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Story of partition of India: क्या आप जानते हैं कि जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो भारत सरकार ने 75 करोड़ रुपए पाकिस्तान को दिए थे? अगर नहीं तो जानिए कि आज पाकिस्तान अगर अपने दम पर खड़ा है, तो उसके निर्माण में भारत की कितनी बड़ी भूमिका है. आखिर भारत सरकार ने पाकिस्तान को 75 करोड़ रुपए क्यों दिए थे और क्या वजह थी कि महात्मा गांधी को इसमें दखल देना पड़ा था? इन सवालों का जवाब जानने के लिए हमें आजादी से पहले के दौर में जाना होगा.
लॉर्ड रेडक्लिफ ने भारत को बांटने के लिए खींची थी लाइन
ब्रिटिश संसद ने जब भारत की आजादी के लिए अपनी सहमति दे दी और भारत को दो हिस्सों में बांटकर आजाद करने का फैसला किया, तो लॉर्ड रेडक्लिफ को भारत भेजा गया, दोनों देशों की सीमाएं तय करने के लिए. लॉर्ड रेडक्लिफ भारत कभी आए नहीं थे, इसलिए उनके लिए यह काम कठिन था, लेकिन उन्होंने यह का किया और भारत को दो हिस्सों में बांटा. लेकिन पाकिस्तान जो बना वह भारत के दो हिस्सों में स्थित था.
कुर्सी–टेबल और घड़ी का भी हुआ बंटवारा
जब भारत का बंटवारा दो देशों के रूप में हुआ, तो यहां की कुर्सी, मेज, पुस्तक, घड़ी, टेबल लैंप, पेपर, आलमारी और खजाने में बंद पैसों का भी बंटवारा हुआ था. इसके लिए दोनों देशों की तरफ से एक-एक नुमाइंदे भी रखे गए थे, जिनमें से एक हिंदू था और दूसरा मुसलमान. इसकी वजह साफ थी क्योंकि दोनों देशों का बंटवारा ही धर्म के आधार पर हुआ था. हिंदू नुमाइंदा भारत का था जिनका नाम एचएम पटेल और पाकिस्तान के नुमाइंदे का नाम था चौधरी मुहम्मद अली. इन दोनों सरकारी अधिकारियों ने मिलकर भारत की संपत्ति का बंटवारा किया था.
भारत को 80 और पाकिस्तान को मिली 20 फीसदी हिस्सेदारी
भारत की संपत्ति के बंटवारे के लिए महज 73 दिन का समय मिला था, लेकिन इन दोनों ने उसे पूरा किया, कहना ना होगा कि सबसे अधिक विवाद जिस चीज को लेकर हुआ, वह था खजाने का पैसा. बहस इतनी अधिक हुई कि दोनों नुमाइंदे को सरकार पटेल के घर पर एक कमरे में बंद कर दिया था कि जबतक निपटारा ना हो जाए, दोनों वहीं रहें. अंतत: यह तय हुआ कि खजाने में जो रकम है उसका 17.5 प्रतिशत पाकिस्तान को मिलेगा और साथ ही प्रशासन तंत्र की चल-अचल संपत्ति का 80 प्रतिशत भारत के पास और 20 प्रतिशत पाकिस्तान के खाते में जाने वाला था.
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पाकिस्तान के खाते में आए 75 करोड़ रुपए
बंटवारे के वक्त भारत सरकार के पास 400 करोड़ रुपए थे, जिसमें से 75 करोड़ रुपए पाकिस्तान को देने थे. विभाजन परिषद के निर्णय के अनुसार यह तय हुआ था. उस वक्त दोनों देशों की मुद्रा एक ही थी और उसे एक वर्ष तक साझा किया गया था. भारत ने अग्रिम भुगतान के तौर पर पाकिस्तान को 20 करोड़ दे दिए थे और 55 करोड़ रुपए और देना शेष था. लेकिन आजादी के महज कुछ ही महीनों बाद पाकिस्तान ने भारत पर सैनिक कार्रवाई कर दी, जिसकी वजह कश्मीर था. पाकिस्तान के इस रवैए के बाद भारत सरकार ने 55 करोड़ रुपए देने के फैसले पर विचार किया. भारत ने स्पष्ट घोषणा की कि जबतक कश्मीर से पाकिस्तान अपने घुसपैठियों को नहीं निकालेगा उसे 55 करोड़ रुपए नहीं दिए जाएंगे, क्योंकि पाकिस्तान उन रुपयों का प्रयोग भारत के खिलाफ करने के फिराक में था. लेकिन महात्मा गांधी ने भारत सरकार के इस रुख का विरोध किया और कहा कि जो वादा भारत ने किया है, उसे वो निभाना चाहिए. भारत को अविलंब पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए देने चाहिए. इसके लिए उन्होंने अनशन भी किया था, हालांकि कहा तो यह भी जाता है कि महात्मा गांधी का यह अनशन उस वक्त देश में फैले सांप्रदायिक दंगे को रोकना था, ना कि पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए. महात्मा की जिद पर भारत सरकार ने अंतत: 15 जनवरी 1948 को पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए देने का फैसला किया और जनवरी के अंत तक उसे वह राशि सौंप दी गई.
शराब की कंपनियों का नहीं हुआ बंटवारा
भारत के पास उस वक्त जितनी संपत्ति थी उसका बंटवारा किया गया था, सिर्फ शराब कंपनियों का विभाजन नहीं हुआ था. पाकिस्तान एक इस्लामिक देश था, इसलिए उनके लिए शराब हराम था, लेकिन इन कंपनियों के बदले पाकिस्तान को मुआवजा दिया गया था, जिसे लेने से पाकिस्तान ने मना नहीं किया था. जबकि अन्य सभी चीजों के बंटवारे में खूब मारामारी हुई थी.
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FAQ : भारत-पाकिस्तान विभाजन की रेखा किसने खींची थी?
लॉर्ड रेडक्लिफ ने भारत-पाकिस्तान विभाजन की रेखा खिंची थी.
भारत-पाकिस्तान विभाजन में किस चीज का नहीं हुआ था बंटवारा?
एक बिगुल का बंटवारा नहीं हुआ था, उसे लॉर्ड माउंटबेटन निशानी के तौर पर अपने साथ लेकर गए थे.