Nirmal Mahto Jayanti, जमशेदपुर, संजीव भारद्वाज: आज पूरे झारखंड शहीद निर्मल महतो को श्रद्धांजलि दे रहा है. उनके आंदोलन से जुड़ी कई किस्से कहानियां लोगों ने सुनी है. लेकिन बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है वह एक बार जमशेदपुर की एक बेटी की शादी टूटने से भी बचायी थी. अगर उनके आसपास कोई मुसीबत में रहता था तो वह उनकी मदद जरूर करते थे. ऐसा ही एक वाक्या का जिक्र विधायक सविता महतो ने किया है. उन्होंने प्रभात खबर से खास बातचीत में बताया कि जमशेदपुर के कदमा में एक बेटी की शादी टूटने से निर्मल दा ने बचा ली.
जब लड़के वालों ने कर दी लड़की के पिता से सोने की चेन की डिमांड
ईचागढ़ की विधायक सविता महतो ने कहा कि एक बार पश्चिम बंगाल से बारात आयी थी. विवाह से पहले लड़का पक्ष के लोगों ने सोने की चेन की डिमांड कर दी. लड़के वालों ने साफ कह दिया कि शादी से पहले सोने की चेन नहीं मिली, तो विवाह नहीं होगा और बारात लौट जायेगी. निर्मल महतो को इसकी खबर मिली, तो वह तुरंत वहां पहुंचे. लड़की के पिता से कहा कि आप लड़के वालों से कह दें कि आपको सोने की चेन मिलेगी.
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निर्मल महतो ने अपने सोने की चेन देकर शादी टूटने से बचायी
निर्मल महतो ने अपने गले से सोने की चेन उतारी और लड़की के पिता को देते हुए कहा कि आप लड़के वालों को इसे दे दें. निर्मल दा ने जो सोने की चेन लड़की के पिता को दी, वह चेन उनकी मां (मेरी सास) ने उन्हें दी थी. इस सोने की चेन को वह हमेशा पहनते थे. अपनी मां की निशानी देकर किसी की बेटी की शादी कराने वाला किसी मसीहा से कम नहीं होता.
तिरुलडीह गोलीकांड में शहीदों के शव लेने कोई नहीं पहुंचा, तो खुद बने अभिभावक
एक ही ऐसा ही दूसरा किस्सा है तिरुलडीह गोलीकांड से जुड़ी हुआ है. इस संबंध में शहीद निर्मल महतो के करीबी व कई आंदोलनों में साथ रहे हिकिम चंद्र महतो बताते हैं कि 42 साल पहले 20 अक्तूबर 1982 को ईचागढ़ को करीब एक हजार छात्रों के साथ क्षेत्र को सूखा घोषित करने, अगल झारखंड राज्य समेत 21 सूत्री मांगों को लेकर आंदोलन के लिए जुटान हुआ था. अगले दिन 21 अक्तूबर 1982 को ईचागढ़ के मुख्यालय तिरूलडीह में छात्रों पर गोलीकांड में अजीत महतो, धनंजय महतो की मौत हो गयी थी. पुलिस ने आंदोलित क्रांतियुवा मोर्चा के तत्कालीन महासचिव हिकिम महतो समेत 41 लोगों को जेल भेजा था. जेल से एक पत्र लिखकर निर्मल महतो को जमशेदपुर (उलियान) भेजा था. शवों को पोस्टमार्टम के लिए एमजीएम अस्पताल भेजा गया था. उस समय पुलिसिया कार्रवाई का खौफ इतना था कि परिजन या अन्य कोई शव लेने तक नहीं पहुंचे. तब पत्र मिलने के बाद निर्मल महतो ने एमजीएम अस्पताल में पोस्टमार्टम के बाद दोनों शवों को बतौर अभिभावक लिया, इतना ही नहीं दोनों का साकची सुवर्णरेखा बर्निंग घाट में अंतिम संस्कार भी किया. इसके बाद सर्वदलीय संघर्ष समिति का गठन कर गोलीकांड व पुलिसिया कार्रवाई के खिलाफ आंदोलन शुरू किया. इस समिति में अध्यक्ष सुरेश खेतान को बनाया गया, जबकि महासचिव निर्मल महतो को चुना गया था. आंदोलन की धार इतनी तेज थी, कि ईचागढ़ तिरुलडीह गोलीकांड का मामला बिहार के पटना मुख्यालय से लेकर दिल्ली की केंद्र सरकार मुख्यालय तक पहुंच गयी थी. सरकार के हस्तक्षेप से आंदोलन के दौरान करीब डेढ़ माह बाद पीआर बॉन्ड पर हिकिम महतो समेत अन्य आंदोलित छात्रों को सरायकेला जेल से छोड़ा गया था.
रैयतों को पूरा मुआवजा नहीं मिलने पर रोड काटकर आंदोलन पर बैठे
शहीद निर्मल महतो के आंदोलन के साथी रहे व चांडिल खोचीडीह के रहने वाले 80 वर्षीय गोपाल महतो बताते हैं कि करीब 41 साल पूर्व 1983 में अविभाजित सिंहभूम में (वर्तमान में सरायकेला खरसावां जिला) कांड्रा से चौका एनएच 33 रोड में जमीन गये 60-62 ग्रामीण रैयतों को पूरा मुआवजा नहीं मिला था. ग्रामीण रैयत अपनी जमीन के मुआवजा के लिए कई दिनों से पथ निर्माण विभाग, भू-अर्जन कार्यालय व पश्चिम सिंहभूम स्थित उपायुक्त कार्यालय के चक्कर लगाकर परेशान थे. कोई अधिकारी सीधे मुंह बात नहीं करता था. तब ग्रामीण रैयतों ने इसकी जानकारी उलियान आकर निर्मल महतो को दी. तब निर्मल महतो ने पहले चांडिल में फिर खोचीडीह में ग्रामीणों के साथ बैठक की और आंदोलन करने का निर्णय सर्वसम्मति से लिया. निर्मल महतो ने स्वयं कांड्रा चौका रोड ग्रामीण व रैयतों के साथ मिलकर नये बने रोड को काटकर आवाजाही बंद कर दी थी. इतना ही नहीं ग्रामीणों व रैयकों के साथ सड़क पर बैठ गये थे. उक्त आंदोलन की जानकारी सिंहभूम से लेकर बिहार के पटना मुख्यालय तक पहुंच गयी थी. फिर आनन-फानन में अधिकारी को गांव भेजा गया. सभी 60-62 ग्रामीण रैयतों को जमीन का पूरा मुआवजा बांटा गया था. ग्रामीण रैयतों ने उस दिन निर्मल महतो को कांधे पर उठाकर होली-दीपावली मनायी थी.
किसी के हर सुख में नहीं, पर दुख में निश्चित रूप से शामिल होते थे
शहीद निर्मल महतो के करीबी चांडिल रघुनाथपुर के रहने वाले विजय चंद्र महतो बताते हैं कि निर्मल महतो के मिलनसार स्वभाव को जीवन में कभी भूल नहीं सकते. उन्हें (निर्मल महतो) जानकारी देने पर घर परिवार के हर सुख में नहीं, लेकिन दुख के समय में निश्चित रूप से शामिल होते थे. कई ऐसा मौका था कि निर्मल महतो देर रात उनके घर पहुंचकर घंटों रुके और मनभर बातें की.
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