परिजनों ने जमीन जायदाद को बेचकर लगा इलाज में लगाये लाखों रुपये, अब केन्द्र सरकार से मदद की गुहार परबत्ता. जिले में इन दिनों ‘ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी”” ( डीएमडी) बीमारी से आधे दर्जन से अधिक बच्चे जूझ रहे हैं. ग्रसित बच्चों के इलाज के लिये परिजन लाखों रूपये लगा चुके हैं. अब परिजन केंद्र सरकार से मदद की गुहार लगा रहे. ‘ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी”” ( डीएमडी) जीन में गड़बड़ी की वजह से होने वाली एक दुर्लभ जेनेटिक (अनुवांशिक) बीमारी है. मिली जानकारी के अनुसार डीएमडी बीमारी से मानसी चकहुसैनी निबासी राजू कुमार के पुत्र माही राज बेलदौर बलतारा निबासी रणधीर कुमार रंजन के पुत्र हेरव (शिवांश), परबत्ता नयागांव पंचखुट्टी के रंजीत साह के पुत्र प्रियांशू राज ग्रसित हैं. माही राज बिस्तर पर है तथा प्रियांशु राज व्हीलचेयर पर जिंदगी बिता रहे हैं. मानसी के राजू कुमार ने अपने बच्चे के लिए सारी पूंजी लगभग तीस लाख रुपए खर्च कर चुके हैं. नयागांव पंचखुट्टी के मजदूर रंजीत साह एकलौता पुत्र के लिए सारी जमीन जायदाद बेचकर लगभग 15 लाख खर्च चुके हैं. बलतारा के रंधीर कुमार भी 17 लाख रुपये बच्चे के लिए खर्च कर चुके हैं. अब परिजनों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो चुका है. उनके 7 वर्षीय पुत्र फिलहाल किसी तरह चल फिर रहे हैं. भरतखण्ड निवासी बाल कृष्ण चौधरी एवं पप्पी देवी के दो ही पुत्र है. 17 वर्षीय आदर्श कुमार, 15 वर्षीय सावन कुमार डीएमडी बीमारी से पीड़ित है. इन दोनों पुत्र के लिए उनके परिजनों ने सारी जमीन जायदाद को बेचकर बीस लाख रुपये खर्च कर चुके हैं. एक पुत्र बिस्तर पर जिंदगी और मौत से जूझ रहा है तो दूसरा व्हीलचेयर पर है. परिजनों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो चुका है. बीमारी के लक्षण सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र परबत्ता में कार्यरत डॉ कुमार आशुतोष ने बताया कि डीएमडी बीमारी की शुरुआत दौर में पांव की मांसपेशियों के कमजोर होने से होती है, जिससे बच्चे को चलने में दिक्कत होने लगती है. लेकिन जल्द ही, ये रोग हृदय और फेफड़ों सहित शरीर की हर मांसपेशी को अपनी चपेट में ले लेता है. बच्चों में इस बीमारी की पहचान अमूमन उसके एक से दो साल की उम्र के अंदर ही हो जाता है. इस बीमारी में बच्चे की मांसपेशियां सूखने लगती है. बच्चे के चलने-फिरने में परेशानी होती है. अगर वह चलता है तो वह लंगड़ाकर चलता है. अगर ये बीमारी बच्चों में दस साल की उम्र से ज्यादा रह गयी तो उसके ह्रदय की मांसपेशियां तक सूखने लगेगी, जिससे कि वह कॉर्डियोमायोपैथी का शिकार हो जाता है. 6 से 8 वर्ष की आयु में बच्चा व्हीलचेयर पर पहुंच जाता है इसके बाद 12 साल के उम्र में बच्चा बिस्तर पकड़ लेता है. सांसद ने संसद में उठाया मामला विगत दिनों खगड़िया के सांसद राजेश वर्मा ने संसद में डीएमडी पीड़ित बच्चे का मामला उठाया. सांसद राजेश वर्मा में सदन में अपनी बात रखते हुए बताया कि यह बीमारी बहुत ही गंभीर बीमारी है इस बीमारी से पूरे देश मे 4 हजार से ज्यादा बच्चे ग्रसित है वही बिहार में लगभग 250 बच्चे भागलपुर में लगभग 16 बच्चे तथा खगड़िया लोकसभा क्षेत्र में लगभग 3 ऐसे बच्चे है जो इस गंभीर बीमारी से जूझ रहे है. इसके इलाज के लिये लाखों रूपये लगते हैं. इतना महंगा इंजेक्शन पीड़ित परिवार के लिए असंभव है हम आपके माध्यम से उनके इलाज के लिए सार्थक पहल करने की अपील करते हैं.
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