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History of Munda Tribes 4 : मुंडा समाज में कानून की दस्तक था ‘किलि’, जानें कैसे हुई थी शुरुआत

History of Munda Tribes : मुंडा समाज का अधिकतर इतिहास अलिखित है, यही कारण है उनकी परंपराओं के बारे में कोई पुष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है. लेकिन जब हम शासन व्यवस्था की बात करते हैं तो सबसे पहले हमारी नजर मुंडाओं की किलि परंपरा पर जाती है. किलि परंपरा के जरिए मुंडाओं ने अपने समाज को व्यवस्थित किया था. मुंडा जब छोटानागपुर आए तो उन्होंने किलि बनाए, लेकिन उसकी संख्या कितनी थी इसे पुष्टि के साथ बताना मुश्किल है. इस लेख में हम यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि किलि क्या है और कैसे उसकी शुरुआत हुई थी

History of Munda Tribes 4 : मुंडा समाज की शासन व्यवस्था पर अगर हम गौर करें तो हमें सबसे पहले उनके किलि को समझना होगा क्योंकि यहीं से उनके शासन व्यवस्था की शुरुआत मानी जा सकती है. जब मुंडा छोटानागपुर आए और अपना समाज यहां बसाया, तो उन्होंने 50-100 घरों को मिलाकर एक गांव बसाया. चूंकि मुंडाओं ने छोटानागपुर में अपने लिए सुरक्षित आशियाना ढूंढ़ लिया था, इसलिए अब उनका उद्देश्य एक सुंदर समाज बनाने का था. इसके लिए उन्होंने समाज को संगठित और सुव्यवस्थित करने का प्रयास किया, जिसके परिणामस्वरूप किलि का जन्म हुआ.

क्या है किलि (what is Killi in Munda Tradition)

किलि का अर्थ है पहचान. मुंडाओं ने अपनी पहचान के लिए किलि का निर्माण किया और आज भी यह पहचान उनके समाज का अभिन्न अंग है. किलि को समझने की कोशिश करें तो हम इसे कबीला(Clan) या हिंदुओं में प्रचलित कुल के समान मान सकते हैं. मिथिलांचल में शादी विवाह के दौरान गोत्र और मूल की चर्चा होती है, इसमें जो मूल है वह काफी हद तक मुंडाओं के किलि के समान है. मिथिलांचल के मूल का अर्थ उनकी पहचान से ही जुड़ा माना जाता है,जो उनके मूल निवास स्थान के बारे में बताता है.

कब हुई किलि की शुरुआत

Marriage In Mundas
मुंडा परंपरा के अनुसार एक किलि में विवाह वर्जित है.

मुंडाओं में किलि की शुरुआत कब हुई इसके बारे में कोई प्रमाण तो नहीं है, क्योंकि मुंडाओं के प्राचीन इतिहास अलिखित हैं. शरदचंद्र राय ने अपनी किताब The Mundas and Their Country में मुंडाओं के किलि के बारे में लिखा है कि जब मुंडाओं का बाहरी लोगों से विवाद होता था तो परिवार और समुदाय के सभी लोग उस बाहरी व्यक्ति को दंडित करने के लिए एकजुट हो जाते थे. धीरे-धीरे यह भावना और विकसित होने लगी. साथ ही लोगों में यह भावना भी विकसित होने लगी कि वे एक ही कुल या किलि के हैं जिसकी वजह से वे अपने साथ की लड़कियों या लड़के से विवाह करने में संकोच करने लगे, लेकिन परिवार का विस्तार तो करना ही था, इन परिस्थितियों में किलि की व्यवस्था बनी जिसके तहत विवाह के लिए नियम बनाए गए. यह परंपरा एक तरह से मुंडाओं के बीच शासन व्यवस्था की पहली कड़ी कही जा सकती है.

