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आठ प्रखंडों में कराया जा रहा नाइट ब्लड सर्वे, अब तक 2034 लोगों का लिया गया सैंपल

हाइड्रोसील में फाइलेरिया का इलाज ससमय संभव है

– चार दिसंबर तक चलाया जायेगा कार्यक्रम – रात 8:30 से लेकर 12:00 तक लिया जाता है लोगों का रक्त नमूना सुपौल. जिले को फाइलेरिया मुक्त बनाने के लिए सकारात्मक प्रयास किये जा रहे हैं. आगामी 10 फरवरी 2025 को सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम को लेकर जिले के आठ प्रखंडों में नाइट ब्लड सर्वे अभियान चलाया जा रहा है. यह अभियान 22 नवंबर से लेकर 04 दिसंबर तक चलेगा. इस दौरान सेंटीनल व रैंडम साइट पर लोगों के रक्त के नमूने लिए जा रहे है. 25 नवंबर तक 02 हजार 34 लोगों का सैंपल लिया गया. प्रत्येक प्रखंड में 600 लोगों का रक्त पट्ट संग्रह किया जा जाना है. जिला वेक्टर जनहित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ दीप नारायण ने बताया नाइट ब्लड सर्वे की गतिविधि का आयोजन करने का मुख्य उद्देश्य प्रखंड स्तर पर फाइलेरिया व माइक्रोफाइलेरिया की दर को जानने के लिए है. नाइट ब्लड सर्वे के तहत फाइलेरिया प्रभावित क्षेत्रों की पहचान कर वहां रात में (8:30 से लेकर 12:00 तक ) लोगों के रक्त के नमूने लिए जाते हैं. इसे प्रयोगशाला भेजा जाता है. रक्त में फाइलेरिया के परजीवी की मौजूदगी का पता लगाया जाता है. फाइलेरिया का परजीवी रात में ही सक्रिय होते हैं. इसलिए रक्त के नमूने रात्रि में ही लिए जाते है. नाइट ब्लड सर्वे से सही रिपोर्ट पता चल पाता है. ताकि फाइलेरिया के संभावित मरीज का समुचित इलाज किया जा सके. आठ प्रखंडों में हो रहा है एनबीएस फाइलेरिया उन्मूलन के लिए नाइट ब्लड सर्वे का आयोजन जिले के 08 प्रखंड सदर ब्लॉक, किशनपुर, सरायगढ़-भपटियाही, निर्मली, राघोपुर, त्रिवेणीगंज, पिपरा व प्रतापगंज में हो रहा है. सदर प्रखंड के चैनसिंहपट्टी एवं नगर परिषद क्षेत्र, किशनपुर के सिंगियावन एवं थरबिट्टा, सरायगढ़-भपटियाही के भपटियाही एवं चिकनी, निर्मली प्रखंड के कुनौली व नगर पंचायत निर्मली, राघोपुर के राघोपुर गद्दी व नरहा, त्रिवेणीगंज के फुलकाहा व मटकुड़िया, पिपरा के पथरा, थुमहा व कटैया, प्रतापगंज के तीनटोलिया, भवानीपुर व गोविंदपुर में शिविर लगा कर नाइट ब्लड सर्वे किया जा रहा है. नाइट ब्लड सर्वे अभियान को लेकर स्वास्थ्य विभाग के द्वारा कुल 20 टीम बनाये गये हैं. सभी टीमों में एक सीएचओ, एक एलटी एवं एक एएनएम कर्मी सहित संबंधित विभाग के एक अधिकारी शामिल हैं. फाइलेरिया एक गंभीर बीमारी, बचने के लिए जागरूकता जरूरी जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ दीप नारायण ने बताया कि फाइलेरिया एक गंभीर बीमारी है. यह नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज की श्रेणी में आता है. फाइलेरिया हो जाने के बाद धीरे-धीरे या गंभीर रूप देने लगता है. इसकी नियमित और उचित देखभाल कर जटिलताओं से बचा जा सकता है. उन्होंने यह भी बताया कि फाइलेरिया से बचाव के लिए समय-समय पर सरकार द्वारा “सर्वजन दवा सेवन ” कार्यक्रम चलाया जाता है. इसमें आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर फाइलेरिया से बचाव की दवा खिलाती है. जिले में 10 फरवरी से सर्वजन दवा वितरण कार्यक्रम के तहत लोगों को दवा खिलाई जाएगी. इसके लिए जरूरी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है. हाथी पांव होने पर देखभाल जरूरी भीबीडीसीओ विपीन कुमार ने बताया कि फाइलेरिया के कारण हाथीपांव हो जाता है. हाथी पांव होने पर उसे चोट या जख्म से बचाना जरूरी है. इसके लिए एमएमडीपी कीट दिया जाता है. हाथी पांव से पीड़ित लोग अपने नजदीक के किसी भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाकर चिकित्सक से इसकी देखभाल की जानकारी ले सकते हैं. हाथी पांव के शिकार लोगों के लिए एमएमडीपी किट दिए जाते हैं. इस किट में हाथी पांव की देखभाल तथा साफ सफाई करने के लिए आवश्यक दवाइयां तथा अन्य वस्तु होते हैं. देखभाल और उपचार की जानकारी लेकर इसे बढ़ने से रोका जा सकता है. देर से बीमारी का चलता है पता फाइलेरिया मरीजों के लिए रोग प्रबंधन में एमएमडीपी किट काफी उपयोगी है. बताया कि फाइलेरिया को आमतौर पर हाथी पांव के नाम से जाना जाता है. यह बीमारी मच्छर के काटने से होता है. फाइलेरिया दूसरी सबसे ज्यादा विकलांग एवं कुरूपता करने वाली बीमारी है. यह शरीर के और अंग (हाथ, पैर, स्तन और हाइड्रोसील) को भी प्रभावित करता है. इसका संक्रमण अधिकतर बचपन में ही हो जाता है. इस बीमारी का पता चलने में 5 से 15 साल लग जाता है. हाइड्रोसील में फाइलेरिया का इलाज ससमय संभव है, लेकिन शरीर के अन्य अंगों में आया हुआ सूजन आमतौर पर लाइलाज होता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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