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कृषि क्षेत्र में बदलाव के लिए

Agriculture Sector : किसानों की समस्याओं के हल के लिए अपनी रिपोर्ट संसद के पटल पर रखी है, जिसमें सभी 23 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी देने, पीएम किसान निधि को बढ़ाकर सालाना 12,000 रुपये करने और किसानों की कर्ज माफी के लिए योजना बनाने की सिफारिश की गयी है.

Agriculture Sector : कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी की अध्यक्षता वाली कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर गठित संसदीय समिति ने किसानों की समस्याओं के हल के लिए अपनी रिपोर्ट संसद के पटल पर रखी है, जिसमें सभी 23 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी देने, पीएम किसान निधि को बढ़ाकर सालाना 12,000 रुपये करने और किसानों की कर्ज माफी के लिए योजना बनाने की सिफारिश की गयी है. समिति के मुताबिक, किसानों की आय में आ रही गिरावट के कारण ही उन पर कर्ज बढ़ रहा है, और वे आत्महत्या करने को मजबूर हैं.

समिति ने इस पर चिंता जतायी कि ग्रामीणों की आय में लगातार गिरावट आ रही है. आंकड़ा भी बताता है कि 2016-17 से 2021-22 के बीच कर्ज लेने वाले ग्रामीण परिवारों का प्रतिशत 47.4 प्रतिशत से बढ़कर 52 फीसदी हो गया. संसदीय समिति ने कृषि का बजट बढ़ाने और पराली निपटान के लिए मुआवजे की भी सिफारिश की है, ताकि पराली जलाने से किसानों को रोका जा सके. दरअसल धान के अवशेषों का प्रबंधन पर्यावरण से जुड़ा एक बड़ा मुद्दा है. अभी किसानों की मांग यह है कि उन्हें पराली के उचित निपटान या प्रबंधन के लिए सौ रुपये प्रति क्विंटल दिये जायें.

समिति ने यह भी सिफारिश की है कि गोपालकों को आर्थिक मदद दी जाये, ताकि वे दूध न देने वाली गायों को न छोड़ें. स्थायी समिति ने मनरेगा के तहत मजदूरी बढ़ाने के लिए सभी हितधारकों को साथ लेकर कदम उठाने की सिफारिश भी केंद्र से की है. समिति ने मनरेगा के तहत मजदूरी को मुद्रास्फीति के अनुरूप किसी सूचकांक के साथ जोड़कर बढ़ाने का आग्रह बार-बार किया है, पर सूचकांक में कोई बदलाव न होने के कारण मनरेगा की मजदूरी पहले की तरह बनी हुई है. गौरतलब है कि इन दिनों एमएसपी को कानूनी गारंटी देने की मांग पर खन्नौरी में संयुक्त किसान मोर्चा का अनशन चल रहा है, जबकि शंभू बॉर्डर पर किसान-मजदूर संघर्ष कमेटी धरने पर बैठी है.

किसानों के चल रहे आंदोलन में एक मांग कर्ज माफी भी है. किसानों का क्षोभ इस पर भी है कि केंद्र ने उनकी मांगों पर चुप्पी साध रखी है. समिति का कहना है कि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी गारंटी मिलती है, तो इससे किसानों को उनकी फसल की सुनिश्चित कीमत मिल सकेगी और इससे खेती में निवेश भी बढ़ेगा. संसदीय समिति की इन सिफारिशों पर अमल हो, तो कृषि क्षेत्र में बेहतर बदलाव हो सकता है.

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