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Patna News : भारतीय ज्ञान परंपरा की समृद्ध विरासत का वैभवशाली केंद्र रहा है नालंदा

नालंदा बौद्ध धर्म के पवित्र स्थल होने के साथ-साथ सदियों तक भारतीय ज्ञान परंपरा के समृद्ध विरासत का श्रेष्ठतम केंद्र रहा है

संवाददाता,पटना

नालंदा बौद्ध धर्म के पवित्र स्थल होने के साथ-साथ सदियों तक भारतीय ज्ञान परंपरा के समृद्ध विरासत का श्रेष्ठतम केंद्र रहा है. नालंदा में शुरू की हुई महान शैक्षिक परंपरा ने भारतीय इतिहास में ज्ञान के अनूठे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया था. ये बातें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक यदुवीर सिंह रावत ने प्रो आनंद सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ”नालंदा ए ग्लोरियस पास्ट” के विमोचन के मौके पर कही. शनिवार को बिहार संग्रहालय के ओरिएंटेशन हॉल में बिहार के पूर्व मुख्य सचिव व बिहार संग्रहालय के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह की अध्यक्षता में दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया के ऐतिहासिक अध्ययन व पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष व बौद्ध शिक्षा एवं दर्शन के विशेषज्ञ प्रो आनंद सिंह की बहुचर्चित पुस्तक ”नालन्दा : ए ग्लोरियस पास्ट के अनावरण का कार्यक्रम आयोजित किया गया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक यदुवीर सिंह रावत और विशिष्ट अतिथि दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया के कुलपति प्रो कामेश्वर नाथ सिंह थे. संग्रहालय के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने सभी का स्वागत किया. शहर के प्रबुद्ध श्रोताओं और छात्रों की उपस्थिति में पुस्तक के विमोचन के साथ-साथ इस किताब में वर्णित महत्वपूर्ण विषयों, आयामों पर सार्थक, संक्षिप्त परिचर्चा हुई. संग्रहालय के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह ने कहा कि ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक जब विश्व के अधिकांश देश अज्ञानता के घोर अंधकार में सोये थे, उस समय बिहार के नालंदा में ज्ञान का भास्कर दैदीप्यामान हो रहा था. उसी प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की गौरवगाथा को प्रो आनंद ने अपनी पुस्तक ”नालन्दा : ए ग्लोरियस पास्ट में विस्तार से वर्णन किया है. उन्होंंने कहा कि गहन शोध, अध्ययन से प्रो आनंद सिंह ने कई नयी और आश्चर्यजनक जानकारियां प्रस्तुत की हैं, जो बिहार के इतिहास एवं पुरातत्व में रुचि रखने वाले शोधार्थियों के लिए उपयोगी साबित होंगी.

किताब में हर पहलू का है जिक्र

लेखक प्रो आनंद सिंह ने कहा कि यह पुस्तक उनकी वर्षों की मेहनत और गहन शोध का प्रतिफल है. उन्होंने कहा कि मेरी यह पुस्तक 600 से ज्यादा पृष्ठों की है और इसमें प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के शुरुआती काल से लेकर पतन तक की घटनाओं का विस्तार से उल्लेख है. साउथ दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया के कुलपति प्रो कामेश्वर नाथ सिंह ने भी इस पुस्तक को ऐतिहासिक कृति करार देते हुए उसके महत्वपूर्ण अध्यायों पर विस्तार से चर्चा की. प्रो यदुवीर सिंह रावत ने इस कृति को नालंदा के उत्थान, पतन के जानकारी के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज करार दिया.

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