Operation Polo Annexation of Hyderabad : आजाद भारत में 565 स्वतंत्र रियासतों को शामिल करना भारत सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसके लिए अलग से रियासत विभाग बनाया था, जिसके मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल थे. मंत्रालय में उनके सचिव वीपी मेनन थे. उन्होंने अपनी किताब THE STORY OF THE INTEGRATION OF THE INDIAN STATES में हैदराबाद के भारत में विलय की पूरी कहानी लिखी है. उन्होंने अपनी किताब में तीन चैप्टर में यह बताया है कि हैदराबाद की रियासत का इतिहास क्या था और किस तरह हैदराबाद के निजाम ने भारत के सामने हेकड़ी दिखाई और अंतत: हथियार डाल दिए.
मीर कमरुद्दीन चिन ने की थी हैदराबाद राज्य की स्थापना
वीपी मेनन ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि हैदराबाद राज्य की स्थापना मीर कमरुद्दीन चिन किलिच खान ने की थी. वह औरंगजेब के सेनापति गाजी-उद-दीन खान फिरोज जौग का पुत्र था. जिसके वंश का संबंध मुसलमानों के पहले खलीफा अबू बकर से था. 1713 में औरंगजेब की मृत्यु के छह साल बाद मुगल शासक फर्रुखसियर ने मीर कमरुद्दीन को निजाम-उल-मुल्क फिरोज जंग की उपाधि के साथ दक्कन का वायसराय बनाया. बाद में मुगल शासक मुहम्मद शाह ने उन्हें आसफ जाह की उपाधि प्रदान की और इसी उपाधि से निजामों का वंश जाना गया.
कहां स्थित था हैदराबाद रियासत
1947 का हैदराबाद आज के आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों तक फैला था. इस रियासत की तीन चौथाई आबादी हिंदुओं की थी और मुसलमानों की एक चौथाई . लेकिन रियासत में इसी एक चौथाई आबादी की तूती बोलती थी और तमाम सरकारी पदों पर वे काबिज थे. हैदराबाद रियासत 82 हजार वर्गमील तक फैला था और यहां के शासक निजाम को सबसे अमीर रियासत का मालिक माना जाता था. निजाम के पास दौलत की कोई कमी नहीं थी.
लैप्स ऑफ पैरामाउंसी ने बढ़ाई हैदराबाद के निजाम की हिम्मत
4 जून 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत की आजादी की तारीख घोषित की और यह बताया कि भारत में जो 565 रियासते हैं, उन्हें भी आजाद किया जा रहा है. माउंटबेटन ने उस संधि के खत्म होने की घोषणा की जिसके तहत ये रियासतें अंग्रेजों के अधीन थीं. लैप्स ऑफ पैरामाउंसी के तहत माउंटबेटन ने इन देसी रियासतों को दो विकल्प दिया . पहला वे या तो भारत के साथ जाएं या पाकिस्तान के और दूसरा वे स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भी रह सकते हैं. इस विकल्प के मिलने के बाद हैदराबाद के निजाम ने अपना अलग रंग दिखाना शुरू किया और यह कहा कि वे भारत में किसी भी कीमत पर शामिल नहीं होंगे. हैदराबाद के निजाम ने खुले तौर पर भारत सरकार को चेतावनी दे दी थी.
भारत ने Standstill Agreement एग्रीमेंट पेश किया
भारत के बीचोंबीच एक स्वतंत्र मुल्क किसी भी तरह भारत सरकार को गंवारा नहीं था. लेकिन हैदराबाद के निजाम इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार नहीं था, जिसके जरिए इन रियासतों का भारत में विलय होता. पंडित जोर जबरदस्ती नहीं करना चाह रहे थे क्योंकि हैदराबाद पाकिस्तान की ओर भी जा सकता था. तब पंडित नेहरू ने स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट का प्रस्ताव रखा, जिसके तहत यह व्यवस्था थी कि आजादी के एक साल तक हैदराबाद और भारत के बीच वही स्थिति रहेगी जो आजादी के समय थी. लेकिन इस प्रस्ताव को भी हैदराबाद ने नहीं स्वीकार किया. उलटे उसने दो अध्यादेश पास किया जिसके जरिए भारतीय मुद्रा पर प्रतिबंध लगा दिया गया और सभी कीमती धातुओं के हैदराबाद से भारत निर्यात को रोक दिया गया.
