कोलकाता. दक्षिण 24 परगना के कुलतली के मैपीठ इलाके में पिछले एक-दो सप्ताह से जैसे एक बाघ लुकाछिपी खेल रहा है. कभी जंगल में उसकी वापसी की खबर आती है, तो कभी उसके पैरों के निशान देखकर फिर लोग आतंकित हो जाते हैं. एक बार फिर रविवार को जंगल से सटे ठाकुरान नदी के आसपास बाघ के पैरों के निशान देखे गये. इसकी सूचना वन विभाग को दी गयी. सूचना मिलते ही वन विभाग के अधिकारी व कर्मचारी मौके पर पहुंचे हैं. आसपास के इलाकों में जाल लगाया जा रहा है. मैपीठ इलाके में बाघों का आतंक कोई नयी बात नहीं है. गत छह जनवरी को ग्रामीणों ने बैकुंठपुर ग्राम पंचायत के श्रीकांत पल्ली और किशोरी मोहनपुर क्षेत्र के जंगल से सटे गांवों में बाघ के पदचिह्नों को देखा था. जंगल से सटे बस्ती इलाकों में जाल लगाये गये.
गांव के किनारे स्थित नदी के पार एक मृत मवेशी को भी फेंक दिया गया, ताकि बाघ उसे लेकर वापस जंगल में लौट सके. बाद में आठ जनवरी को वन विभाग की ओर से बताया गया कि बाघ जंगल में वापस लौट गया. गत गुरुवार सुबह माकरी नदी के तट पर फिर से मैंग्रोव के घने जंगलों में बाघ के पैरों के निशान देखे गये. स्थानीय लोगों ने आशंका जतायी थी कि बाघ रात में आजमलमारी जंगल से नदी पार कर गांव से सटे बादावन जंगल में घुस गया होगा.
क्षेत्र के निवासी प्राय: भयभीत रहते हैं, क्योंकि बाघ बार-बार जंगल से सटे गांवों में घुस आते हैं. अच्छी तादाद में लोगों की आबादी जंगल से सटे इलाकों में वास करती है. ऐसे में लोगों को जीविका के लिए मछली पकड़ने व शहद एकत्रित करने के लिए जंगल के काफी करीब वाले इलाकों में भी जाना पड़ता है. क्षेत्र के निवासियों का एक वर्ग मांग कर रहा है कि जंगल से सटे पूरे इलाके को जाल से घेर दिया जाये, ताकि बाघ के आतंक से उन्हें मुक्ति मिल सके. उन्होंने यह भी मांग की कि नदी तटबंध से सटीं सड़कों पर पर्याप्त संख्या में लाइटें लगायी जायें.
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