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शरतचंद्र लिखते हैं कि एक पूर्वज के सभी बच्चों को एक ही किलि का हिस्सा बताया गया और उनके बीच विवाह निषिद्ध कर दिया गया. किलि को सार्थक स्वरूप देने के लिए इसके नामकरण में धर्म और विश्वास को जोड़ा गया, जो ऐतिहासिक दृष्टि से काल्पनिक प्रतीत होते हैं, लेकिन विवाह को वैध बनाने और सामाजिक व्यवस्था बनाने के लिए यह मुंडाओं की परंपरा का हिस्सा बन गया. इसमें व्यावहारिक बात यह थी कि किलि बन जाने के बाद उन्हें विवाह के लिए बहुत दूर नहीं जाना पड़ता था. शरतचंद्र राय यह भी मानते हैं कि मुंडा जब छोटानागपुर आए तो उनके बीच किलि बहुत कम थे, लेकिन धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ती गई. मुंडा आदिवासी अपनी किलि के लड़के-लड़कियों के अलावा अन्य किसी भी किलि में विवाह करने के लिए स्वतंत्रे थे, लेकिन उनका मुंडा जनजाति से बाहर विवाह वैध नहीं माना जाता था. इसे वे गलत मानते थे. किलि के निर्माण के बाद पत्नी अब एक व्यक्ति की होने लगी उसपर समुदाय का हक नहीं रहा, उसी तरह बच्चा भी अब सिर्फ समुदाय का या मां नहीं रहा उसके साथ पिता का भी नाम जुड़ गया.

पशु, पक्षी और वृक्ष के नाम पर रखे गए हैं किलि के नाम

क्या है किलि
किलि के प्रति मुंडाओं में है सम्मान

इतिहासकार बालमुकुंद वीरोत्तम लिखते हैं कि मुंडाओं के किलि अथवा गोत्र का नाम पशु, पक्षी, वृक्ष और पौधों के नाम पर रखा गया है. उनका ऐसा मानना है कि यही उनके वंशज थे.इन पेड़, पौधे, पशु और पक्षी के प्रति इनके मन में बहुत सम्मान है और वे इसकी रक्षा करते हैं.

मुंडारी परंपरा में क्या है किलि

रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में मुंडारी भाषा विभाग के अध्यक्ष मनय मुंडा बताते हैं कि किलि का इतिहास बहुत पुराना है, जब विवाह को लेकर मुंडाओं को समस्या हुई तो उन्होंने पंचायत बैठाई और इसपर चर्चा की. तब यह तय हुआ कि सभी अपनी पसंद की चीजें लेकर आएं. इसमें पशु, पक्षी, वृक्ष, पौधा और पदार्थ भी हो सकते हैं. जब सब अपनी पसंद की चीजें लेकर आए तो उसकी के आधार पर उनका किलि निर्धारित हुआ. जैसे अगर कोई उन्नी पूर्ति लेकर आया, जिसका मुंडारी में अर्थ छोटा चूहा होता है तो उसके किलि की पहचान वही बन गया और उस किलि के लोगों के लिए वह पूज्य हो गया. किलि के सामान्य नियम यह थे कि आपस में विवाह वर्जित था और किलि के चिह्न की रक्षा करनी है. जैसे कि उन्नी पूर्ति किलि के लोग छोटे चूहे की रक्षा करेंगे उसका मांस नहीं खाएंगे. नाग किलि के लोग नाग की रक्षा करेंगे उसे मारेंगे नहीं. मनय मुंडा यह भी बताते हैं कि रीसा मुंडा अपने साथ 21 हजार लोगों को लेकर आए थे और यही 21 हजार लोग संभवत: शुरुआत में मुंडाओं के 21 किलि बने.

मुंडाओं में हैं 103 किलि, शुरुआत हुई थी 21 से

जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर वीरेंद्र सोय बताते हैं कि लोककथाएं के अनुसार सभी एक ही बूढ़ा-बुजुर्ग की संतान थी. लेकिन बाद में किलि का निर्माण हुआ. शुरुआत में 21 किलि थे जबकि आज के समय में लगभग 103 किलि हैं. किलि की संख्या बढ़ने की वजह जनसंख्या का विस्तार है. हर किलि के निर्माण के पीछे कहानी है. कुछ किलि ऐसे भी हैं, जो मुंडा, संताल और हो में भी पाए जाते हैं, जैसे केरकेट्टा और हेम्ब्रोम.

मुंडाओं के किलि पर मुंडारी में किताब लिखने वाले कुशलमय मुंडू बताते हैं कि कहा तो यही जाता है कि 21 किलि से शुरुआत हुई थी, लेकिन पड़हा राजा जो एक किलि का प्रमुख होता है, उसकी परंपरा 22 की है. ऐसे में यह सवाल है कि आखिर किलि की शुरुआत 21 से हुई थी या 22 से. रीसा मुंडा के साथ आए लोगों ने सात किलि बनाए थे, जबकि किरोमय मुंडा के साथ आए लोगों ने 14 किलि बनाया और कुल मिलाकर 21 किलि बने. इसके प्रमाण भी मुरहू के पास मिलते हैं अवशेष के रूप में, जहां 14 पत्थर गड़े हैं.

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