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Emergency movie:इमरजेंसी फिल्म के इस एक्टर के मुरीद हैं मनोज बाजपेयी भी.. बिहार से है खास कनेक्शन

इमरजेंसी, जोरम, बाटला हाउस जैसी फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता अमरेंद्र शर्मा न इस इंटरव्यू में अपनी बेतिया से बॉलीवुड की जर्नी पर बात की है.

emergency movie :कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी ने सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है.इस फिल्म का हिस्सा बिहार के बेतिया के रहने वाले अमरेंद्र शर्मा भी हैं. 2007 से इंडस्ट्री में संघर्षरत अमरेंद्र अपनी अब तक की जर्नी को संघर्ष कहने से इंकार करते हैं क्योंकि ये उनकी मजबूरी नहीं बल्कि अपने सपने को पूरा करने के लिए उनका जुनून है.उर्मिला कोरी से हुई बातचीत 

अटल जी की टीम में हूं

फिल्म में मैं विपक्ष का नेता बना हूं.अटल जी की टीम में हैं. जो विपक्ष का काम होता है. सरकार पर सवाल करना.संसद में सवाल उठाना.यही मेरा किरदार कर रहा है.जब इमरजेंसी होती है तो उसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं. शूटिंग मेरी कई दिनों तक हुई थी,लेकिन फिल्म में में सीन नहीं आ पाया है.दुःख पहले होता था. अब तो समझदारी आ गयी है.अब तो खुद मेकिंग समझने लगे हैं.जानता हूं कि फिल्म के भले के लिए सीन ट्रिम कर दिए जाते हैं.मैं भी कुछ -कुछ चीजें बना रहा हूं.मेकिंग कर रहा हूं. मैं भी इस सोच से गुजरता हूं कि अभी इस सीन की जरूरत नहीं है. इसको थोड़ा क्रिस्प कर देते हैं.एडिट कर देते हैं.

कंगना निर्देशिका भी अच्छी हैं

कंगना रनोट एक्ट्रेस तो बहुत कमाल की हैं ही. सोशल मीडिया पर जो उनको लेकर बात चलता है.वो पर्सनल चीजें हैं, लेकिन एक्ट्रेस के तौर पर वह कमाल है. इससे इंकार नहीं है. निर्देशक के तौर पर भी वह शांत होकर बहुत प्यार से बात करती हैं. उनका सेट पर बीहेव बहुत अच्छा था. पूरी फिल्म तो देखी नहीं है, लेकिन जिस तरह से ट्रेलर और गाने आये हैं. फिल्म अच्छी बनी है.ऐसा लग रहा है.मुझे स्क्रिप्ट की जानकारी नहीं है क्योंकि मेरे सीन्स को लेकर ही सिर्फ बात हुई थी.

मनोज बाजपेयी को देख तय किया अब फिल्मों में आना है

मैं बेतिया चम्पारण से हूं. गांव शिकारपुर है. मैं बचपन से ही एक्टर बनना चाहता था. सीरियल रामायण, महाभारत ने मुझे एक्टिंग से जोड़ा.मैं गाना -वाना भी गाता था. नाचता भी था.बड़े होते गए तो फिल्मों से और रिश्ता गाढ़ा होता गया. अजय देवगन की फिल्में बहुत देखता था. मनोज बाजपेयी जी की फिल्में आनी शुरू हुई तो हिम्मत आयी.सत्या आयी तो लगा कि अब तो मुझे भी करना ही चाहिए.मैंने फिर मनोज जी को फॉलो करना शुरू कर दिया.कैसे बेतिया से दिल्ली गए. फिर फिल्म इंडस्ट्री में अपना एक मुकाम बनाया. मैंने दिल्ली थिएटर का पता किया. मैं 1998 में दिल्ली गया था फिर लौट आया बिहार क्योंकि मैट्रिक पढ़कर ही गया था. पटना में थिएटर करना शुरू किया. उस वक़्त मेरे साथ पंकज जी भी थे साथ ही ग्रेजुएशन की पढाई भी पूरी की.उसके बाद कोलकाता गया. वहां भी थिएटर किया. दिल्ली आकर फिर मैंने थिएटर ज्वाइन किया. इंडस्ट्री में भी कोशिश करता रहा. 1971 फिल्म मुझे वहीँ पर ही मिल गयी.फिल्म में भीड़ का हिस्सा था,लेकिन उस वक़्त लगा चलो कुछ तो सीखने को मिलेगा। मनोज जी की फिल्म थी.उनका भी मोह था कि उनको दूर से देखता था.इसमें सामने से देखने मिलेगा. 2007 में मुंबई आ गया. फिर संघर्ष शुरू हुआ.

