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सिल्टी सिटी के चौक-चौराहे पर फैली तिल-गुड़ की सौंधी खुशबू

ठंड आने के साथ ही शहर के मुख्य बाजार से लेकर विभिन्न चौक-चौराहों पर तिलकुट की दुकानें सज गयीं हैं. इन दुकानों में गया व देवघर के कारीगर को विशेष रूप से बुलाया गया है.

ठंड आने के साथ ही शहर के मुख्य बाजार से लेकर विभिन्न चौक-चौराहों पर तिलकुट की दुकानें सज गयीं हैं. इन दुकानों में गया व देवघर के कारीगर को विशेष रूप से बुलाया गया है. मकर संक्रांति पर तिलकुट की बिक्री चरम पर पहुंचती है, लेकिन दुकान खुलने के साथ ही बिक्री हो जाती है. हालांकि, इस सीजन में तिलकुट पिछले साल की तुलना 20-40 रुपये तक महंगा है. तिलकुट कारोबारी बता रहे हैं कि सर्दी बढ़ने के साथ ही बिक्री में तेजी आ रही है. पिछले दो-चार दिनों से रोजाना पांच से सात हजार रुपये का कारोबार हो रहा था, शुरुआत में तीन से चार हजार रुपये तक का ही हो पा रहा था.

तिलकुट कारोबारी राजेश कुमार ने बताया कि अभी तिलकुट के साथ खोवा वाला अनारसा लोगों को खूब पसंद आ रहा है. खासकर दूर-दूर से आने वाले ग्राहकों को गर्म अनारसा पसंद आ रहा है. इसके अलावा अलग-अलग तरह के तिलकूट, जिसमें गजक, खस्ता, चॉकलेट वाला, कटोरीवाला, प्लेटवाला, तिल के लड्डू आदि तैयार किये जा रहे हैं.

यहां सजी हैं दुकानें, तिलकूट की डिमांड बढ़ने पर पांचगुनी दुकानों की संख्या बढ़ी

तिलकामांझी, बरारी, वेराइटी चौक, इनारा चौक, आनंद चिकित्सालय रोड, मिरजानहाट, त्रिमूर्ति चौक, मुंदीचक, नाथनगर आदि स्थानों पर तिलकुट की दुकानें सज गयी हैं. शहर में पहले 25 से अधिक तिलकुट की दुकानें सजती थी, अब पांचगुनी तक दुकानें सज गयीं हैं. मकर संक्रांति के करीब यह संख्या और बढ़ सकती है.

पांच वर्षों में दोगुने हुए तिलकुट के दाम

तिलकुट कारोबारी संजय कुमार ने बताया कि पांच साल पहले जिस तिलकुट के दाम 130-150 रुपये किलो था, अब 240 से 260 रुपये किलो बिकने लगे है. तीन साल पहले 180 से 200 रुपये किलो तक बिके. दो वर्ष पहले 160 रुपये किलो बिक रहा था. जबकि यही पिछले साल 220 से 240 रुपये किलो हो गया था. संजय ने बताया कि तिल की कीमत तो घटी, लेकिन चीनी व गुड़ के भाव के साथ-साथ कारीगर का मजदूरी खर्च बढ़ गया है. इसी कारण पांच वर्षों में तिलकुट के दाम दोगुना बढ़ गये.

गया, देवघर व दुमका के आये कारीगर, पूर्वी बिहार समेत गोड्डा तक होती है आपूर्ति

उन्होंने ने बताया शहर में कुछ ऐसे भी तिलकुट की दुकानें हैं, जो मकर संक्रांति के आसपास के दिनों में 25 से 30 क्विंटल तिलकुट का रोजाना का कारोबार करते हैं. उनका तिलकुट बांका, मुंगेर, खगड़िया, जमुई, गोड्डा तक सप्लाई होता है. गया, देवघर व दुमका के कारीगर को तिलकुट बनाने के लिए बुला लिये गये हैं. एक कारीगर रोजाना 600 से 1000 रुपये तक मजदूरी लेते हैं. उनके बनाने की कला और दूरी के हिसाब से उनको मजदूरी दी जा रही है. लोकल कारीगर को 300 से 400 रुपये देना पड़ता है.

तिलकुट के दाम

गुड़ वाला 260 रुपये किलो

चीनी वाला 240 रुपये किलो

रेवड़ी 180 रुपये किलो

स्पेशल तिलकुट 300 रुपये किलो

खोवा वाला 500 से 600 रुपये किलो

मेवा वाला 450 से 500 रुपये किलो

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