Beti Bachao Beti Padhao 10 Years : जैसे-जैसे देश विकसित भारत बनने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना का परिवर्तनकारी प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहा है. यह इस बात का प्रमाण है कि महिलाओं के विकास से महिला नेतृत्व में हुए विकास तक के सफर में हम कितना आगे आ गये हैं. स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘जब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होता, तब तक विश्व के कल्याण की कोई संभावना नहीं है. किसी भी पंछी के लिए महज एक पंख के साथ उड़ना संभव नहीं है.’ उनके इस कालजयी दृष्टिकोण से प्रेरित होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत में ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ (बीबीबीपी) योजना की शुरुआत की थी. इस ऐतिहासिक पहल का उद्देश्य भारत में गिरते बाल लिंग अनुपात (सीएसआर) पर ध्यान देना और यह सुनिश्चित करना था कि देशभर में बेटियों को वे सभी अवसर, देखभाल और सम्मान मिले, जिनकी वे हकदार हैं.
वर्ष 2011 की जनगणना में बाल लिंग अनुपात 918 होने के साथ सामाजिक पूर्वाग्रहों और नैदानिक उपकरणों के दुरुपयोग की चिंताजनक तस्वीरें सामने आयीं. एक लक्ष्य के साथ ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना को न केवल इस तस्वीर को बदलने के लिए शुरू किया गया, बल्कि एक ऐसे भविष्य की नींव भी रखी गयी, जहां महिलाएं नेतृत्व की दिशा में भी आगे बढ़ सकें. बीते एक दशक में इस योजना ने महत्वपूर्ण प्रगति की है. स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली के अनुसार, जन्म के समय राष्ट्रीय लिंग अनुपात 2014-15 के 918 से बढ़कर 2023-24 में 930 हो गया है.
संस्थागत प्रसव के मामले भी 2014-15 के 61 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 97.3 प्रतिशत हो गये हैं, जबकि पहली तिमाही में प्रसवपूर्व देखभाल पंजीकरण 61 प्रतिशत से बढ़कर 80.5 प्रतिशत हो गया है. माध्यमिक स्तर पर लड़कियों का सकल नामांकन अनुपात 2014-15 के 75.51 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 79.4 प्रतिशत हो गया. इसके अतिरिक्त, नवजात शिशुओं, बेटा-बेटी, के बीच शिशु मृत्यु दर में अंतर तकरीबन समाप्त हो गया है, जो उत्तरजीविता और देखभाल में समानता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है.
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ आंदोलन, आंकड़ों में सुधार की सीमा से कहीं आगे निकल गया है. इसने महिला सशक्तिकरण के मायने ही बदल दिये हैं. अक्तूबर 2023 में 150 महिला बाइकर्स द्वारा 10,000 किलोमीटर की यात्रा, यशस्विनी बाइक अभियान जैसी पहल, भारत की बेटियों के अदम्य साहस का प्रतीक है. वर्ष 2022 में कन्या शिक्षा प्रवेश उत्सव ने स्कूल न जाने वाली करीब 1,00,786 लड़कियों को फिर से स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया. कौशल विकास पर आधारित राष्ट्रीय सम्मेलन ने कार्यबल में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के महत्व पर जोर दिया, जिससे हम महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास के अपने दृष्टिकोण के और करीब आ पाये.
आज जब हम इस परिवर्तनकारी पहल के दस वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहे हैं, साफ है कि मिशन अभी समाप्त नहीं हुआ है. हमें यदि विकसित भारत के अपने सपने को साकार करना है, तो यह तय करना जरूरी है कि बेटियां राष्ट्र निर्माण के प्रयासों के केंद्र में हों. यह हमारे लिए निर्णायक कार्रवाई करने का समय है. हमें गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पीसीपीएनडीटी) अधिनियम 1994 के कार्यान्वयन को मजबूत करना, शिक्षा में ड्रॉपआउट दर को संबोधित करना, कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार करना और लड़कियों के जीवन के हर चरण में उन्हें आवश्यक सहायता देनी चाहिए.
वित्त वर्ष 2023-2024 के लिए, भारत में महिला श्रम बल की भागीदारी 41.7 प्रतिशत थी. हालांकि यह पिछले वर्षों की तुलना में महत्वपूर्ण वृद्धि है, लेकिन फिर भी यह पुरुषों की श्रम शक्ति भागीदारी के मुकाबले कम है. भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं अवैतनिक घरेलू देखभाल कार्य में शामिल हैं. हमारा प्रयास न केवल अधिक महिलाओं के लिए अपने घरेलू क्षेत्रों को छोड़कर घर से बाहर रोजगार करने के लिए परिवेश तैयार करना होना चाहिए, बल्कि एक वाजिब करियर और पेशे के तौर पर देखभाल कार्य को बढ़ावा देने के साधन भी बनाने चाहिए. ताकि जो महिलाएं देखभाल कार्य में प्रशिक्षित हैं, और इसे आगे बढ़ाना चाहती हैं, वे इसके जरिये वित्तीय लाभ हासिल कर सकें.
विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, कार्यबल लिंग में अंतर को कम करने से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 20 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है. भारत के लिए यह केवल एक अवसर नहीं, आवश्यकता है. महिलाओं के नेतृत्व वाला विकास, एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने और 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए जरूरी है. प्रधानमंत्री मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में आज हम ऐतिहासिक बदलाव देख रहे हैं. महिला विकास से लेकर महिला नेतृत्व वाले विकास तक, भारत की बेटियां चेंज मेकर, उद्यमी और नेता के रूप में उभर रही हैं. वे अपनी सफलता की कहानी की नायिका खुद हैं.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)