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Ranchi news : एजेंडा झारखंड : स्कूल व विद्यार्थी बढ़े, अब दूर करनी होगी शिक्षकों की कमी

राज्य में कक्षा एक से आठ तक में लगभग 53 लाख बच्चे हैं नामांकित. राज्य में प्राथमिक व मध्य विद्यालय में शिक्षकों के 50 हजार पद रिक्त हैं.

रांची. राज्य गठन के बाद झारखंड में शिक्षा के क्षेत्र में स्कूल व कॉलेज से लेकर विश्वविद्यालय तक की संख्या में बढ़ोतरी हुई. राज्य गठन के समय शिक्षण संस्थानों की संख्या की तुलना में आज स्कूल व कॉलेजों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गयी है. सरकारी स्कूलों की कुल संख्या 35442 है. विद्यार्थियों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई. राज्य में कक्षा एक से आठ तक में लगभग 53 लाख बच्चे नामांकित हैं. हालांकि, शिक्षकों की कमी दूर नहीं हो सकी है. इस कारण पठन-पाठन प्रभावित हो रहा है.

वित्तीय वर्ष 2024-25 में स्कूली शिक्षा का बजट 1231421.38 (राशि लाख) रुपये है. राज्य के कुल बजट की 11.42 फीसदी राशि स्कूली शिक्षा के लिए आवंटित की गयी थी. इस सबके बावजूद राज्य गठन के 24 वर्षों बाद भी झारखंड में शिक्षकों की कमी दूर नहीं हो सकी है. प्राथमिक से लेकर प्लस टू स्कूल तक के स्कूलों में शिक्षकों की कमी है. राज्य में शिक्षकों की कमी दूर नहीं होने से पठन-पाठन प्रभावित होता है. स्कूलों में गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने की बात तो होती है, पर अभी भी स्कूलों में बच्चों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा नहीं मिल पा रही है. झारखंड की प्राथमिक कक्षा के बच्चे पढ़ने में राष्ट्रीय स्तर के बच्चों की तुलना में कमजोर हैं, वहीं कक्षा बढ़ने के साथ बच्चों की पढ़ाई बेहतर होती जाती है. कक्षा आठ व दस के बच्चों की उपलब्धि राष्ट्रीय औसत के बराबर है. राज्य में प्राथमिक व मध्य विद्यालय में शिक्षकों के 50 हजार पद रिक्त हैं. कक्षा एक से पांच में 20825, तो कक्षा छह से आठ में 29175 शिक्षकों के पद रिक्त हैं. इनमें से 26 हजार शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है. हाइस्कूलों में कुल 25199 शिक्षकों के पद सृजित हैं.

स्कूल से विवि तक हो शिक्षकों की नियुक्ति

शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने व बच्चों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा के लिए पहली शर्त स्कूल से लेकर विवि तक में शिक्षकों की कमी दूर करना है. सरकार को शिक्षक नियुक्ति का कैलेंडर बनाना चाहिए. प्रतिवर्ष कितने शिक्षक सेवानिवृत्त हो रहे हैं, उसके अनुरूप पहले से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू कर सत्र शुरू होने के साथ स्कूल, कॉलेज में शिक्षकों का पदस्थापन सुनिश्चित किया जाये. शिक्षकों को समय-समय पर आवश्यकतानुसार प्रशिक्षण की सुविधा भी दी जाये. राज्य सरकार द्वारा उत्कृष्ट व मॉडल विद्यालय खोले गये हैं, इससे सरकारी स्कूली शिक्षा बेहतर होगी, पर इसके लिए इन विद्यालयों में भी शिक्षकों की नियुक्ति आवश्यक है. स्कूल, कॉलेज में शिक्षकों के साथ-साथ प्राचार्य की भी कमी है. राज्य के प्राथमिक व मध्य विद्यालय में 90 फीसदी से अधिक प्रधानाध्यापक के पद रिक्त है. प्लस टू विद्यालयों में राज्य गठन के बाद से प्राचार्य की नियुक्ति नहीं हुई है. राज्य के अधिकतर कॉलेजों में भी स्थायी प्राचार्य नहीं है. सरकार को आवश्यकता के अनुरूप अपने पाठ्यक्रमों में भी बदलाव करना चाहिए. शिक्षकों की समस्या भी प्राथमिकता के आधार पर दूर की जाये. स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक के शिक्षकों को अपनी मांगों को लेकर मुख्यालय का चक्कर लगाना पड़ता है. इससे भी पठन-पाठन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. शिक्षकों की प्रोन्नति प्रक्रिया समय पर पूरी हो, इसे सुनिश्चित किया जाये. सेवानिवृत्ति के बाद सेवा लाभ की राशि से लेकर पेंशन का निर्धारण समय पर हो.

