Cremation Mystery: जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु है. प्रत्येक व्यक्ति को एक न एक दिन इस संसार को छोड़कर जाना है. हालांकि, किसी प्रियजन को खोने का दुःख जीवन में सबसे गहरा होता है, लेकिन यह हमारे नियंत्रण में नहीं है. कहा जाता है कि जब किसी का समय आता है, तब वह इस जीवन से विदा हो जाता है. इस धरती पर विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के जन्म से लेकर मृत्यु तक के अपने-अपने रीति-रिवाज होते हैं. हिंदू धर्म में दाह संस्कार की प्रक्रिया अपनाई जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि दाह संस्कार के दौरान शरीर का कौन सा अंग अग्नि से नहीं जलता है? आज हम आपको बताएंगे कि दाह संस्कार के समय कौन सा अंग सुरक्षित रहता है.
वैज्ञानिकों ने कुछ वर्ष पूर्व एक अध्ययन किया था, जिसमें यह बताया गया था कि दाह संस्कार के दौरान शरीर में किस प्रकार के परिवर्तन होते हैं. उनके अनुसार, 670 से 810 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान में शरीर केवल 10 मिनट में पिघलने लगता है. 20 मिनट के पश्चात ललाट की हड्डी नरम ऊतकों से मुक्त हो जाती है. टेबुला एक्सटर्ना, अर्थात् कपाल गुहा की पतली दीवार में दरारें उत्पन्न होने लगती हैं.
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इसके अतिरिक्त, 30 मिनट में सम्पूर्ण त्वचा जल जाती है और शरीर के अंग स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं. दाह संस्कार प्रारंभ होने के 40 मिनट बाद आंतरिक अंग गंभीर रूप से सिकुड़ जाते हैं और जाल जैसी या स्पंज जैसी संरचना प्रकट होती है. लगभग 50 मिनट के बाद हाथ-पैर कुछ हद तक नष्ट हो जाते हैं और केवल धड़ शेष रहता है, जो एक से डेढ़ घंटे के बाद टूटकर अलग हो जाता है. मानव शरीर को पूरी तरह से जलाने में लगभग 2-3 घंटे का समय लगता है, लेकिन एक भाग फिर भी नहीं जलता है.
यह हिस्सा नहीं जलता
जानकारी के अनुसार, जब किसी व्यक्ति का शव जलाया जाता है, तो केवल दांत ही शेष रहते हैं. यही वह भाग है जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है. इसके विपरीत, शरीर का अन्य हिस्सा पूरी तरह से राख में परिवर्तित हो जाता है. दांतों के न जलने का वैज्ञानिक कारण है. वास्तव में, दांत कैल्शियम फॉस्फेट से बने होते हैं, जिसके कारण उनमें आग नहीं लगती है.
दाह संस्कार के बाद बचे दांतों का क्या होता है?
दाह संस्कार के दो दिन बाद शमशान घाट से अस्थियों को एकत्र किया जाता है. इस प्रक्रिया में अस्थियों के साथ-साथ बिना जले हुए हड्डियों के कुछ टुकड़े और दांतों के हिस्से भी इकट्ठा किए जाते हैं, जिन्हें कट्टे या बोरी में भर दिया जाता है. इसके बाद, इन्हें गंगा नदी या किसी अन्य पवित्र नदी में विधिपूर्वक प्रवाहित किया जाता है, साथ ही हाथ जोड़कर पुण्य आत्मा को शांति प्रदान करने और उन्हें श्रीहरि के चरणों में स्थान देने की प्रार्थना की जाती है.