क्षेत्रीय आलू अनुसंधान केंद्र, पटना
हिमांशु देव, पटनाक्षेत्रीय आलू अनुसंधान केंद्र, पटना में इस समय हवा में आलू उगाया जा रहा है. इस प्रयोग के तहत आलू की सात किस्मों का उत्पादन किया जा रहा है, जिनमें कुफरी सिंदूरी, कुफरी मानिक, कुफरी ललित, कुफरी पुखराज, कुफरी ख्याति, कुफरी हिमालिनी जैसी प्रमुख किस्में शामिल हैं. यह प्रयोग विशेष रूप से एरोपोनिक्स विधि से किया जा रहा है, जिसमें मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती और पौधों को हवा में उगाया जाता है. इस विधि से एक पौधे में 50 से 150 आलू का उत्पादन होता है, जबकि पारंपरिक पद्धतियों में एक पौधे से केवल 8 से 10 आलू उत्पन्न होते हैं. 15 फरवरी तक हवा में उगाये गये आलू की पहली खेप तैयार हो जायेगी. इस अवधि में करीब 48 किलो आलू का उत्पादन होगा. लेकिन, तीन-तीन ग्राम तक के ही सभी आलू होते हैं. वहीं, एआरसी विधि से आलू के पौधों को क्लोनिंग विधि लगाया जा रहा है. यह आलू की उन्नत खेती के लिए एक तकनीक है, जिसमें भूमि की सही तैयारी कर एक पौधे को करीब सात से आठ टुकड़े कर लगाते हैं.
चिप्स के लिए तैयार हो रहा विशेष किस्म का आलू
केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक शिव प्रताप सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार के निर्देश पर तीन नयी किस्मों के आलू को लगाया गया है. इसमें कुफरी चिपसोना, कुफरी अशोका व कुफरी चंद्रमुखी है. इनमें सबसे खास चिपसोना है. इससे चिप्स बनायी जायेगी. उन्होंने बताया कि पूरे देश में सर्वे किया गया है, जिसमें आलू बीज उत्पादन के लिए ग्वालियर, जलंधर, मेरठ व पटना को चुना गया. ये वे केंद्र हैं, जहां माहू व अन्य कीड़े कम पाये जाते हैं. सभी केंद्रों में 30 हजार क्विंटल आलू बीज का उत्पादन होता है. इसमें पटना एक हजार क्विंटल आलू का ही उत्पादन कर रहा है, क्योंकि पटना केंद्र के पास जमीन कम है.आधुनिक पद्धति से तैयार हो रहा तीन सौ क्विंटल आलू
केेंद्र में अब आधुनिक पद्धति पर जोर दिया जा रहा है. इसमें पौैधे के सेल की टेस्टिंग करते हैं. अगर वायरस पाये भी जाते हैं, तो कैंसर की इलाज के तरह कीमो व रेडिशन से वायरस फ्री करते हैं. इसमें तीन विधि ट्यूब, एरोपोनिक्स व एआरसी से लगाते हैं. इसमें ब्रीडर तीन साल में ही तैयार हो जाते हैं. यह कंट्रोल कंडीशन में रहता है. इस विधि में बीमारियों को रोकना आसान होता है. एआरसी विधि से आलू के पौधों को क्लोनिंग विधि से मिट्टी में लगाते हैं.
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