Naxal violence : गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में आयोजित एक सम्मेलन में नक्सलियों से हथियार छोड़कर मुख्यधारा में लौटने की जो अपील की है, उसे व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए. जाहिर है, इस साल सुरक्षा बलों की कार्रवाई में बड़ी संख्या में नक्सलियों के मारे जाने की पृष्ठभूमि में गृह मंत्री द्वारा की नक्सलियों से की गयी आत्मसमर्पण की अपील मायने रखती है.
उन्होंने इस दौरान दो आंकड़े भी रखे. एक यह कि हाल के वर्षों में नक्सली हमलों में सुरक्षा बल के जवानों के मारे जाने के आंकड़े घटे हैं. और दूसरा यह कि इस दौरान नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों के अभियान में तेजी आयी है. वास्तविकता यह है कि 2019 से छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में दबाव बढ़ाने के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) के 277 नये कैंप स्थापित किये गये. उसके बाद से नक्सलियों के खिलाफ आक्रामक अभियान चलाया गया और सुरक्षा बलों को उसमें सफलता भी मिली.
अकेले इसी वर्ष राज्य के बस्तर समेत दूसरे इलाकों में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में भारी संख्या में नक्सली मारे गये और बहुतों ने आत्मसमर्पण किया. दरअसल नक्सली समस्या के समाधान के लिए सरकार दोतरफा रणनीति अपना रही है. एक तरफ नक्सलियों के खिलाफ अभियान तेज किया गया है, तो दूसरी ओर, स्थानीय लोगों, युवाओं और जनजातीय समाज के प्रमुखों को एक मंच पर लाने की कोशिश की जा रही है, ताकि हिंसा के रास्ते पर चले लोग मुख्यधारा में शामिल हों. गृह मंत्री ने कहा भी हिंसा का रास्ता छोड़कर आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के पुनर्वास की जिम्मेदारी सरकार की है. उन्होंने यह तो कहा ही कि मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ को नक्सलियों से मुक्त कर दिया जायेगा, उनका यह भी कहना है कि छत्तीसगढ़ के नक्सलियों से मुक्त होते ही देश नक्सल मुक्त हो जायेगा.
उनका कहना था कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने के बाद से 287 नक्सली मारे गये, 992 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया और 836 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया. यह आंकड़ा ही बताता है कि पिछले एक साल में छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ कितना सघन और आक्रामक अभियान चलाया. इसका दूसरा पहलू यह है कि आत्मसमर्पण कर चुके नक्सलियों और नक्सली हिंसा का शिकार लोगों के विकास के लिए सरकार छत्तीसगढ़ में विशेष योजनाएं ला रही हैं, जिनमें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 15,000 पक्के मकान बनाना भी शामिल है. इस दोहरी रणनीति से छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या के समाधान की उम्मीद पैदा होती है.