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कासिम रिजवी सरदार पटेल को धमकाने दिल्ली आया
निजाम का खासमखास कासिम रिजवी सरदार पटेल से मिलने दिल्ली आया था. सरदार पटेल ने उनसे शांतिपूर्ण तरीके से बात की और मसले का समाधान निकालने की कोशिश की. लेकिन कासिम रिजवी ने एक तरह से सरदार पटेल को धमकाते हुए कहा था कि पटेल साहब आप सरदार होंगे दिल्ली के, हैदरबाद में आसफ जाह का झंडा बुलंद है और वही रहेगा. कासिम रिजवी ने सरदार पटेल से कहा था हमारे पास यह विकल्प ही नहीं है कि हम भारत के साथ जाएं और हमारा स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो. उसने सरदार पटेल को यह धमकी भी दी थी कि अगर भारत सरकार का यही रुख रखा तो हैदराबाद में हिंदुओं को परेशानी हो सकती है. इसपर पटेल साहब ने उनसे कहा था कि अगर आप आत्महत्या ही करना चाहते हैं, तो क्या किया जा सकता है. कासिम रिजवी आपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था और वह एक रजाकार थे, जिसने अपना एक ट्रेनिंग कैंप चला रखा था, जहां से ट्रेनिंग पाकर रजाकर हैदराबाद में हिंदुओं पर अत्याचार करते थे.
सैन्य कार्रवाई के विरोधी थे माउंटबेटन
लॉर्ड माउंटबेटन हैदराबाद के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के विरोधी थे. वहीं नेहरू कैबिनेट में भी कुछ लोग यह मानते थे कि हैदराबाद के खिलाफ सैनिक कार्रवाई ना हो. इससे सांप्रदायिक दंगा फैलने का डर था. 22 अप्रैल 1948 को अंतत: भारत सरकार ने एक ऐसा प्लान तैयार किया, जो किसी अन्य रियासत के लिए नहीं किया गया था. इस समझौते में हैदराबाद के स्पेशल स्टेट्स को स्वीकार कर लिया गया. उसे 20 हजार तक सैनिक रखने की छूट दी गई और अपना कानून बनाने की आजादी भी दी गई. लेकिन हैदराबाद के निजाम ने इस समझौते को भी ठुकरा दिया और यह कहा कि वे अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम रखेंगे. निजाम ने पाकिस्तान के साथ व्यापार शुरू कर दिया और उसे लोन भी दिया. इससे भारत सरकार नाराज हो गई और उनके पास सैन्य कार्रवाई के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.
सैन्य कार्रवाई से पहले सरदार पटेल ने निजाम को लिखा पत्र
अंतिम प्रयास के रूप में सरदार पटेल ने 10 सितंबर 1948 को निजाम को पत्र लिखा, ताकि बात संभल जाए और सैन्य कार्रवाई की जरूरत ना पड़े. लेकिन निजाम ने अपनी जिद नहीं छोड़ी और बाध्य होकर भारत को हैदराबाद के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी.
13 सितंबर 1948 से शुरू हुआ ऑपरेशन पोलो
कोई विकल्प नहीं बचने के बाद भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो शुरू कर दिया. दोनों तरह की सेनाएं आमने–सामने थीं. चार तरफ से भारतीय सेना ने हैदराबाद में प्रवेश किया और युद्ध चला. पांच दिनों के युद्ध के बाद हैदराबाद की हालत खराब हुई. तब 17 सितंबर को निजाम ने रेडियो पर आकर अपनी हार स्वीकार की. उन्होंने इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर भी साइन करने की बात कही. इस तरह हैदराबाद रियासत भारत का हिस्सा बन गया.
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हैदराबाद रियासत को भारत में शामिल करने के लिए ऑपरेशन पोलो कब चलाया गया था?
ऑपरेशन पोलो 13 सितंबर 1948 को शुरू हुआ था और 17 सितंबर को निजाम ने हथियार डाल दिए थे.
लैप्स ऑफ पैरामाउंसी किसे कहते हैं?
लैप्स ऑफ पैरामाउंसी का विकल्प अंग्रेजों ने देसी रियासतों को दिया था, जिसमें यह व्यवस्था थी कि आजादी के बाद वे भारत या पाकिस्तान के साथ जा सकते हैं या फिर स्वतंत्र भी रह सकते हैं.