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संगीत वाद्य है मानव समाज की सांस्कृतिक एवं सृजनात्मकता की अभिव्यक्तिः प्रो भारती

वाद्यों की महत्ता पर प्रकाश डालते प्रो भारती ने कहा कि संगीत वाद्य मानव समाज के सांस्कृतिक एवं सृजनात्मक अभिव्यक्ति है

वैदेही कला संग्रहालय ने महाकुंभ में लगायी दुर्लभ संगीत वाद्यों की प्रदर्शनी सहरसा लोक एवं जनजातीय संस्कृति संस्थान, संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश सरकार के आमंत्रण पर सहरसा के मत्स्यगंधा झील स्थित वैदेही कला संग्रहालय द्वारा 16 जनवरी से 26 फरवरी के बीच कलाग्राम, महाकुंभ में दुर्लभ संगीत वाद्यों की प्रदर्शनी आयोजित की गयी है. प्रदर्शनी की परिकल्पना एवं क्युरेशन वैदेही कला संग्रहालय के संस्थापक एवं फिजी में भारत के पूर्व सांस्कृतिक राजनायिक प्रो ओम प्रकाश भारती द्वारा किया जा रहा है. प्रो भारती ने बताया कि प्रदर्शनी में 251 वाद्य यंत्रों को शामिल किया गया है. विशेषकर बिहार के लुप्तप्राय वाद्य रशन चौकी, पूरनी बाजा, तुबकी, ढोल पिपही, नारदी मृदंग, संथाली मानर सहित 50 से अधिक संगीत वाद्यों को प्रदर्शित किया गया है. प्रदर्शनी के बीच रशन चौकी, उरनी बाजा एवं नारदी मृदंग का वादन भी प्रस्तुत किया जा रहा है. बिहार के अलावा केरल का पञ्चवाद्यं, सिक्किम का नौमती बाजा, उत्तर प्रदेश की शहनाई, नगाड़ा, छत्तीसगढ़ से मारिया ढोल, धनकुल, मुंडा बाजा, रमतुल्ला, पश्चिम बंगाल से श्रीखोल, बेना, असम का सरिंडा, बोडो खाम, मणिपुर का पुंग, पेना, झारखंड का धुमसा, ढाक एवं गुजरात की पुंगी बाजा सहित देश के प्राय: सभी राज्यों के वाद्यों को प्रदर्शनी में रखा गया है. वाद्यों की महत्ता पर प्रकाश डालते प्रो भारती ने कहा कि संगीत वाद्य मानव समाज के सांस्कृतिक एवं सृजनात्मक अभिव्यक्ति है. भारत में संगीत वाद्यों की प्राचीन परंपरा है. वाद्यों के निर्माण एवं विकास में विश्व मानव समाज का सामूहिक योगदान रहा है. इसलिए विश्व के विभिन्न भागों में प्रचलित लोक एवं जनजातीय वाद्यों के बीच समानता देखी जा सकती है. नवपाषाण काल से ही भारत में वाद्यों की उपस्थिति का साक्ष्य प्राप्त होता है. देवी देवताओं के हाथ में शिव के हाथ में डमरू, सरस्वती के हाथ में वीणा, नारद के हाथ में एकतारा का होना भारतीय परम्परा के संगीत वाद्यों के अध्यात्मिक पक्ष को परिभाषित करता है. भारत में आज एक तार से सौ तार के साक्ष्य प्राप्त होते हैं. भरतमुनि प्रणीत नाट्यशास्त्र में संगीत वाद्यों के वर्गीकरण का स्पष्ट उल्लेख मिलता है. अकेले वर्णरत्नाकर में 24 प्रकार की वीणा का उल्लेख मिलता है. दूसरी ओर आदिवासी समाज ने अपनी धार्मिक एवं सांस्कृतिक अभिव्यक्ति को संगीत तथा वाद्यों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है. मनोरंजन के बदलते माध्यम तथा इलेक्ट्रोनिक माध्यमों के प्रचलन से बहुत सारे भारतीय वाद्य लुप्त होते जा रहे हैं. वाद्य भारतीय संस्कृति की पहचान है. भारत में लगभग तीन हजार से अधिक वाद्य यंत्रों का प्रचालन रहा है. इनमें लगभग छह सौ वाद्य यंत्र आज लुप्त होने की स्थिति में हैं. यह प्रदर्शनी कुंभ में वाद्यों का महाकुंभ है. बड़ी संख्या में दर्शक वाद्यों को देखने आ रहे हैं. 26 फरवरी के बाद यह प्रदर्शनी वाराणसी, पटना, कोलकाता एवं रांची में लगायी जायेगी फोटो – सहरसा 04 – प्रदर्शनी में लगे वाद्ययंत्र

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