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सुविधाओं से वंचित है खैरा पंचायत का पुतो आदिवासी टोला

: बीमार पड़ने पर घाट पर मरीज को ले जाते हैँ

: बीमार पड़ने पर घाट पर मरीज को ले जाते हैँ सोनु पांडेय टाटीझरिया. टाटीझरिया प्रखंड मुख्यालय से करीब 11 किमी दूर खैरा पंचायत का पुतो आदिवासी टोला बुनियादी सुविधाओं से वंचित है. जंगल से घिरे इस गांव की न तो तस्वीर बदली और न ही यहां बसे लोगों की तकदीर. इस गांव में सड़क, बिजली, पानी, दवा जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में लोगों को जीना पड़ रहा है. अगर गांव में कोई गंभीर रूप से बीमार पड़ जाता है, तो उसे खाट पर लिटा कर तीन किमी दूर पक्की सड़क तक ले जाना पड़ता है. यहां लगभग 85 लोग निवास करते हैं. यहां के अर्जुन मुर्मू, चंद्र किस्कु, महादेव मुर्मू, अशोक किस्कू, छोटन मुर्मू, मनोज मुर्मू, चांदमुनी देवी, जगनी देवी ने बताया कि यहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. हमारे गांव में कोई प्रशासनिक अधिकारी यह देखने तक नहीं आते कि हम किसी तरह जीवन बसर कर रहे हैं. यहां मुख्य रूप से बिजली और सड़क से जुड़ी समस्या है. पुतो आदिवासी टोला तक जाने के लिए सिमराढाब से तीन किमी तक लोगों को पगडंडियाे से होकर जाना होता है. नाै वर्ष पहले लगा एक चापानल : पुतो निवासी चंद्र किस्कू, अर्जुन मुर्मू ने बताया कि 12 साल पहले इस पुतो आदिवासी टोला के बाबूलाल मांझी की मौत इस कारण से हो गयी, क्योंकि उसे जोर की प्यास लगी थी और उसे समय पर पानी नहीं मिल पाया था. तब यहां एक भी चापानल व कुआं नहीं था. पहले हमलोग कई मील दूर नदी व चुआं से पानी लाते थे. आठ साल पहले जब प्रभात खबर में यहां की परेशानियों के बारे में प्रमुखता से खबर प्रकाशित हुई, तो एक चापानल लगाया गया था. मरीज को खाट पर ले जाते हैं : यहां के लोगों ने बताया कि सड़क नहीं रहने के कारण यहां कोई वाहन नहीं पहुंच पाता है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाता है, तो हम लोग खाट में लिटा कर पैदल चार किमी दूर झरपो जाकर इलाज कराते हैं. 77 साल बीत जाने के बाद भी नहीं देखी बिजली : आदिवासियों ने बताया कि यहां की सबसे बड़ी समस्या है बिजली का नहींं होना. यह टोला चारों ओर से जंगलों से घिरा हुआ है. ऐसे में जंगली हाथियों का आना-जाना यहां लगा रहता है. हम लोग रात में लालटेन के सहारे जीने को मजबूर हैं, बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाते. मोबाइल चार्ज करने के लिए तीन किमी दूर बगल के गांव में जाना पड़ता है. पेड़ में चढ़ कर होती है मोबाइल से बात : यहां के युवाओं ने बताया कि यहां मोबाइल नेटवर्क नहीं रहने से हम लोग कहीं रिश्तेदारों में बात नहीं कर पाते. जब मोबाइल में बात करना होता है, तब पेड़ में चढ़ कर बात कर पाते हैं. कुछ लोगों को मिला है सरकारी आवास: सिमराढ़ाब के वार्ड सदस्य सुरेश मुर्मू ने बताया कि पुतो और सिमराढ़ाब के आदिवासी अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए सबसे पहले संघर्ष किया था. लेकिन पुतो में कोई सरकारी सुविधाएं नहीं है. यहां न कोई नेता पहुंच पाते हैं और न ही कोई अधिकारी. पुतो में कुछ लोगों को सरकारी आवास मिला है, लेकिन कई लोग अब भी कच्चे मकान में रह रहे हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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