रांची. रिम्स में भर्ती मरीजों को सुबह में चाय, उसके बाद नाश्ता, फिर दोपहर का भोजन, शाम में स्नैक्स और रात का खाना दिया जाता है. भोजन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी जाना इंटरप्राइजेज को दी गयी है. इसके लिए रिम्स एक मरीज पर रोजाना 129 रुपये का भुगतान निजी एजेंसी काे करता है. एजेंसी द्वारा स्टील की थाली पैक कर मरीजों को भोजन उपलब्ध कराया जाता है. हालांकि ट्रॉली में रखकर मरीजों के बेड तक भोजन पहुंचते ही आपस में मिल जाते हैं. यानी किचन से मरीजों के लिए दाल-भात और सब्जी अलग भेजी जाती है, लेकिन मरीजों तक पहुंचते-पहुंचते सभी खाद्य पदार्थ आपस मिलकर खिचड़ी बन जाते हैं. थाली में भोजन मिला हुआ देखकर कई मरीज इसे लेने से इनकार कर देते हैं. जानकारों का कहना है कि रिम्स के अधिकांश वार्ड का फर्श टूटा हुआ है, जिससे थरथराहट के कारण ट्रॉली में रखा हुआ भोजन आपस में मिल जाता है. इससे किचन कर्मी भी परेशान रहते हैं.
कमेटी नहीं दे रही ध्यान
यहां बता दें कि मरीजों को बेहतर और व्यवस्थित भोजन की उपलब्धता की मॉनिटरिंग के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है. कमेटी का काम समय-समय पर मरीजों को मिलने वाले भोजन की जांच करना और भोजन के बारे में मरीजों से फीडबैक लेना है. लेकिन, कमेटी इसकी अनदेखी कर रही है. इधर, मरीजों द्वारा व्यवस्थित तरीके से भोजन उपलब्ध कराने का आग्रह कर्मचारियों से किया जाता है, लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि किचन से लाते वक्त खाद्य पदार्थ आपस में मिल जाते हैं. इसमें उनकी कोई गलती नहीं है.
वर्जन
मरीजों को वार्ड तक खाना पहुंचाने में दिक्कत हो रही है. किचन से थाली में भोजन को व्यवस्थित तरीके से रखकर पैक किया जाता है, लेकिन फर्श टूटा होने के कारण भोजन आपस में मिल जाते हैं. फर्श को दुरुस्त करने की प्रक्रिया चल रही है. इसके बाद यह शिकायत नहीं मिलेगी.
डॉ राजीव रंजन, पीआरओ, रिम्सB
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है