Jamshedpur news.
झारखंड में लगातार मजदूरों की हो रही न्यूनतम मजदूरी में बढ़ोतरी ने व्यापारियों और उद्योगों की चिंता बढ़ा दी है. इसे लेकर उद्यमियों और व्यापारियों ने कड़ी आपत्ति जतायी है और कहा है कि इसे लेकर नैसर्गिक न्याय के तहत बढ़ोतरी की जाये. बार बार बेतहाशा बढ़ोतरी से बैलेंस में गड़बड़ी हो रही है. इन लोगों ने झारखंड सरकार के श्रम विभाग से संपर्क कर कहा है कि उद्योग और व्यापार पहले से ही चुनौतियों से जूझ रहा है. ऐसे में कंपनियों और व्यापार के पास मुनाफा कमाना चुनौतीपूर्ण हो चुका है. इन लोगों ने सरकार को यह भी जानकारी दी है कि झारखंड के सीमावर्ती राज्य बिहार, बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के मुकाबले झारखंड में काफी ज्यादा न्यूनतम मजदूरी है. इस कारण इन राज्यों के समकक्ष में न्यूनतम मजदूरी तय की जानी चाहिए. इनका कहना है कि सरकार की ओर से हर बार एकतरफा फैसला लेते हुए 21 से 33 फीसदी तक की बढ़ोतरी वेतनमान में कर दी गयी है. यह अन्यायपूर्ण है और इसको कम किया जाना चाहिए, ताकि उद्योगों और व्यवसाय को भी संचालित किया जा सके और कारोबार बेहतर तरीके से चल सके.बैलेंस तरीके से बढ़ोतरी हो तो मंजूर, पर अप्रत्याशित से परेशानी हो रही : सिंहभूम चेंबर
सिंहभूम चेंबर के अध्यक्ष विजय आनंद मूनका ने बताया कि वेतन बढ़ोतरी का हम लोग विरोधी नहीं है. लेकिन हम लोगों को चाहिए कि बैलेंस तरीके से वेतन में बढ़ोतरी हो. अप्रत्याशित बढ़ोतरी परेशानी पैदा करती है. इस कारण इसको सोच समझकर ही सरकार को रिव्यू करना चाहिए.वेतन बढ़ोतरी सही तरीके से हो, तो बेहतर, वहीं उद्योग चले या नहीं, ये भी सोचने की जरूरत : एसिया
उद्यमियों की संस्था एसिया के अध्यक्ष इंदर अग्रवाल ने बताया कि वेतन बढ़ोतरी सही तरीके से हो, तो बेहतर है. वहीं अगर ज्यादा हो जायेगा, तो कंपनी को चलाना भी मुश्किल हो जायेगा. श्रमायुक्त और श्रम सचिव स्तर पर बातचीत हुई है. हम लोग वो भी वेतन देने को तैयार हैं, लेकिन जहां 40 कर्मचारी की जरूरत है, वहां हम लोग 60 रखते हैं. इसकी वजह है कि एबसेंट काफी होता है. ऐसे में कैसे समन्वय बनाया जाये, यह कोशिश सरकार की होनी चाहिए.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है