Mokshada Ekadashi 2024 Vrat Katha: मोक्षदा एकादशी का व्रत आज 11 दिसंबर, बुधवार को मनाया जा रहा है. हिंदू पंचांग के अनुसार, यह व्रत मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी तिथि या अगहन शुक्ल एकादशी तिथि को आयोजित किया जाता है. इस दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की आराधना करते हैं. रात्रि जागरण के बाद, अगले दिन विधिपूर्वक पूजा और दान करने के बाद पारण करके व्रत का समापन किया जाता है. इस दिन विशेष कथा का पाठ करना चाहिए, आइए जानें
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, चंपा नगरी में एक शक्तिशाली राजा वैखानस निवास करते थे, जो सभी वेदों के ज्ञाता थे. उनके साहस और उदारता के कारण उनकी प्रजा सदैव खुश रहती थी. एक रात राजा ने सपने में देखा कि उनके पिता नरक में दुख भोग रहे हैं. इस सपने के बारे में उन्होंने अपनी पत्नी से चर्चा की और कहा कि मैं यहाँ सुख में हूँ, जबकि मेरे पिता इतनी पीड़ा में हैं. इस पर उनकी पत्नी ने उन्हें आश्रम जाने की सलाह दी. जब राजा आश्रम पहुँचे, तो उन्होंने कई तपस्वियों को देखा.
Mokshada Ekadashi 2024: मोक्षदा एकादशी आज, जानें क्या कुंवारी कन्याएं रख सकती हैं ये व्रत
राजा ने ऋषियों के समक्ष पर्वत मुनि को अपनी व्यथा सुनाई. उन्होंने कहा कि मेरे पिता ने मुझसे कहा है, “हे पुत्र, मैं नरक में हूँ. कृपया मुझे यहाँ से मुक्त करो.” जब से मैंने यह वचन अपने पिता के मुख से सुना है, तब से मैं अत्यंत व्याकुल हूँ. मुझे गहरी अशांति का अनुभव हो रहा है. इस राज्य, धन, पुत्र, पत्नी, हाथी, घोड़े आदि में मुझे कोई सुख नहीं मिल रहा है. ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए? अपनी समस्या व्यक्त करते हुए उनकी आँखों से आंसू बहने लगे.
राजा ने कहा- हे ब्राह्मणों! इस स्वप्न के कारण मुझे अत्यधिक कष्ट हो रहा है, जिससे मेरा सम्पूर्ण शरीर जल रहा है. कृपया आप मुझे कोई तप, दान, व्रत आदि बताएं, जिससे मैं अपने पिता को नरक से मुक्त कर सकूं. ऐसा पुत्र जो अपने माता-पिता का उद्धार नहीं कर सकता, उसका जीवन व्यर्थ है. एक श्रेष्ठ पुत्र, जो अपने माता-पिता और पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मूर्ख पुत्रों से श्रेष्ठ है. तब ब्राह्मणों ने राजा से कहा- हे राजन! यहां निकट ही भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है. आपकी समस्या का समाधान वे अवश्य करेंगे. इसके बाद राजा पर्वत ऋषि के आश्रम की ओर बढ़े.
राजा ने आश्रम में देखा कि कई शांतचित्त योगी और मुनि तपस्या में लीन थे. उसी स्थान पर पर्वत मुनि भी बैठे हुए थे. राजा ने मुनि को देखकर उन्हें साष्टांग दंडवत किया. मुनि ने राजा से कुशलक्षेम पूछा. राजा ने उत्तर दिया कि महाराज, आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुछ ठीक है, लेकिन अचानक मेरे मन में अत्यधिक अशांति उत्पन्न हो गई है. यह सुनकर पर्वत मुनि ने अपनी आँखें बंद कीं और भूतकाल का चिंतन करने लगे. इसके बाद उन्होंने राजा को सच्चाई बताई और कहा कि तुम एक पुण्यात्मा हो, जो अपने पिता के लिए इतनी चिंतित हो, लेकिन इसकी कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि तुम्हारे पिता अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं. तुम्हारे पिता ने तुम्हारी माता को बहुत कष्ट पहुँचाए हैं, जिसके कारण उन्हें नरक का अनुभव करना पड़ रहा है. राजा ने मुनि से इस समस्या का समाधान पूछा, तो मुनि ने कहा कि तुम्हें मोक्षदा एकादशी का व्रत करना चाहिए और इसके फल को अपने पिता को समर्पित करना चाहिए. राजा ने इस विधि का अनुसरण किया, जिससे उनके पिता सभी दुष्कर्मों से मुक्त हो गए. स्वर्ग की ओर जाते समय राजा ने अपने पुत्र से कहा, “हे पुत्र, तुम्हारा कल्याण हो.”
शास्त्रों के अनुसार, मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से सभी प्रकार के पाप समाप्त हो जाते हैं. इसके साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी होती है. इस कथा का पाठ या श्रवण करने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है. यह व्रत मोक्ष प्रदान करने वाला और चिंतामणि के समान सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला है.