मानसिक विक्षिप्त होने के कारण दोनों को बांधकर रखते हैं परिजन
घाघरा.
लोहे की जंजीरों में एक भाई-बहन की जिंदगी गुजर रही है. हम बात कर रहे हैं घाघरा प्रखंड के बनियाडीह गांव के एक परिवार की. लक्ष्मण लोहरा व उसकी पत्नी पोको देवी का बेटा व बेटी जन्म से विक्षिप्त है. इस कारण माता-पिता को पूरे दिन उसकी देखभाल करने में लग जाता है. अधिकांश समय दोनों को जंजीर से बांध कर रखा जाता है. गरीबी व आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से इलाज व देखभाल का खर्च जुटाना कठिन हो गया है. लक्ष्मण लोहरा ने बताया कि उसका बड़ा बेटा सुधीर लोहरा (30) व छोटी बेटी बालमति कुमारी (23) दोनों जन्म से विक्षिप्त है. जब वे छोटे थे, तो उन्हें संभालना थोड़ा आसान था. अब वे बड़े हो गये हैं, जिससे उन्हें संभाल पाना हमलोगों के लिए कठिन हो गया है. कोई भी कपड़ा पहनाने पर कपड़ा को फाड़ देते हैं और गांव में बिना कपड़ा के घूमने लगते हैं. आये दिन घर के सामान को बर्बाद करते हैं. गांव में घूम-घूम कर लोगों के सामान को तोड़-फोड़ कर देते हैं. कुछ दिन पूर्व कुआं के पास सिंचाई के लिए रखे पानी की मशीन को कुआं में डाल दिया. कोई भी गाड़ी सड़क के किनारे दिखता है, तो मार कर शीशा तोड़ देता है. इसके बाद इसकी भरपाई हमें मजदूरी कर चुकाना पड़ता है. कई बार तो हमें ही मारने-पीटने लगते हैं. मुख्यमंत्री से मुलाकात कर इलाज की गुहार लगायी थी. कांके स्थित रिनपास में इलाज हुआ, जहां दो दिन रखने के बाद वहां से दवा देकर भेज दिया गया. कहा गया कि यहां आंशिक विक्षिप्त का इलाज होता है. पूर्ण विक्षिप्त का इलाज नहीं होता है. बिशुनपुर विधायक चमरा लिंडा से मुलाकात कर बेंगलुरु में इलाज के लिए सरकारी सुविधा की गुहार लगायी, जिस पर चमरा लिंडा ने कहा आप अपने खर्चे पर बेंगलुरु चले जाइए. वहां पहुंचने के बाद सरकारी खर्च से इलाज कराया जायेगा. पर उनके पास आने-जाने के लिए पैसे नहीं थे. तीन बार पीएमओ को पत्र लिख चुके हैं. लक्ष्मण ने यह भी बताया कि वह तीन बार पीएमओ को पत्र लिख चुका हैं. वहां से फोन भी आया और कहा गया कि आपका आवेदन को झारखंड सरकार को भेज दिया गया है. वहां आपका इलाज झारखंड में होगा. परंतु यहां जाने के बाद दवा देकर घर भेज देते हैं. चार बार रिनपास में इलाज के लिए लेकर गये, पर एक बार भी वहां एडमिट नहीं किया गया.सरकार व प्रशासन से सहयोग करने का किया आग्रह:
लक्ष्मण ने प्रशासन से आग्रह किया है कि मेरे दोनों विक्षिप्त बेटा व बेटी को समुचित इलाज हो जाये और नहीं तो मेरा छोटा बेटा मुकेश लोहरा (28) को कोई रोजगार मिले, ताकि हम अपने दोनों विक्षिप्त बच्चों को पाल सके. सरकारी सुविधा के नाम पर सिर्फ राशन कार्ड है. इसके अलावा कुछ भी नहीं. मां पोको देवी ने कहा हम मजबूर हैं. इन दोनों को छोड़ कर कहीं बाहर कमाने भी नहीं जा सकते हैं. हमारी मदद करने वाला कोई नहीं है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है