गोरौल . गोरौल प्रखंड के अलावा सीमावर्ती प्रखंड पटेढ़ी बेलसर में भी गेंदा फूल की खेती से किसान अपनी तकदीर संवार रहे हैं. खेतों में लगी गेंदे के फूल की खूबसूरती देखते ही बनती है. गंदा के फूल की डिमांड सालों भर रहने की वजह से इसकी बड़े पैमाने पर यहां खेती की जाती है. मकर संक्रांति के बाद शादी विवाह व शुभ कार्यों के शुरू होते ही एक बार फिर से इसकी डिमांड बढ़ जायेगी. हर त्योहार, प्रतिष्ठान व घर की सजावट फूलों के बिना संभव नहीं है. यहां तक कि वैवाहिक कार्यक्रम भी फूलों के बिना अधूरे दिखते हैं. वहीं, मंदिरों में पूजन के लिए भी फूलों की जरूरत रहती है. इसके अतिरिक्त अन्य कार्यक्रमों में भी फूलों की मांग बनी रहती है. ऐसे में गेंदा की खेती करना किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रहा है. गेंदा फूल के खेती करने बाले किसान संजय मालाकार, सुरेश भगत, हरिहर भगत, धमेंद्र मालाकार, विपिन भगत सहित कई किसानों ने गेंदा फूल की प्रजातियों के विषय में बताया कि हजारा एवं पांवर प्रजाति के गेंदे की खेती वर्ष भर की जा सकती है. एक फसल के खत्म होते ही दूसरी फसल के लिए पौध तैयार कर लिये जाते हैं. इसकी खेती में जहां लागत काफी कम होती हैं, वहीं आमदनी काफी अच्छी होती है. गेंदा की फसल ढाई से तीन माह में तैयार हो जाती है. इसमें फूल दो से ढाई महीने में प्राप्त किये जा सकते हैं. यदि अपना निजी खेत हैं तो एक बीघा में लागत 10 हजार से 12 हजार रुपये का आता है. सिंचाई की भी अधिक जरूरत नहीं होती. मात्र दो से तीन सिंचाई करने से ही गेंदा फूल के पौधे लहलहाने लगती है, जबकि पैदावार की बात करें तो लगभग ढाई से तीन क्विंटल प्रति एकड़ तक होता है. गेंदा फूल बाजार में 75 से 80 रुपये प्रति किलो तक बिक जाता है. त्योहार और वैवाहिक कार्यक्रमों में जब इसकी मांग बढ़ जाती है तो दाम 100 रुपये प्रति किलो तक के हिसाब से मिल जाते हैं. गेंदा की खेती करने वाले किसान बताते हैं कि गेंदा की खेती में लागत कम हैं. त्योहारों में अच्छे दाम मिल जाते हैं और इसकी मांग पूरे वर्ष आयोजित होने वाले कार्यक्रमों के कारण बनी रहती है.
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