Bihar News: भोजपुरी फिल्मों के मशहूर खलनायक ‘गब्बर सिंह’ विजय खरे का रविवार सुबह बंगलुरु के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. वे 79 वर्ष के थे और पिछले चार वर्षों से किडनी रोग से जूझ रहे थे, जिसके कारण उन्हें हर सप्ताह दो बार डायलिसिस करानी पड़ती थी. उनका अंतिम संस्कार सोमवार को बंगलुरु में ही किया जाएगा. विजय खरे, जो मुजफ्फरपुर के कालीबाड़ी रोड स्थित अपने पैतृक निवास से दो साल पहले अपने बेटे आशुतोष खरे के साथ बंगलुरु चले गए थे, अपनी अंतिम इच्छा के रूप में घर वापस लौटने की इच्छा रखते थे। हालांकि, यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई.
सिनेमा की दुनिया में कदम
विजय खरे ने फिल्मी दुनिया में लगभग 50 वर्ष पहले कदम रखा था. उन्होंने संगीतकार शंकर जयकिशन के पीए के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी. उनकी पहली फिल्म रईसजादा (1976) थी, जिसमें उन्होंने राकेश रोशन के साथ काम किया. इसके बाद उन्होंने 300 से ज्यादा भोजपुरी और 50 हिंदी फिल्मों में काम किया. गंगा किनारे मोरा गांव फिल्म से उन्हें भोजपुरी सिनेमा में खलनायक के रूप में पहचान मिली, जिसके बाद उन्हें ‘गब्बर सिंह’ का उपनाम मिला.
हिंदी फिल्मों में भी बनाई पहचान
विजय खरे ने हिंदी सिनेमा में भी अपनी पहचान बनाई। उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा के साथ कालका, जितेंद्र के साथ बलिदान, धर्मेंद्र के साथ लोहे और अमिताभ बच्चन के साथ गंगा जैसी प्रमुख फिल्मों में अभिनय किया. इसके अलावा, उनकी कई भोजपुरी फिल्में जैसे गंगा किनारे मोरा गांव, हमरा से बियाह करब, दूल्हा गंगा पार के और गंगा के पार सैयां हमार हिट रही हैं.
लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड और योगदान
विजय खरे को छह बार लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिल चुका था, जिसमें बिहार सरकार की कला संस्कृति विभाग से सम्मान भी शामिल है. मुजफ्फरपुर में पार्श्वगायक मुकेश और उषा मंगेशकर का कार्यक्रम आयोजित करने में भी उनका योगदान रहा. वे भोजपुरी सिनेमा में अश्लीलता के खिलाफ थे और चाहते थे कि भोजपुरी फिल्में भी हिंदी फिल्मों की तरह अच्छी कहानियों, निर्देशन और सिनेमाटोग्राफी के साथ बनें, जिन्हें परिवार के लोग एक साथ बैठकर देख सकें.