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Ranchi News : दिगंबर जैन मंदिर अपर बाजार में आर्यिका विभाश्री का संदेश : श्रद्धालुओं से कहा जिनका संत स्वभाव हो, उनपर हम अपना गुस्सा निकाल सकते हैं

Ranchi News : आर्यिका 105 विभाश्री माताजी ने दिगंबर जैन मंदिर अपर बाजार में कहा कि हर एक इंसान की समस्या है कि गुस्सा आये, तो क्या करें?

रांची. आर्यिका 105 विभाश्री माताजी ने दिगंबर जैन मंदिर अपर बाजार में कहा कि हर एक इंसान की समस्या है कि गुस्सा आये, तो क्या करें? अगर आपने अपने गुस्से को अंदर के अंदर में दमन कर लिया, तो वहीं अंदर ही अंदर भड़कता रहेगा. फिर वह एक बड़ा विस्फोट बन कर बाहर निकलता है. यदि अंदर में गुस्सा भड़क रहा है, गुस्सा आ रहा है, तो उसको निकाल दें. अब सवाल है कि किसके ऊपर निकालें? कोई न कोई तो चाहिए गुस्सा निकालने के लिए. माता-पिता, बच्चों पर तो गुस्सा निकाला नहीं जा सकता, क्योंकि ये हमारे दिल के बहुत निकट हैं. इनके ऊपर गुस्सा निकालना संभव नहीं है, तो फिर क्या करें? विभाश्री माताजी ने कहा कि जिनका संत स्वभाव हो, उनके पास जाकर हम अपना गुस्सा निकाल सकते हैं. संत होना और संत स्वभाव होना दोनों अलग-अलग बात है.

संत स्वभाव का मतलब क्या है?

विभाश्री माताजी ने पूछा : संत स्वभाव का मतलब क्या है? यदि कोई दुर्जन संत को हानि पहुंचाता है, तब भी संत स्वभाव किसी को हानि नहीं पहुंचाता है. इसको कहते हैं संत स्वभाव. माताजी ने श्रोताओं से पूछा कि भगवान की पूजा करते समय सबसे पहले जल ही क्यों अर्पण करते हैं? जवाब में आर्यिका विभाश्री माता जी ने कहा कि जल का स्वभाव संत के मन जैसा निर्मल और शीतल होता है. जैसे जल को अग्नि के ऊपर पानी डाल लिया जाये, तो जल अग्नि को जलाता नहीं है, प्रज्वलित नहीं करता है. बल्कि जल, अग्नि को शांत करने का काम करता है. जब तक हम जल की तरह नहीं बन पायेंगे, तब तक भगवत पद को प्राप्त नहीं कर सकते हैं.

चंदन अपनी सुगंधता नहीं छोड़ता

जल का स्वभाव संत स्वभाव है. चंदन का स्वभाव संत स्वभाव है. पानी में अगर अग्नि का गोला भी गिर जाये, तो अग्नि का गोला शांत हो जाता है. ऐसे ही चंदन का भी संत स्वभाव है. सुगंधित है चंदन. यदि उसको कुल्हाड़ी की चोट देंगे, तो भी वह अपनी सुगंधता नहीं छोड़ता. उन्होंने कई उदाहरण के साथ अपनी विवेचना देकर श्रोताओं की जिज्ञासा को शांत किया. सभा का संचालन मंत्री पंकज पांड्या ने किया.

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