परिवार ने सपोर्ट किया

हमारे परिवार को इस लाइन के बारे में पता नहीं होता है.उनका यही रहता है कि इंजीनियर बनो या डॉक्टर बनो या फिर यूपीएससी की तैयारी करो. मेरे परिवार में टीचर हैं. पापा और भाई साहब दोनों टीचर हैं और वे लोग किसानी भी करते हैं. पापा से जब एक्टर बनने के बारे में कहा तो उनका कहना था कि हम तो नइखे जानत बानी कि ई लाइन में का होयला ..तुहि समझत बाडा बढ़िया से. अब जब कहत बाड़ा त जा करा. इसको सपोर्ट ही कह सकते है. उनको विश्वास था कि जो कर रहा हूं . अच्छा ही करूंगा. बाकी जब आपको काम नहीं मिलता है. बहुत टाइम बीतने लगता है तो मां बाप बोलते ही हैं कि कुछ और कर लो.

सीरियल वालों को नौकर भी गोर चिट्टे चाहिए

2007 में मुंबई आने के बाद जर्नी आसान नहीं थी. खासकर मैंने तय कर लिया था कि मैं कुछ और काम नहीं करूंगा सिर्फ एक्टिंग ही करूंगा. वरना मैं भटक जाउंगा. शुरुआत में परिवार से हेल्प लिया. धीरे धीरे टीवी में काम मिलना शुरू हो गया. क्राइम पेट्रोल से खर्च निकल जाता था. बाकी सीरियल में हमारे लुक का कुछ होता नहीं है. हम बहुत आम लुक वाले हैं. सीरियल में नौकर भी गोर चिट्टे ही चाहिए होते हैं .मुझे जहां मालूम पड़ जाता था कि इस तरह का रिजेक्शन है. मैं वहां जाना ही छोड़ देता था. मैं लगातार रिजेक्शन से खुद को डिप्रेशन में नहीं डालना चाहता था.

बाटला हाउस ने चीजें बदली

मैंने बाटला हाउस फिल्म की थी.उससे मैं थोड़ा लोगों की नजर में आया. उसमें बहुत कमाल का किरदार नहीं था. ठीक ठाक था, लेकिन पोस्टर पर मैं जॉन अब्राहम के साथ था.जिससे मैं लोगों के नजर में आ गया था .उसके बाद फिल्म फोर किया था. जोऑफ बीट सिनेमा था. उसमें मेरा अच्छा रोल था. उससे चीजें बनने शुरू हुई. प्रॉपर सपोर्टिंग किरदार मिलने लगे . बनना तो हीरो ही था ,लेकिन वो सब चीजें हो नहीं रही थी.(हंसते हुए )हीरो का सपना मैंने अभी भी नहीं छोड़ा है. उसके लिए तो अभी भी प्रयास कर रहा हूं. हां ये समझा कि काम करते रहना है.पंकज जी , नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी से लेकर कई एक्टर्स हैं. सबने छोटे -छोटे काम करके यहां तक की जर्नी पूरी की है.काम करते रहना है. बैठ नहीं जाना है. जो मिलेगा ईमानदारी से करूंगा. सेट पर जाऊंगा. डायरेक्टर से पहचान बनेगी और पांच लोग जानेंगे.पैसे भी मिलेंगे. घर बैठकर क्या करूंगा.

