Amiyo Kumar Ghosh alias Gopa Babu in Constituent Assembly: झारखंड के पलामू जिले के अमिय कुमार घोष उर्फ गोपा बाबू ने संविधान सभा में मृत्युदंड को खत्म करने वाले संशोधन का विरोध किया था. भारत के संविधान को अंगीकार किये जाने की 75वीं वर्षगांठ पर आज (26 जनवरी 2025) हम आपको बतायेंगे कि गोपा बाबू ने सदन में क्या भाषण दिया था. गणतंत्र दिवस पर झारखंड और देश के लोगों को यह जानना चाहिए कि पलामू के लाल ने मृत्युदंड को खत्म करने संबंधी संशोधन का किन शब्दों में विरोध किया था. विरोध के पक्ष में कितनी तर्कसंगत बातें कहीं थीं. उन्होंने कहा था कि अगर मृत्युदंड के प्रावधान को खत्म करने के संशोधन को मंजूर कर लेंगे, तो सरकार के हाथ बंध जाएंगे. समाज में आतंक फैलाने वालों के खिलाफ वह ठोस कार्रवाई नहीं कर पाएगी. इसका अधिकार सरकार को होना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘मिस्टर लारी ने जो संशोधन पेश किया है, मैं उसका विरोध करता हूं. अगर सदन उस संशोधन को पास कर देता है और उसे संविधान में शामिल कर लेता है, तो हम हमेशा के लिए सरकार के हाथ बांध देंगे.’ अमिय कुमार घोष संविधान के ड्राफ्ट पर 30 नवंबर 1948 को नये कानून ‘आर्टिकल 11बी’ पर चर्चा में भाग लेते हुए सदन में बोल रहे थे. एचएच लारी के संशोधन का उन्होंने सदन में जमकर विरोध किया और अंतत: हाउस ने उस अमेंडमेंट को खारिज कर दिया.
असामाजिक तत्वों को नियंत्रित करने के लिए मृत्युदंड जरूरी – अमिय कुमार घोष
अमिय कुमार घोष ने संविधान सभा में कहा, ‘सर, यह सच है कि मृत्युदंड अमानवीय है. यह भी सच है कि जजों से गलती हो सकती है और बेगुनाह लोगों को सजा मिलने की आशंका बनी रहेगी, लेकिन हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि समाज में सिर्फ अच्छे ही लोग नहीं होते. बुरे लोग भी समाज में होते हैं. असामाजिक तत्व कभी भी किसी भी रूप में समाज को अस्थिर न कर सकें, इसके लिए सरकार को कई बार उन्हें सजा देने की जरूरत होगी. समाज में आतंक फैलाने वालों को नियंत्रित रखने के लिए सरकार को ऐसे कानून की जरूरत पड़ सकती है.’
इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) में संशोधन या अन्य कानूनों के जरिए हम ऐसा कर सकते हैं. जैसा कि मैंने पहले कहा कि परिस्थितिवश कई बार सरकार को ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई के लिए ऐसे कानून की जरूरत होगी. अगर हमने इस संशोधन को मंजूर करके संविधान में इसे शामिल कर लेंगे, तो सरकार के लिए संविधान संशोधन के बगैर ऐसा कानून बनाना मुश्किल हो जाएगा.
अमिय कुमार घोष, संविधान सभा के सदस्य
अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय करें – अमिय कुमार घोष
गोपा बाबू ने आगे कहा, ‘मुझे लगता है कि समाज और लोगों की चेतना विकसित होने और समाज के विकसित होने के साथ-साथ सरकार को इस कानून में बदलाव लाना चाहिए, लेकिन मृत्युदंड को खत्म करने की व्यवस्था संविधान में नहीं की जानी चाहिए. संविधान के इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) में हम यह कर सकते हैं कि अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित करें.’
‘अगर संशोधन पास कर दिया, तो सरकार के लिए कानून बनाना मुश्किल होगा’
अमित कुमार घोष ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘हम बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं. हमारे सामने कई गंभीर समस्याएं खड़ीं हैं. हर दिन नई परिस्थितियां उत्पन्न हो रहीं हैं. इसलिए यह संभव है कि आने वाले समय में सरकार को समाज को खतरे में डालने वाले अपराधियों को मृत्युदंड जैसी कठोर सजा देनी पड़े.’ अमिय बाबू ने आगे कहा, ‘सैद्धांतिक तौर पर मैं मानता हूं कि मृत्युदंड को खत्म कर देना चाहिए, लेकिन इसके लिए संविधान में कोई प्रावधान किया जाये, यह उचित नहीं होगा. अगर हम ऐसा करते हैं, तो यह सरकार के हाथ बांधने जैसा होगा.’
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…और मृत्युदंड के प्रावधान को खत्म करने संबंधी संशोधन खारिज हो गया
अमित कुमार घोष ने आगे कहा, ‘इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) में संशोधन या अन्य कानूनों के जरिए हम ऐसा कर सकते हैं. जैसा कि मैंने पहले कहा कि परिस्थितिवश कई बार सरकार को ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए ऐसे कानून की जरूरत होगी. अगर हमने इस संशोधन को मंजूर करके संविधान में इसे शामिल कर लिया, तो सरकार के लिए संविधान संशोधन के बगैर ऐसा कानून बनाना मुश्किल हो जाएगा.’ यह कहते हुए गोपा बाबू ने संविधान सभा में लारी के मृत्युदंड को खत्म करने संबंधी संशोधन का विरोध किया. इसके साथ ही लारी की ओर से संविधान सभा में पेश उस संशोधन को, जिसमें राजद्रोह को छोड़कर हिंसा से जुड़े अन्य मामलों में मृत्युदंड के प्रावधान को खत्म करने का प्रस्ताव किया गया था, को संविधान सभा ने खारिज कर दिया.
के हनुमंतैया और डॉ बीआर आंबेडकर ने भी चर्चा में भाग लिया
संविधान के ड्राफ्ट पर 30 नवंबर 1948 को हुई इस बहस में अमिय कुमार घोष उर्फ गोपा बाबू के अलावा के हनुमंतैया और डॉ बीआर आंबेडकर ने भी हिस्सा लिया था.
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