Patna News: भिखारी ठाकुर बिहार की सांस्कृतिक धरोहर हैं. उनके कला को संजोने और उसे नयी पीढ़ी तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य है. यह बातें बुधवार को बिहार संग्रहालय में भिखारी ठाकुर की 137वीं जयंती (Bhikhari Thakur ki Jayanti) के अवसर पर ‘भिखारी ठाकुर के रंगमंच’ विषय पर आयोजित विशेष व्याख्यान में बिहार म्यूजियम के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह ने कही. उन्होंने बताया कि भिखारी ठाकुर के नाटकों में समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया जाता था, जो आज भी प्रासंगिक हैं. अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने भिखारी ठाकुर की कला पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि भिखारी ठाकुर सामाजिक चेतना को जागरूक करने वाले कलाकार थे और उनकी लोकप्रियता आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है. उन्होंने कहा कि भिखारी ठाकुर के नाटक समाज की विद्रूपताओं पर व्यंग्य करने की क्षमता रखते थे और उनके पात्र किसी भी समय नाटकों में आकर दर्शकों से संवाद स्थापित कर सकते थे. वहीं, प्रमोद कुमार ने भिखारी ठाकुर और डायस्पोरा पर अपने विचार प्रस्तुत किए. उन्होंने कहा कि नाटक ‘गबरघिचोर’ भिखारी ठाकुर का महत्वपूर्ण लोक नाटक है, जिसे बिदेसिया नाटक का सीक्वल माना जाता है. यह नाटक विस्थापन और स्त्री विमर्श पर केंद्रित है, जिसमें स्त्री के मातृत्व और अधिकार को प्रमुख रूप से प्रदर्शित किया गया है. नाटक में पूर्वांचल क्षेत्र की नृत्य और गायन शैलियों को भी शामिल किया गया है, जैसे नृत्य, पूर्वी गीत, निर्गुण गीत आदि.
नाटक ‘गबरघिचोर’ के मंचन ने दर्शकों का मोहा मन
भिखारी ठाकुर की 137वीं जयंती पर बिहार संग्रहालय में भिखारी ठाकुर रंग मंडल प्रशिक्षण एवं शोध केंद्र की ओर से प्रसिद्ध नाटक ‘गबरघिचोर’ की शानदार प्रस्तुति की गयी. नाटक का निर्देशन डॉ जैनेन्द्र दोस्त ने किया, जिन्होंने भिखारी ठाकुर के रंगमंच पर गहन अध्ययन किया है. उन्होंने अब तक 15 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया है और उनका यह प्रयास भिखारी ठाकुर की कला को जीवित रखने के लिए महत्वपूर्ण कदम है. नाटक में दिखाया जाता है कि गलीज शादी कर गांव छोड़कर कमाने परदेस जाता है. पति के जाने के बाद गलीज बहू का गांव के ही एक मनचले युवक गड़बड़ी से संबंध हो जाता है. समाज की सारी लानतों के बावजूद वह अपने पुत्र का बड़े प्यार से लालन पालन करती है. गबरघिचोर पंद्रह साल का हो गया. गलीज को परदेस में उसके गांव का कोई यह घटना बता देता है. गलीज लौटता है और पत्नी को छोड़ गबरघिचोर को अपने साथ शहर ले जाना चाहता है, लेकिन गलीज बहू बच्चे को छोड़ने को तैयार नहीं होती है. तब पंच आते हैं और तीनों से सबूत पेश करने को कहते और तीनों बेटे के हक में अपना-अपना सबूत पेश करते हैं. तब पंच ने निर्णय लिया कि गबरघिचोर को काटकर तीन हिस्सों में बराबर बांट दिया जाय.
प्रेमचंद रंगशाला में भिखारी ठाकुर की मनी जयंती
बिहार सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग तथा भारतीय नृत्य कला मंदिर के सहयोग से प्रेमचंद रंगशाला में भिखारी ठाकुर की 137वीं जयंती के अवसर पर एक विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत भिखारी ठाकुर को समर्पित गायन से हुई, जिसे रामेश्वर गोप और उनके साथियों ने प्रस्तुत किया. वे भिखारी ठाकुर के जिले से संबंधित हैं. उन्होंने ‘लगता पियावा बटोहिया’ और पूर्वी गीत ‘चढ़ता जवानी, आग लगे रुपया के’ प्रस्तुत कर सभागार में उपस्थित दर्शकों का दिल जीत लिया. उनके साथ नगाड़े पर प्रेम पंडित, ढोलक पर गौरव पंडित, बैंजो पर रविंद्र रशिज्ञ, पैड पर संतोष कुमार, खंजरी पर अरविंद कुमार जी और झाल एवं इफेक्ट पर अन्य कलाकारों ने साथ दिया. इस अवसर पर भिखारी ठाकुर द्वारा रचित प्रसिद्ध नाटक ‘गबरघिचोर’ का मंचन भी किया गया, जिसकी संगीत परिकल्पना और निर्देशन अनहद के सचिव राजू मिश्रा द्वारा किया गया. इस नाटक में एक महिला और उसके बेटे गबरघिचोर के संघर्ष की दिखी. इसे अभिनय अंजलि शर्मा, स्पर्श मिश्रा, नंदन कुमार व राजू मिश्रा ने किया. मंच संचालन समीर चंद्र ने की. इस अवसर पर कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के उप सचिव सुशांत कुमार, उप सचिव अनिल कुमार सिन्हा व अन्य ने उपस्थिति दर्ज कर श्रद्धांजलि दी.
