शिक्षकों ने कहा- समग्र अनुदान के बिना स्कूल चलाना मुश्किल कोलकाता. राज्य के प्राइमरी स्कूलों की स्थिति अच्छी नहीं है. चॉक-डस्टर खरीदना ही नहीं, बल्कि परीक्षा के बाद छात्रों को मार्क्सशीट कैसे देनी है, इसे लेकर प्राथमिक शिक्षकों की रात की नींद उड़ गयी है. इतना ही नहीं, स्कूल का बिजली बिल कैसे चुकाया जाये, रोजमर्रा के काम के लिए फाइलें कहां से खरीदें, छात्रों की उपस्थिति का रिकॉर्ड कैसे रखें, इसे लेकर शिक्षक चिंता व दुविधा में हैं. हाल ही में, शिक्षा विभाग ने उच्च प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर के स्कूलों के लिए समग्र अनुदान की घोषणा की है, लेकिन प्राथमिक विद्यालयों के मामले में, उस क्षेत्र में लर्निंग में कटौती नहीं की गयी है. प्राथमिक शिक्षकों के अनुसार, प्राथमिक विद्यालयों को माध्यमिक या उच्च माध्यमिक विद्यालयों की तुलना में उस पैसे की अधिक आवश्यकता है. माध्यमिक या उच्चतर माध्यमिक स्तर के स्कूलों में छात्रों से 240 रुपये प्रति वर्ष फीस के रूप में ली जाती है. एकत्रित वेतन से एक फंड बनाया जा सकता है, जिससे स्कूल चलाने के लिए कुछ सामान तो खरीदा ही जाता है लेकिन प्री-प्राइमरी से लेकर कक्षा पांच तक की पूरी पढ़ाई मुफ्त है. शिक्षकों का कहना है कि परिणामस्वरूप, प्राथमिक विद्यालयों के लिए समग्र अनुदान के बिना स्कूल चलाना मुश्किल हो जाता है. हावड़ा के आमता क्षेत्र के एक प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक पिंटू पडुई ने कहा कि अब छात्रों का मूल्यांकन साल में तीन बार किया जाता है. तीनों असेसमेंट को मिलाकर साल के अंत में फाइनल मार्कशीट दी जाती है. हमारे स्कूल का कोष खाली है. तो फिर छात्रों को मार्कशीट कैसे दी जायेगी. शिक्षकों को अपने खर्च पर खरीदने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. हालांकि, कई शिक्षक पैसा खर्च नहीं करना चाहते हैं. कुल मिलाकर साल के अंत में मार्क्सशीट देना अनिश्चित हो गया है. कुछ शिक्षकों का यह भी कहना है कि कंपोजिट ग्रांट का पैसा नहीं मिलने के कारण कई स्कूल समय पर बिजली बिल का भुगतान नहीं कर पाते हैं. अभी बिजली नहीं काटी गयी है, लेकिन बिजली विभाग की ओर से चेतावनी जारी कर दी गयी है. प्राथमिक शिक्षक और शिक्षक नेता आनंद हांडा ने कहा कि नये साल में छात्रों की उपस्थिति पुस्तिका खरीदना एक समस्या बन रही है. आवश्यक फ़ाइलें कहां से खरीदी जायेंगी, यह सवाल बना हुआ है. कई प्राथमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या मुट्ठी भर ही है, उन स्कूलों के लिए कंपोजिट ग्रांट का आवंटन भी ज्यादा नहीं था. क्या शिक्षा विभाग वह भी उपलब्ध नहीं करा सकता? शिक्षक यह सवाल उठा रहे हैं.
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