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कोसी के बालू में यूपी से तरबूज उगाने आते हैं किसान

नवहट्टा प्रखंड की कैदली पंचायत में तरबूज की खूब खेती होती है. यहां बाहरी राज्यों से किसान आते हैं. खेती करके लाखों रुपये कमाते हैं, जबकि इन जमीनों के मालिक बाहरी राज्यों में पैसा कमाने मजदूरी करने जाते हैं.

कोसी के जमींदार किसान दूसरे प्रदेश में मजदूरी करने को हैं विवश राजेश डेनजील, नवहट्टा नवहट्टा प्रखंड की कैदली पंचायत में तरबूज की खूब खेती होती है. यहां बाहरी राज्यों से किसान आते हैं. खेती करके लाखों रुपये कमाते हैं, जबकि इन जमीनों के मालिक बाहरी राज्यों में पैसा कमाने मजदूरी करने जाते हैं. कोसी क्षेत्र में नदी के किनारे इन दिनों तरबूज, लौकी, खीरा, ककड़ी जैसी फसलों की भरमार है, लेकिन इसकी खेती यहां के स्थानीय किसान नहीं करते हैं. बल्कि उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों से किसान आकर यहां खेती करते हैं. कुछ महीनों के लिए इन किसानों का यही ठिकाना बन जाता है. स्थानीय लोगों का मिलता है सहयोग उत्तर प्रदेश के लखीमपुर के मो जुबैर भी पिछले पांच सालों से कोसी इलाके में आकर खेती करते हैं. इस बार वह 50 एकड़ में खेती कर रहे हैं. वह खुद के साथ अपने परिवार के अन्य सदस्य को लेकर आये हैं. जुबेर ने बताया कि शुरू में यहां कठिनाई होती थी. अब दिक्कत ना के बराबर होती है. यहां के लोगों का पूरा सहयोग मिल रहा है. दिसंबर महीने में ही मैं आ गया था. यहां के लोग हमें वक्त पर खाद पानी उधार देते हैं. हमें इधर आकर खेती-बाड़ी करने में कोई परेशानी नहीं होती है. वहीं उत्तर प्रदेश के ही फरीदाबाद के अरबा गांव के मो जाकिर बताते हैं कि दोस्त के कहने पर मैं यहां पर खेती करने आया हूं. वह लगभग पिछले 2 साल से आ रहा है. इस बार मैं 10 बीघा खेत में खेती कर रहा हूं. सब कुछ मिलाकर करीब पांच लाख रुपये खर्च हो जाता है. जिसमें 30 हज़ार रुपये बीज खरीदने में लगा था. मजदूर को देना पड़ा था. उम्मीद है कि चार से पांच लाख रुपये कमाई हो जायेगी. मेरे साथ मेरी पत्नी और मेरा भाई है, गांव के भी चार मजदूर को हमने काम पर रखा है; गांव के ही लोग से पंपसेट लेकर पानी पटवन कर रहा हूं. क्या है किसानों के पलायन की वजह बालू और गाद में लगातार वृद्धि होने की वजह से कोसी अपनी प्रकृति के अनुरूप अपनी धारा बदलती रही है. काफी मात्रा में बालू और गाद के आने के कारण उसकी तलहटी ऊंची हो जाती है. वह अपनी धारा बदल देती है. ऐसे में कोसी क्षेत्र के स्थानीय किसान उस धरती को बेकार समझ किसी और रोज़गार में लग जाते हैं. इस क्षेत्र में पलायन भी इसी वजह से लगातार बढ़ रहा है. वहीं दूसरी तरफ कोसी के बालू पर खीरा और तरबूज की खेती उत्तर प्रदेश और तटबंध के अंदर के कुछ किसानों की किस्मत बदल रही है. कोसी इलाके में उपज होती है ज़्यादा यूपी से आकर तटबंध के अंदर बालू भरी ज़मीन में तरबूज की खेती करने वाले किसानों को स्थानीय लोग चैया के नाम से बुलाते हैं. उत्तर प्रदेश के आमीर अपने ही गांव के मो जुबेर के साथ हर साल मजदूरी करने आते हैं. वह बताते हैं कि पहले उत्तर प्रदेश में यमुना नदी के किनारे हम लोग इस तरह की खेती करते थे, लेकिन कोसी इलाके में इसकी उपज ज़्यादा होती है. इसलिए दिसंबर या जनवरी महीने में हम लोग आते हैं. जुलाई महीने तक वापस उत्तर प्रदेश चले जाते हैं. किसानों के मुताबिक धारी वाले तरबूज का बीज 20 हज़ार रुपये किलो और हरे व काले तरबूज का बीज 30 हज़ार रुपये किलो मिलता है. क्यों नहीं सीख पा रहे स्थानीय किसान खेती बिहार का कोसी क्षेत्र यानी सुपौल, सहरसा, मधेपुरा और कोसी नदी से सटा अन्य कुछ जिला पलायन का गढ़ माना जाता है. यहां के अधिकांश लोग देश के साथ-साथ विदेश खासकर सऊदी अरब में भी मजदूरी करने जाते हैं. कोसी इलाके के किसान भी यूपी के किसानों से इस तरह की बेहतरीन वैकल्पिक कृषि के गुर सीख रहे हैं. कई किसान छोटे स्तर पर इसकी खेती करने लगे हैं. हालांकि, आज भी बहुत कम किसान इस तरह की खेती करने में दिलचस्पी दिखाते हैं. स्थानीय किसानों के मुताबिक सहरसा जिला में लगभग एक हजार से अधिक एकड़ ज़मीन पर तरबूज की खेती हो रही है. हालांकि, सरकार के द्वारा कोई भी आंकड़ा जारी नहीं किया गया है. तरबूज की खेती में स्थानीय लोगों की भागीदारी न के बराबर है. उत्तर प्रदेश से आये किसानों के मुताबिक इस इलाके में कई बार कृषि विभाग की टीम निरीक्षण के लिए आती है. वह उनसे खेती करने के तरीके के बारे में पता भी करती है. हालांकि, प्रशासन की तरफ से स्थानीय किसानों को किसी भी तरह की ट्रेनिंग नहीं दी जाती है. फोटो – सहरसा 03 – पौधे लगाने के बाद शीत से पौधा बचाने को लगाए प्लास्टिक. फोटो – सहरसा 04 – बालू में उपजा फल.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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