Dr Bhim Rao Ambedkar : छह दिसंबर को पुण्यतिथि के अवसर पर बीआर आंबेडकर को मुख्य रूप से भारतीय संविधान के प्रमुख शिल्पकार के रूप में स्मरण किया जाता है. इसके साथ ही उन्हें दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले एक साहसी योद्धा के रूप में भी मान्यता दी जाती है. अब तक डॉ आंबेडकर द्वारा किये गये कुछ कार्यों पर चर्चा की गयी है, पर उनके कई अन्य महत्वपूर्ण योगदानों पर विस्तृत विमर्श होना बाकी है.
संविधान निर्माण से पहले डॉ आंबेडकर के कांग्रेस की नीतियों पर किये गये आलोचनात्मक हमलों ने कांग्रेस में उनके खिलाफ विरोध को जन्म दिया, और इस दौरान सरदार पटेल ने आंबेडकर के खिलाफ मुखर रुख अपनाया. सरदार पटेल ने सार्वजनिक रूप से यह कहते हुए आरोपों का नेतृत्व किया कि संविधान सभा में डॉ आंबेडकर के प्रवेश के सभी दरवाजे और खिड़कियां बंद हैं. इस चुनौती का सामना बारिसाल जिले के वकील जोगेंद्र नाथ मंडल ने किया, जिन्होंने आंबेडकर को बॉम्बे से संविधान सभा के लिए नामांकन प्राप्त करने में सहायता की और उन्हें पूर्वी बंगाल के जेसोर-खुलना निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने का निमंत्रण दिया.
उन्नीस जुलाई, 1946 को आंबेडकर संविधान सभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए. संविधान सभा का गठन प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा चुने गये सदस्यों के साथ किया गया, जिसमें 292 सदस्य प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा चुने गये, 93 सदस्य भारतीय रियासतों द्वारा नियुक्त किये गये और चार सदस्य मुख्य आयुक्तों के प्रांतों से मनोनीत थे, कुल मिलाकर सदस्य संख्या 389 थी. विभाजन के बाद पाकिस्तान के लिए अलग संविधान सभा बनायी गयी, जिससे भारतीय संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या घटकर 299 रह गई, जिसमें भारतीय प्रांतों के 229 और रियासतों के 70 सदस्य थे. आंबेडकर सहित संविधान सभा में अनुसूचित जाति के 32 प्रतिनिधि थे.
सत्रह नवंबर, 1949 को संविधान का तीसरा और अंतिम वाचन शुरू हुआ. छब्बीस नवंबर, 1949 को ‘भारत का संविधान’ अपनाया गया. एक दिन पहले, आंबेडकर ने भारतीय राष्ट्र को एक ज्ञानवर्धक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने संविधान पर काम करने में शासक वर्गों की नैतिकता के महत्व पर जोर दिया और अपनी चेतावनी दोहरायी कि संविधान का प्रभाव केवल दस्तावेज पर निर्भर नहीं है, बल्कि इस पर कार्यान्वयन करने वाले लोगों की नैतिकता पर भी निर्भर करता है. उन्होंने कहा था कि ‘संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि उसे लागू करने वाले लोग बुरे हों, तो वह निश्चित रूप से बुरा ही होगा. वहीं, संविधान चाहे कितना भी बुरा क्यों न हो, अगर उसे लागू करने वाले लोग अच्छे हों, तो वह निश्चित रूप से अच्छा साबित होगा.
संविधान केवल राज्य के अंगों जैसे विधानमंडल, कार्यपालिका और न्यायपालिका को शक्तियां प्रदान कर सकता है, लेकिन इन अंगों का कार्य प्रभावी रूप से करना उन लोगों और राजनीतिक दलों पर निर्भर करता है, जिन्हें अपने उद्देश्यों और राजनीति को पूरा करने के लिए चुना जाता है.’ डॉ आंबेडकर ने तीन चेतावनियां दी थी, जिनमें पहली यह थी कि शिकायतों के समाधान के लिए संवैधानिक तरीकों का पालन किया जाए. उन्होंने सत्याग्रह को क्रांति के साथ जोड़कर अस्वीकृत कर दिया, क्योंकि वे इसे अराजकता का व्याकरण मानते थे.
डॉ आंबेडकर की दूसरी चेतावनी नायक पूजा के खिलाफ थी, क्योंकि उन्होंने माना कि राजनीति में भक्ति तानाशाही की ओर ले जाती है. वे कहते थे कि देश के लिए आजीवन सेवाएं देने वाले महान पुरुषों के प्रति कृतज्ञता में कुछ गलत नहीं है, लेकिन कृतज्ञता की भी एक सीमा होती है. उन्होंने चेतावनी दी कि राजनीति में अंधभक्ति से लोकतंत्र का हनन हो सकता है और यह समाज के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. उनकी तीसरी चेतावनी थी कि केवल राजनीतिक लोकतंत्र से संतुष्ट नहीं होना चाहिए, बल्कि समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों के साथ सामाजिक लोकतंत्र की ओर भी प्रयास करना चाहिए.
उन्होंने चेतावनी दी थी कि ‘राजनीतिक लोकतंत्र तब तक स्थिर नहीं रह सकता जब तक उसके आधार में सामाजिक लोकतंत्र न हो. उनका मानना था कि सामाजिक लोकतंत्र का मतलब है एक ऐसी जीवनशैली, जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को जीवन के मूल सिद्धांतों के रूप में स्वीकार करती है. आंबेडकर ने कहा कि इन तीनों को अलग करना लोकतंत्र के उद्देश्य को नष्ट कर देगा.’ उन्होंने राजनीति में भक्ति के खिलाफ कई बार बात की. हालांकि, उनके बाद उनके प्रति जो भक्ति भाव विकसित हुआ, वह उनकी चेतावनियों के विपरीत था. वे नहीं चाहते थे कि लोग महान व्यक्तियों के उपदेशों से बंधकर रहें, बल्कि वे चाहते थे कि लोग उनकी प्रेरणा से आगे बढ़ें.