Ustad Zakir Hussain : उस्ताद जाकिर हुसैन के जाने से भारतीय संगीत की लय और ताल का एक युग खत्म हो गया है. तबले की लयकारी तथा संगीत के साथ विज्ञापनों की दुनिया में उन्होंने तहलका मचाया था. चाय को ‘वाह ताज’ कहने वाले उस्ताद की उंगलियों में हुनर का जादू था. उस्ताद जाकिर हुसैन तबले को गोद में रखकर सोते थे. वह कहते थे कि गणेश वंदना से लेकर बारिश की बूंदें और शिव का तांडव जिस नजाकत से मन के अंदर रूह से संवाद करता है, उसका कोई मुकाबला नहीं है.
उस्ताद को इडियोपेथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस नामक बीमारी थी
पिछले कुछ दिनों से वह सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में दाखिल थे. उन्हें इडियोपेथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस नाम की बीमारी थी. जाकिर हुसैन ने शुरुआती तालीम अपने पिता संगीतज्ञ और तबलावादक उस्ताद अल्ला रक्खा से ली थी. ग्यारह साल की उम्र में अमेरिका में एक समारोह में उन्होंने अपना पहला कंसर्ट किया था. बाद के 63 वर्षों तक उन्होंने तबले को ही जिया. तबला उनकी जिंदगी का जुनून बन गया था. वह एक ऐसे उस्ताद थे, जिन्होंने तबले से लेकर संगीत तथा फिल्मों से लेकर अंतरराष्ट्रीय कंसर्ट तक अपने हुनर का जादू दिखाया.
उस्ताद हमेशा कहते थे कि जिंदगी जीने का नाम है, दमदारी का नाम है. वह कहा करते थे- “जिंदगी अपनी शर्तों पर जियो, यह दोबारा लौटकर नहीं आयेगी.” उस्ताद जाकिर हुसैन का जन्म जम्मू-कश्मीर के झगवाल संभाग में हुआ था. बाद में कुछ समय तक वह पंजाब के गुरदासपुर में भी रहे. और जब एक बार सफर शुरू हुआ, तो फिर लौटकर पीछे मुड़ कर उन्होंने नहीं देखा. उनके जन्म होते ही उनके पिता उस्ताद अल्ला रक्खा ने उनके कान में जो राग सुनाया था, वह भी चौंकाने वाला था.
‘सैंड एंड डस्ट’ जैसी फिल्म में अभिनय किया
उस्ताद हरफनमौला शख्सियत के मालिक थे. उन्होंने ‘सैंड एंड डस्ट’ जैसी फिल्म में 1983 में अभिनय किया, एक कलाकार की हैसियत से अपनी छाप छोड़ी तथा उसके बाद ‘द परफेक्ट मर्डर’ जैसी हॉलीवुड की फिल्मों में काम करते हुए अपनी दमदार कलाकारी के जौहर भी दिखाये. परंतु उनका पहला इश्क तबला था. अपनी एक मुलाकात में उस्ताद ने बताया था कि मुझे प्रेम की ताल से अपनी मां जैसा चेहरा दिखता है और यही मुझे रूह के साथ जोड़ता है और मैं उसे लोगों के साथ जोड़ देता हूं. वह बड़ी नजाकत से शिव के डमरू तांडव तथा शंकर से लेकर बारिश की हल्की बूंदों का महीन और बारीक संगीत यंत्रों की ध्वनियों के साथ पेश करते थे. महान बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया तथा संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा के साथ उनकी जुगलबंदी संगीत का अद्भुत महा आकाश पैदा करती थी. उनमें संगीत की आकाशगंगा के ध्रुवतारे उस्ताद जाकिर हुसैन ही थे.
वह कई बार कहते थे कि हम जो कुछ करते हैं, वह शिव महिमा और श्री गणेश वंदना से शुरू होता है, फिर पूरी कायनात, पूरा ब्रह्मांड उसमें समा जाता है. यही ताल और लय का संवाद है, जिसे उस्ताद ने जी भर कर जिया. उस्ताद उन्हें पंडित रविशंकर ने कहना शुरू किया था. उनका पहला एल्बम महज 12 साल की उम्र में ही 1973 में ‘लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड’ आया था. उन्हें भारत सरकार की ओर से 37 साल की उम्र में पद्मश्री से नवाजा गया. उसके बाद पद्मभूषण और पद्मविभूषण से भी उन्हें सम्मानित किया गया.
कई बार ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित किया गया
पूरी दुनिया में घुमंतू उस्ताद के तौर पर संगीत की पताका फहराने वाले उस्ताद को आगरा बेहद पसंद था. वह हमेशा कहते थे कि आगरा किस्मत वालों को मिलता है. एक मुलाकात में उन्होंने बताया था कि उनकी मां नहीं चाहती थीं कि वह तबला बजायें, परंतु तबला उन्हें अच्छा लगता था. वह कहते थे कि जिस राग को बचपन में मैंने अनजाने में अपने पिता से कान में सुना था, वह मुझे इस मुकाम पर ले आया है. उस्ताद जाकिर हुसैन शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ जैज फ्यूजन जैसे विश्व संगीत के विशेषज्ञों में गिने जाते थे. उन्हें कई बार ग्रैमी अवार्ड से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया था.
फिल्म ‘सैंड एंड डस्ट’ में काम करने के बारे में उन्होंने कहा था कि उसके सह अभिनेता शशि कपूर ने उनसे कहा था कि तुम मेरे से ज्यादा दमदार एक्टर हो, तो उस्ताद ने एकदम से कहा कि चलो, हम गुरु-शिष्य हो जाते हैं. शबाना आजमी के साथ ‘साज’ में वह एक प्रेमी के रूप में नजर आये थे. यह उस्ताद ही थे, जिन्हें 2016 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने स्टार ग्लोबल कंसर्ट में हिस्सा लेने के लिए विशेष तौर पर आमंत्रित किया था. उस्ताद जाकिर हुसैन उसमें शामिल होने वाले भारत के पहले संगीतकार थे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)