मनोज बाजपेयी जी से खास रिश्ता

अब तक की जर्नी में मनोज बाजपेयी जीके साथ एक खास रिश्ता बन गया है.मैंने उनके साथ जब फिल्म जोरम की. उनके साथ जो मैंने सीन किया. वो उनको बहुत पसंद आया.मुझे उसी फिल्म से उन्होंने नोटिस किया.एक बिहेव भी होता है. मेरी हमेशा कोशिश रहती है कि मैं किसी को ठेस ना पहचाऊं. सेट पर ऑफ कैमरा भी मैं उनको सुनता था. उनके अनुभव. अब तक सोशल मीडिया और पेपर के जरिये ही मैं उनको जान रहा था..यहां सामने से उनको जानने और सुनने का मौक़ा मिल रहा था. जोरम के बाद हमारी बातचीत और होने लगी थी. भैया जी फिल्म उन्होंने खुद बुलाकर दी थी. ये मेरे लिए बड़ी उपलब्धि थी कि जिनको देखकर इंडस्ट्री में आया. उनके करीब पहुंच गए और उनको मेरा काम पसंद आ रहा है.इससे अच्छी बात क्या हो सकती है. मतलब मैं सही दिशा में जा रहा हूं. हमदोनों ही चम्पारण से है और मटन के शौक़ीन तो एक दिन मैंने उनके मटन बनाया.जो उन्हें बहुत पसंद आया तो वह मेरी कुकिंग को भी पसंद करते हैं.

संघर्ष अब शुरू हुआ है

अब मुझे लोग जानने लगे हैं इसलिए मेरा संघर्ष अब बढ़ गया है. पहले मैं कोई भी रोल कर लेता था. वैसे मैं एक्टिंग को संघर्ष नहीं मानता हूं. जो जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. पेट पालने के लिए एक नहीं काम नहीं मिल रहा है,तो दूसरा कर रहे हैं.वो असल मायनों में संघर्ष कर रहे हैं. हम तो ये सोचकर ही आये थे कि मुझे तो यही करना है. आप अपने सपने के लिए कर रहे हैं.हीरो बनना है तो जो आपको कुर्बानियां देनी है.वो तो देनी ही पड़ेंगी क्योंकि ये आपका जूनून है.

भोजपुरी में आर्ट जोड़ने की कोशिश करता हूं

2007 से इंडस्ट्री में हूं. कई बार काम नहीं मिलता तो बुरा भी लगता है लेकिन मैं खुद को खाली नहीं बैठने देता हूं. मैं खुद से ही चीजें बनाने लगता हूं. हाल ही मेंने म्यूजिकल शार्ट फिल्म रसप्रिया बनायीं थी. फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पर आधारित इस शार्ट फिल्म में डायरेक्शन,एक्टिंग और सिंगिंग सब मैंने ही किया था.जिसकी बहुत तारीफ हुई थी.इससे पहले कोविड में पलायन पर बटोही बनाई थी. उसकी भी बहुत तारीफ हुई थी. उस गाने को रविश जी ने एनडीटीवी पर शेयर किया था.अभी एक और बनाने जा रहा हूं म्यूजिक वीडियो. मैं ये म्यूजिक वीडियो भोजपुरी में ही बनाता हूं क्योंकि मेरी भाषा है. चाहता हूं कि थोड़ा आर्ट आ जाए. इसमें बहुत हुड़दंग है.वैसे अपने भोजपुरी लघु फिल्म के अलावा दो तीन प्रोजेक्ट्स में एक्टिंग करते भी दिखूंगा.

छोटे शहर के युवाओं से अपील

अपने अब तक के अनुभव पर मैं यही कहूंगा कि जो भी लोग इस लाइन में आना चाहते हैं. सोच समझकर आये. बहुत बहुत सारा पढाई करके आये. साहित्यिक कहानियां जब तक नहीं पढ़ेंगे.समझ नहीं बढ़ेगी. काम करके आये. थिएटर से सीखकर आएं. यहाँ पर काम तभी मिलेगा जब आपके अंदर टैलेंट होगा. टैलेंट तभी होगा. जब आप खुद को निखारते रहेंगे. इसके साथ बहुत सारा धैर्य भी लाइएगा. काम कब मिलेगा पता नहीं.

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