्गों को ध्यान में रखते काफी विकास किया. विकास कार्य, शालीनता व सादगीपूर्ण जीवन शैली से प्रभावित होकर पल्लव यादव के अलावा अन्य समुदाय के लोगों को अपने संगठन में शामिल कर उचित सम्मान देते गये. रवींद्र नाथ महतो के कुशल नेतृत्व के कारण लगातार वोट बैंक बढ़ते गये. इस बार के चुनाव की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी ने इनको हराने के लिए ठोस चक्रव्यूह की रचना की, लेकिन अंतत कामयाब नहीं हो पाये. विधानसभा चुनाव से पूर्व आदिवासी वोट बैंक को बिखराने के लिए आदिवासी महासभा की सम्मेलन की और कायदे से आदिवासियों को झामुमो से अलग-थलग करने की प्रयास की. विधानसभा चुनाव में चार आदिवासी प्रत्याशी को मैदान में उतारा. वहीं यादव समुदाय से भी चार प्रत्याशी भी मैदान में उतरे. भाजपा की ओर से हिमंता विश्वा सरमा, जेपी नड्डा, योगी आदित्यनाथ, सीने स्टार मिथुन चक्रवर्ती चुनाव प्रचार में आए. वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन केवल पांच मिनट के लिए आए एवं कल्पना सोरेन ने एक सभा की. इसके बावजूद रवींद्रनाथ महतो भाजपा के द्वारा रचा गये चक्रव्यूह को तोड़कर भाजपा 10,353 मतों से हराकर विजय का झंडा फहराया. विगत तीन विधानसभा चुनाव के परिणाम पर गौर करें तो एक सधी हुई रणनीति के तहत रवींद्रनाथ महतो अपने वोट बैंक में लगातार इजाफा करते गये. वहीं भाकपा का जनाधार कमजोर होते गया. मानना है कि आने वाले समय में भाकपा का जामताड़ा में जो स्थिति हुआ है नाला में भी वही स्थिति बनने से इंकार नहीं किया जा सकता.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है