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त्रिकोणीय जंग से दिलचस्प हुआ दिल्ली चुनाव

Delhi assembly election :कांग्रेस इस बार आप के प्रमुख नेताओं की चुनावी घेराबंदी भी कर रही है. संदीप दीक्षित केजरीवाल के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि मुख्यमंत्री आतिशी के विरुद्ध महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष अलका लांबा को उम्मीदवार बनाया गया है, उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया के विरुद्ध पूर्व मेयर फरहाद सूरी को.

Delhi Assembly Election : एक दशक बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव को दिलचस्प बनाने का श्रेय उस दल को है, जिसका पिछले दो चुनावों में खाता नहीं खुल पाया. पिछले दो चुनाव में एकतरफा जीती आम आदमी पार्टी (आप) को इस बार बहुमत का आंकड़ा पाने के लिए भी एड़ी-चोटी का जोर इसलिए लगाना पड़ रहा है कि लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ी कांग्रेस ने भी उसके विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है.

स्थानीय नेता तो लोकसभा चुनाव के बाद से ही एक-दूसरे पर निशाना साधने लग गये थे, अब इसमें आलाकमान की भी ‘एंट्री’ हो गयी है. राहुल गांधी ने अल्पसंख्यक बहुत सीलमपुर से चुनाव प्रचार की शुरुआत करते हुए सीधा आरोप लगाया कि अरविंद केजरीवाल भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह झूठे वादे करते हैं. केजरीवाल ने भी जवाब देने में देर नहीं लगायी, कहा कि ‘वह कांग्रेस बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि मैं देश बचाने की.’


केजरीवाल को मोदी की तरह ही झूठे वादों के लिए कठघरे में खड़ा करने से ऐसा लग सकता है कि कांग्रेस अपने दोनों राजनीतिक विरोधियों पर समान रूप से हमलावर है, पर असल में उसके निशाने पर आप ज्यादा है. जिस शराब नीति घोटाले में केजरीवाल समेत प्रमुख आप नेता जेल गये, उसकी शिकायत कभी कांग्रेस ने ही की थी. हाल ही में आप की महिला सम्मान योजना की शिकायत भी कांग्रेस ने ही उप राज्यपाल से की. पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने पंजाब पुलिस द्वारा कांग्रेस उम्मीदवारों की जासूसी तथा चुनाव के लिए पंजाब से दिल्ली कैश लाये जाने की शिकायत भी उप राज्यपाल से की. जाहिर है, जांच शुरू हो चुकी है. कथित शीशमहल के मुद्दे पर भी कांग्रेस, भाजपा से कम आक्रामक नहीं है.

कांग्रेस इस बार आप के प्रमुख नेताओं की चुनावी घेराबंदी भी कर रही है. संदीप दीक्षित केजरीवाल के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि मुख्यमंत्री आतिशी के विरुद्ध महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष अलका लांबा को उम्मीदवार बनाया गया है, उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया के विरुद्ध पूर्व मेयर फरहाद सूरी को. खास बात यह भी कि कांग्रेस का फोकस उन दो दर्जन सीटों पर ज्यादा है, जो झुग्गी-झोपड़ी और अल्पसंख्यक बहुल हैं. गरीब, दलित और अल्पसंख्यक दिल्ली में कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक रहे, पर 2013 में बनी आप धीरे-धीरे उन्हें अपने पाले में ले गयी.


बेशक इसके लिए कांग्रेस भी कम जिम्मेदार नहीं. यह देखते हुए भी कि उसी की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों के मद्देनजर जनलोकपाल आंदोलन करने वाले अन्ना हजारे के कुछ शिष्यों द्वारा बनायी गयी आप ने पहले ही चुनाव में पैरों तले की जमीन छीन ली है, कांग्रेस ने 2013 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी भाजपा को सत्ता से रोकने के लिए अरविंद केजरीवाल की सरकार दिल्ली में बनवा दी. जब आप ही दिल्ली की राजनीति में भाजपा को चुनौती देती दिखी, तो कांग्रेस के वोट बैंक का और भी बड़ा हिस्सा उसके पाले में चला गया. बेशक उसमें केजरीवाल की लोकलुभावन घोषणाओं की बड़ी भूमिका रही, पर परिणाम यह निकला कि लगातार तीन बार सरकार बनाने वाली कांग्रेस, जो 2013 में आठ सीटों पर सिमट गयी थी, 2015 और 2020 में खाता तक नहीं खोल पायी.

आप मूलत: कांग्रेस से छीने गये जनाधार पर ही खड़ी है. लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ने के छह महीने बाद ही विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के आक्रामक तेवरों के मूल में आलाकमान पर बढ़ता यह दबाव भी है कि देश की राजधानी में ही पार्टी अस्तित्व के संकट से जूझ रही है. अगला लोकसभा चुनाव बहुत दूर है. फिलहाल वक्त का तकाजा अपनी जमीन बचाने और खोयी जमीन वापस पाने की है, जिसके लिए ‘इंडिया’ गठबंधन में मित्र, छोटे और क्षेत्रीय दलों से टकराना भी पड़ेगा. जाहिर है, दिल्ली और पंजाब की सत्ता कांग्रेस से छीनने वाली आप ने गुजरात और गोवा में भी कांग्रेस के जनाधार में बड़ी सेंध लगा भाजपा को अप्रत्यक्ष लाभ पहुंचाया है.


वर्ष 2015 में 70 में से 67 सीटें जीत प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली आप की पांच वर्ष बाद पांच सीटें घट गयीं. भाजपा के साथ ही कांग्रेस को भी उम्मीद है कि दस वर्ष के शासन के बाद सत्ता विरोधी भावना और बढ़ी ही होगी. फिर इस बीच शराब नीति घोटाले और शीशमहल जैसे आरोपों ने केजरीवाल की श्रीमान ईमानदार की उस छवि को भी खंडित तो किया है, जिसके सहारे वह अधिकतर दलों और नेताओं को भ्रष्ट बताते रहे. इसलिए आप सरकार की विफलताएं गिनाने से अधिक भाजपा और कांग्रेस का जोर केजरीवाल को कठघरे में खड़ा करने पर है. भाजपा ने भी केजरीवाल के विरुद्ध पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा, तो आतिशी के विरुद्ध भी एक पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी को चुनाव मैदान में उतारा है. तीनों दलों के घोषणापत्रों में मुफ्त की रेवड़ियों की भरमार है. ऐसे में अब चुनाव साख और प्रबंधन पर ज्यादा निर्भर है. कांग्रेस की कोशिश अपना वोट बैंक वापस छीनने की है, तो भाजपा की कवायद आप को बहुमत के आंकड़े (36 सीट) से नीचे रोकने की है. भाजपा दिल्ली की सत्ता से अपना वनवास समाप्त करना चाहती है, जिसके 27 साल होने वाले हैं. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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