चाईबासा.ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कोल विद्रोह की साक्षी रही ऐतिहासिक सेरेंगसिया घाटी में हर साल 02 फरवरी को शहीद दिवस मनाने की परंपरा करीब 42 वर्ष पूर्व शुरू हुई थी. इसकी शुरुआत डॉ देवेंद्रनाथ सिंकू नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता ने अपने कुछ समर्थकों के साथ की थी, लेकिन बाद में वे गुमनाम रहे. वे हाटगम्हरिया प्रखंड के जामडीह गांव के रहनेवाले थे और वे एकीकृत बिहार में सेलटैक्स के असिस्टेंट कमिश्नर के पद पर कार्यरत थे.
उन्होंने पटना से पीएचडी की पढ़ाई भी की थी. चूंकि ऐतिहासिक और सामाजिक कार्यों में उनकी रुचि थी, लहाजा उन्होंने अभियान चलाकर लोगों को गुमनामी के अंधेरे में खो चुके सेरेंगसिया युद्ध की याद ताजा करायी. इसके साथ ही शहीदों की विस्मृत कुर्बानी को याद रखने के लिये प्रतिवर्ष सेरेंगसिया घाटी में शहीद दिवस मनाने के लिये भी उन्होंने आह्वान किया था. इसके लिये उन्होंने कई गांवों में जनजागरण अभियान भी चलाया था. उन्होंने शहीद स्मारक समिति भी बनायी थी. ताकि शहीदों को नमन करने के लिए कार्यक्रम किया जा सके.घाटी में यहां सात शहीदों के स्मारक बनाये
उस दौरान 1982 में पारंपरिक तरीके से सेरेंगसिया घाटी में सार्वजनिक रूप से शहीद दिवस मनाने की शुरुआत हुई. शहीद दिवस पर फुटबॉल टूर्नामेंट समेत मेले का भी आयोजन होने लगा. मौजूदा समय में घाटी में यहां सात शहीदों के स्मारक बनाये गये हैं, जिनमें पोटो हो, बेड़ाई हो, पुंडुवा हो, बेराई हो, नारा हो, देवी हो व सुगनी हो के नाम शामिल हैं.पोटो हो ने इसी घाटी में अंग्रेजी हुकूमत को दी थी कड़ी टक्कर
गौरतलब है कि सन 1837 में इसी सेरेंगसिया घाटी में पोटो हो की अगुवाई में आदिवासी समुदाय के विद्रोहियों ने तीर-धनुष से सशस्त्र अंग्रेजी सैनिकों पर हमला किया था. पोटो हो, पोटो हो, बेड़ाई हो, पुंडुवा हो, बेराई हो, नारा हो, देवी हो व सुगनी हो के साथ मिलकर लड़ाकों ने अंग्रेजी हुकूमत को कड़ी टक्कर दी, जिससे उनके दांत खट्टे हो गये थे.अंग्रेजों को नाको चने चबवाने को किया था विवश
शहीद स्मारक के बाहर लगे बोर्ड में युद्ध अंकित वर्णन के अनुसार उस युद्ध में सौ से ज्यादा अंग्रेजी सैनिक मारे गये थे, जबकि विद्रोहियों की ओर से 26 आदिवासी लड़ाके शहीद हुए थे. कहा जाता कि पोटो हो ने इस युद्ध में छापामार युद्धकला का उपयोग कर अंग्रेजों को नाको चने चबवाने पर विवश कर दिया था. हालांकि बाद में उनको समर्थकों के साथ पकड़ लिया गया था व जगन्नाथपुर में एक पीपल के पेड़ में उन्हें फांसी की सजा दी गयी थी. तब यह इलाका बंगाल प्रेसिडेंसी के अधीन आता था. आज इस घाटी में शहीद दिवस पर श्रद्धांजलि देने व नमन करने के लिये कोल्हान समेत पड़ोसी राज्य ओडिसा के सीमावर्ती इलाकों से भी पहुंचते हैं.डीएमएफटी फंड से हुआ था शहीद स्मारक का सौंदर्यीकरण
सेरेंगसिया घाटी शहीद स्मारक का सौंदर्यीकरण 2022 में डीएमएफटी फंड से 76 लाख 87 हजार 169 रुपये से किया गया था. निर्माण कार्य का शिलान्यास सांसद गीता कोड़ा व विधायक दीपक बिरुवा ने संयुक्त रूप से किया था. वहीं, इस योजना का क्रियान्वयन लघु सिंचाई प्रमंडल ने किया था.
स्मारक की हो रही सफाई, बिछाये जा रहे पेवर्स ब्लाॅक
आगामी 02 फरवरी को होनेवाले शहीद दिवस समारोह को देखते हुए शहीद स्मारक की साफ सफाई व रंगरोगन का कार्य चल रहा है. स्मारक की चहारदीवारी के बाहर पेवर्स ब्लॉक भी बिछाये जा रहे हैं. लोहे की जालियां लगायी जा रही हैं. फुटबॉल टूर्नामेंट व मेला आयोजित करने की भी तैयारी है.
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