डॉ केके नाग, रांची विवि के पूर्व कुलपति

इंटेलेक्चुअल इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने की जरूरत

झारखंड में उच्च शिक्षा के विकास के लिए फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर (भौतिक संसाधन) तो हैं, लेकिन जरूरत है इंटेलेक्चुअल इंफ्रास्ट्रक्चर (बौद्धिक संसाधन) बढ़ाने की. राज्य में विवि व कॉलेजों की संख्या तो बढ़ी है और बढ़ भी रहे हैं. लेकिन, उच्च शिक्षा के विकास पर लगातार प्रश्नचिह्न लग रहे हैं. इसे समझना होगा. हमें समझना होगा कि एजुकेशन और नॉलेज में फर्क है. आज विद्यार्थी के एजुकेशन में सिर्फ इनफॉर्मेशन है, लेकिन एनालिटिकल कैपेसिटी (विश्लेषणात्मक क्षमता), रेशनल थिंकिंग (तर्कसंगत सोच) तथा क्रिएटिव रिजनिंग (रचनात्मक तर्क) के साथ एजुकेशन को नॉलेज में स्थानांतरित करना होगा. तभी एजुकेशन का महत्व व इसका असर दिखेगा. विद्यार्थियों के पलायन को रोकने के लिए राज्य व देश स्तर के संस्थानों में सुधार जरूरी है. विद्यार्थियों का नामांकन प्रतिशत बढ़े, लेकिन हमें अच्छे शिक्षक की नियुक्ति पर ध्यान देने की आवश्यकता है. ताकि, छात्र-शिक्षक का अनुपात बेहतर रहे. इसके लिए यूजीसी के मापदंड का अक्षरश: पालन करना होगा. नियमित रूप से प्रोन्नति हो. शिक्षक नियुक्ति में यह प्रावधान होना चाहिए कि नियुक्ति के दो वर्ष के प्रोवेशन के बाद प्रत्येक शिक्षक को कम से कम एक प्रोजेक्ट लाना अनिवार्य हो और इस पर रिसर्च वर्क हो. रिसर्च पब्लिकेशन जरूरी किया जाना चाहिए. नियम तो यह होना चाहिए कि पीजी विभाग में जो भी शिक्षक हैं. सबके पास प्रोजेक्ट होना ही चाहिए. पीजी में शिक्षकों का स्थानांतरण या प्रतिनियुक्ति में मापदंड का पालन जरूरी है. अगर राजधानी के विवि की बात करें, तो इसे सबसे पहले मॉडल के रूप में विकसित करना होगा. रांची विवि को रेसीडेंशियल विवि बनाते हुए सेंट्रल ऑफ एक्सीलेंस बनाने की दिशा में कार्य होना चाहिए. रांची विवि के अंतर्गत सिर्फ रांची वीमेंस कॉलेज, मारवाड़ी कॉलेज, डोरंडा कॉलेज, एसएस मेमोरियल कॉलेज और जेएन कॉलेज हो. जबकि, डीएसपीएमयू का दायरा बढ़ाते हुए उसके अंतर्गत संबद्ध व अल्पसंख्यक कॉलेजों को शामिल किया जाये. साथ ही इसे रांची विवि के लिए चेरी-मनातू में मिली जगह पर स्थानांतरित कर इसका पूर्ण विकास किया जाये.

प्रो एए खान, रांची विवि के पूर्व कुलपतिB

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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