मेरे ऐशोआराम व परिवार की सुविधा के लिए आपने बहुत कर्ज ले रखा था. कभी महाजन की धमकी, तो कभी मार खाने को विवश थे. हम कर्ज चुका आये हैं. अब कर्ज नहीं लिजीयेगा. उक्त संवाद के साथ सुगनी ने अपने पति बुधवा को समक्षाते हुए कर्ज के कारण बढ़ रही आत्महत्या की घटना पर रोक लगाने के लिए कसक नाटक का मंचन करते हुए संवाद किया. मौका था भागलपुर रंग महोत्सव के पहले दिन शनिवार को जमशेदपुर की सांस्कृतिक टीम गीता थियेटर के कलाकारों द्वारा कसक नाटक के मंचन का. नाटक कसक में सुगनी ने कर्ज के बोझ को खत्म करने के लिए अपना इज्जत गंवा दिया, ताकि उनकी बेटी की इज्जत और पति की जान बच सके. नाटक में महाजन और उसे लठैतों से परेशान होकर सुगनी ने परिवार की रक्षा के लिए पहले अपनी इज्जत गंवा दी और फिर पति की रक्षा के लिए आत्महत्या कर ली. यह दृश्य देखकर दर्शक भावुक हो उठे. नाटक मं गीता कुमारी ने सुगनी का, अनंद सरदार ने बुधवा, सिमोती ने फलवा, तुफैल ने सोहन, प्रेम दीक्षित ने सेठ का, तो अफजल, महेंद्र ने लठैत की मंजी हुई भूमिका निभायी. पूस की रात में किसान की बेबसी और जमींदार की कार्यशैली को किया जीवंत पहले दिन रंग महोत्सव में रंगग्राम जन सांस्कृतिक मंच ने मुंशी प्रेमचंद की कहानी पूस की रात पर आधारित नाटक का मंचन किया. नाटक के माध्यम से मजदूर, किसान, पूंजीपति जमीदार की कार्यशैली को प्रदर्शित किया गया. जमीदार व किसान का संबंध, किसान के खेती पर पड़ने वाले प्रभाव व किसान की मजबूरी, खेती की स्थिति, परेशान किसान, कर्ज तले दबे किसान, परिवार के सदस्यों का जीवन स्तर आदि को नाटक में दिखाया गया. प्रेमचंद की कहानी आज के वैज्ञानिक युग में आधुनिक भारत के किसानों की सच्ची तस्वीर है. नाटक में कपिलदेव रंग, मनोज पंडित, सुनील रंग आदि ने नाटक को जीवंत कर दिया. पेट की मजबूरी में परिवार को खो दिया गलीज पटना की टीम रंगश्री के कलाकारों ने भिखारी ठाकुर की रचना गबरघिचोर पर आधारित नाटक का मंचन किया. नाटक में समाज के सच को सामने लाया गया. गलीज परिवार व खुद के पेट की आग बुझाने के लिए प्रदेश में लंबे समय तक बिताया. पेंट की मजबूरी में परिवार को समय नहीं दे पाता और अपनी पत्नी गलीज बो को खो देता है. गलीज बो किसी और के संपर्क में आ जाती है और पुत्र गबरघिचोर को जन्म देती है. पुत्र पर प्रेमी व पति दोनो दावा करता है. पंच की ओर से वास्तविक पिता के पक्ष में न्याय किया जाता. ऐसे में गलीज अपने परिवार को खो देता है. नाटक का निर्देशन प्रेमराज वर्मा ने किया. नाटक में रविराज, प्रेमराज वर्मा, श्रेया चक्रवर्ती, स्पर्श कश्यप, नवनीत कुमार, राकेश मिश्रा आदि ने मंजी हुई भूमिका की. बांग्ला नाटक निश्पत्ति में दिखा नारी सशक्तीकरण जलपाईगुड़ी दर्पण नाट्य गोष्ठी की ओर से महिला कलाकारों ने बांग्ला नाटक निश्पत्ति का मंचन किया गया. इसमें सभी कलाकार महिला थीं, जिन्होंने महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा दिया. इस नाटक में पति पत्नी को छोड़ देता है. पत्नी 12 साल तक पति का इंतजार करती है, ताकि सुलह हो जाये. जब पति से मेलमिलाप नहीं होता, तो पति का श्राद्ध करके जिंदा पति की विधवा पत्नी बन जाती है. नाटक में तंद्रा चक्रवर्ती, कृष्णा चक्रवर्ती, दीपा भट्टाचार्य, शुभ्रा मौलिक, काकुलु बसु राय आदि ने मंजी हुई भूमिका की. कलाकारों ने बताया कि 20 साल पहले शुरू हुए अभिनय का सफर जारी है. अधिकतर कलाकार की उम्र 55 स 60 साल है. सभी सदस्य महिला हैं. नारी सशक्तीकरण आधारित नाटक का मंचन कर रही हैं. अब तक देश के महानगरों में मंचन कर चुकी है. बांग्ला फिल्म में भूमिका कर चुकी है.
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