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Budget 2025: निर्मला सीतारमण पहनी बिहार से गिफ्ट में मिली साड़ी, जानिए किस महिला का निभाया वादा

Budget 2025: देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज शनिवार को आठवां बजट पेश करने वाली हैं. इस मौके पर वे मधुबनी कला और पद्म श्री विजेता दुलारी देवी के कौशल और प्रतिभा के सम्मान में उनकी दी हुई साड़ी पहनी हैं.

Budget 2025| Nirmala Sitharaman Saree gifted by bihar: देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज शनिवार को आठवां बजट पेश करने वाली हैं. यह मोदी 3.0 का पहला पूर्ण बजट है. इस मौके पर वित्त मंत्री द्वारा पहनी गई साड़ी बहुत ही खास है. मिली जानकारी के अनुसार, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण मधुबनी कला और पद्म श्री विजेता दुलारी देवी के कौशल और प्रतिभा के सम्मान में यह साड़ी पहनी हैं.

बता दें कि दुलारी देवी 2021 की पद्म श्री पुरस्कार विजेता हैं. जब वित्त मंत्री मिथिला कला संस्थान में क्रेडिट आउटरीच प्रोग्राम में मधुबनी गईं थी तो उनकी मुलाकात दुलारी देवी से हुई थी. बिहार में मधुबनी कला पर दुलारी देवी के साथ वित्त मंत्री का सौहार्दपूर्ण विचारों का आदान-प्रदान हुआ. दुलारी देवी ने वित्त मंत्री को साड़ी भेंट की और बजट के दिन इसे पहनने के लिए कहा. उन्हीं के सम्मान में निर्मला सितारमण आज बजट के दिन यह साड़ी पहनी हैं.

दुलारी देवी को 2021 में मिला था पद्म श्री

दुलारी देवी ने साड़ी गिफ्ट देते समय कहा था कि ‘बजट वाले दिन इसे आप पहनिएगा. आज हाफ शोल्डर रेड ब्लाउज के साथ वित्त मंत्री ने वही साड़ी पहनी है. दुलारी देवी मधुबनी जिले के रांटी गांव की रहने वाली हैं और उन्हें 2021 में पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. मधुबनी पेंटिंग में उनके योगदान को लेकर केंद्र सरकार ने उन्हें यह सम्मान दिया था.

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मधुबनी के रांटी गांव में एक मछुआरा परिवार में हुआ था जन्म

दुलारी देवी का जन्म 27 दिसंबर 1967 को मधुबनी के रांटी गांव में एक मछुआरा परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम मुसहर मुखिया और मां का नाम धनेश्वरी देवी था. पिता और भाई परीक्षण मुखिया मछली पकड़ने का काम करते थे जबकि मां खेतिहर मजदूर थीं. घर की माली हालत बहुत खराब थी, लिहाजा नन्हीं दुलारी ने जल्दी ही घर की जिम्मेदारियों में माता-पिता का हाथ बंटाना शुरू कर दिया था.

दुलारी देवी कचनी शैली में करती हैं पेंटिंग

दुलारी देवी मिथिला पेंटिंग की कचनी शैली में पेंटिंग करती हैं और उन्होंने पौराणिक या मिथिकीय आख्यानों या राजा सहलेस की कहानियों की जगह मछुआरों और किसानों के जीवन को अपनी पेंटिंग में उतारा है. अपनी पेंटिंग में ग्रामीण परिवेश और उसकी समसामयिक चुनौतियों को जगह देने का अलहदा प्रयोग शुरू किया है. जिसने उन्हें मिथिला पेंटिंग में सबसे अलग पहचान दिलाई है.

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