भिखारी ठाकुर की जयंती पर दी गयी श्रद्धांजलि
खगौल : भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की जयंती पर मंथन कला परिषद खगौल के कार्यालय में उनका जन्मदिवस धूमधाम से मनाया गया. स्व ठाकुर के चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी. साथ ही उनके रचे गये गीतों को प्रस्तुत कर उनकी स्मृति को नमन किया गया. संस्था के महासचिव प्रमोद कुमार त्रिपाठी ने कहा, भिखारी ठाकुर को भोजपुरी के शेक्सपियर के नाम से जाना जाता है. उन्होंने गांव की स्थानीय शैली में नाटकों का मंचन कर समाज को उसकी समस्याओं और कुरीतियों से रूबरू कराया. उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं और समाज को जागरूक करने का संदेश देती हैं. मौके पर नीरज कुमार, रोहन राज, प्रीतम कुमार, कामेश्वर आजाद, दिनानाथ गोस्वामी, हेमा राज व अमरजीत शर्मा समेत कई महिला रंगकर्मी मौजूद थीं.
भिखारी ठाकुर ने समाज के सबसे निचले तबके को पात्र बनाया
खगौल : सांस्कृतिक नाट्य संस्था ‘सूत्रधार’ की ओर से महान लोक नाटककार, गायक भिखारी ठाकुर की 137वीं जयंती पर लघु नाट्य प्रस्तुति, लोकगायन एवं परिचर्चा का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत भिखारी ठाकुर के चित्र पर पुष्प अर्पित कर किया गया. मौके पर ‘नाटकों के पात्रों के नाम उनके निहितार्थ’ विषय पर परिचर्चा नवाब आलम की अध्यक्षता में हुई. ठाकुर द्वारा लिखित नाटकों की लघु नाट्य प्रस्तुति रंगकर्मी अनिल कुमार ‘सुमन’ द्वारा की गयी. साथ ही वरीय लोक कलाकार अखिलेश सिंह, युवा कलाकार संजय यादव द्वारा लोक गीत की प्रस्तुत दी. वहीं परिचर्चा में वरिष्ठ रंगकर्मी अनीश अंकुर ने बताया कि भिखारी ठाकुर ने समाज के सबसे निचले तबके को पात्र बनाया. जैसे- बिदेसी, चेथरू, उपद्दर, गलीज, भलेहू, उदवास, चपाट राम आदि. महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें ‘अनगढ़ हीरा’ कहा है. जबकि नाटककार जगदीश चंद्र माथुर ने उन्हें ‘भारत मुनि का वंशज’ भिखारी ठाकुर को पिछड़ा-दलित खांचे में रखकर नहीं रखा जा सकता. रंगकर्मी उदय कुमार ने कहा कि उनके नाटकों के पात्र समाज के वंचित समाज से जुड़े रहते थे. मौके पर पत्रकार सुधीर मधुकर, पवन कुमार ,अनिल कुमार सिंह, पृथ्वी राज पासवान,बीरेंद्र कुमार, चंदू प्रिंस,प्रीतम कुमार, रोहित कुमार,नवीन कुमार मो सज्जाद, संजय कुमार गुप्ता, शोएब कुरैशी, शमशाद अनवर, महेश चौधरी, संजय यादव, अखिलेश सिंह,प्रेम, आशुतोष श्रीवास्तव विकास पप्पू , भोला, राजीव त्रिपाठी,आसिफ समेत कई लोग मौजूद रहे.
भिखारी ठाकुर की रचनाओं में दिखता है स्त्री विमर्श
लोकगायिका मनीषा श्रीवास्तव कहती हैं, साहित्य समाज का दर्पण होता है, और भिखारी ठाकुर ने अपने नाटकों और गीतों के माध्यम से समाज की विसंगतियों को उजागर किया. उन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर कहा जाता है. भिखारी ठाकुर ने अपनी रचनाओं में स्त्रियों की पीड़ा और संघर्ष को प्रमुखता से उठाया. उन्होंने बाल विवाह, विधवा पर अत्याचार, बेमेल विवाह और स्त्रियों के सामाजिक उत्पीड़न पर गहरे सवाल उठाए. उनके नाटक ‘विदेसिया’, ‘गबरघिचोर’, और ‘विधवा विलाप’ में स्त्रियों की मनोदशा और उनके अधिकारों की बात की गई है. भिखारी ठाकुर ने न सिर्फ इन विषयों पर लेखन किया, बल्कि उनका मंचन भी कर समाज के सामने रखा. ताकि लोग अपनी गलतियों को समझ सकें. उनके नाटकों में स्त्री के अधिकार, सम्मान और स्वावलंबन की ओर एक मजबूत संदेश दिया गया है, जो आज भी प्रासंगिक है. उनके कार्यों ने स्त्री विमर्श को समाज में एक नई दिशा दी.
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