डीएलएसए की ओर से रविवार को सिविल कोर्ट स्थित लाइब्रेरी सभागार में पुलिस विभाग के अनुसंधानक अधिकारियों के बीच दक्षता कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसमें विभिन्न थाना से आये पुलिस पदाधिकारी (जो मूल रूप से दर्ज कांडों का अनुसंधान करते हैं) को एनडीपीस, पॉक्सो, एमएसीटी, महिला के विरुद्ध् हिंसा, पीड़ितों के पुनर्वास से संबंधित कानूनों पर विशेष रूप से जानकारी दी गयी. सबों को अनुसंधान ठीक तरीके से करने को कहा गया, ताकि मुकदमा के विचारण के दौरान दोषियों को सजा दी जा सके व निर्दोष कोई नहीं फंसे. कार्यशाला का उद्धाटन डीएलएसए के अध्यक्ष पीडीजे राजेश कुमार वैश्य सहित अन्य न्यायिक व पुलिस पदाधिकारियों ने दीप प्रज्वलित कर किया.
सौ अभियुक्त छूट जायें, लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं मिले
इस अवसर पर प्राधिकरण के अध्यक्ष पीडीजे राजेश कुमार वैश्य ने कहा कि न्याय की अवधारणा है कि सौ अभियुक्त छूट जाये, लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए. जांच कर रहे अधिकारियों का अनुसंधान जितना ठोस होगा, उसका विचारण करने में सुविधा होती है. सही दोषी को ही दंड मिलता है. वहीं अनुसंधान में लापरवाही बरतने पर दोषी संदेह का लाभ पाकर या अन्य कारणों से बरी हो जाता है. इस दौरान उन्होंने रात में होने वाली घटना, काउंटर केस, पोक्सो, नाबालिग के साथ दुष्कर्म, एनडीपीएस वाले मामले के अनुसंधान में बरती जाने वाली सावधानियों पर भी प्रकाश डाला व उचित निर्देश दिये. जिला जज रिचा श्रीवास्तव ने कहा कि सबसे पहले विक्टिम की पहचान करें. उसकी स्थिति की पड़ताल करें. गिरफ्तार करने के संवैधानिक अधिकारों पर भी ध्यान देने की जरूरत है. अपराध की प्रकृति के अनुसार अनुसंधान करने को कहा, ताकि दोषी को सजा मिल सके और पीडित को न्याय. इसके अलावा जिला जज प्रथम कुमार पवन, जिला जज द्वितीय निरुपम कुमार, डीएसपी जेपीएन चौधरी ने भी इस संबंध में विचार व्यक्त किये. कार्यशाला का संचालन कर रहे प्राधिकरण के सचिव डॉ. प्रदीप कुमार ने कहा कि पुलिस की भूमिका अपराध होने पर शुरू हो जाती है. अपराध के दो पक्ष हैं, पहला अपराधी को सजा दिलाना व दूसरा पीड़ित को न्याय दिलाना है. इस अवसर पर विभिन्न थाना के अनुसंघान पदाधिकारी उपस्थित थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है