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पूर्णिया कॉलेज में 30-31 जनवरी को हुए नेशनल सेमिनार पर छाया विवाद

सेमिनार के बारे में जागरूक करने में कोताही का आरोप

– प्रोन्नति व वेतनमान का लाभ देने के लिए प्राध्यापकों और कर्मियों को बड़ी संख्या में सेमिनार में शामिल करने का आरोप – सामान्य शोधार्थियों को सेमिनार के बारे में जागरूक करने में कोताही का आरोप – सह समन्वयक ने कहा- सारे आरोप बेबुनियाद, सभी कॉलेजों की रही सहभागिता पूर्णिया. पूर्णिया कॉलेज में बीते 30-31 जनवरी को हुए नेशनल सेमिनार को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. आरोप है कि नेशनल सेमिनार से जानबूझकर सामान्य शोधार्थियों और छात्रों को दूर रखा गया. जबकि विवि और कॉलेज के प्राध्यापकों और कर्मियों को बड़ी संख्या में शामिल किया गया ताकि उन्हें प्रोन्नति और वेतनमान का लाभ मिल सके. हालांकि सेमिनार की आयोजन कमेटी ने इन आरोपों को पूरी तरह से नकार दिया है. इस संबंध में सेमिनार के सह समन्वयक प्रो. सुनील कुमार ने बताया कि पूर्णिया कॉलेज में 2007 के बाद कोई राष्ट्रीय सेमिनार हुआ है. इसमें सभी कॉलेज को प्रतिनिधित्व मिला है. अन्य यूनिवर्सिटी की भी भागीदारी हुई. इधर, पीएचडी शोधार्थी व भाजयुमो जिलाध्यक्ष रवि गुप्ता ने बताया कि पूर्णिया विवि के सामान्य शोधार्थियों को इस नेशनल सेमिनार के प्रति जागरूक किया जाता तो वे भी इस सेमिनार में जरूर भाग लेते हैं. आखिर पास के नेशनल सेमिनार को छोड़कर दूरदराज के विवि में नेशनल सेमिनार में भाग लेने की परेशानी कोई क्यों मोल लेगा गर उसे पास के नेशनल सेमिनार के बारे में जानकारी हो. उन्होंने आरोप लगाया कि सेमिनार में भाग लेनेवाले अधिकांश प्राध्यापकों व कर्मियों ने उस दिन कार्यालय अवधि में अपने-अपने कार्यस्थल पर हाजिरी बनायी और काम भी किया. ऐसे में इस बात की जांच होनी चाहिए कि असलियत में वे सेमिनार में थे या रस्मपूर्ति करने सेमिनार में गये थे. उन्होंने बताया कि इस बात की जांच विश्वविद्यालय और कॉलेज में लगे सीसीटीवी से आसानी से हो सकती है. नेशनल सेमिनार के लिए उन्होंने पूर्णिया कॉलेज के सेमिनार हॉल की क्षमता पर भी सवाल उठाए. पीएचडी शोधार्थी व भाजयुमो जिलाध्यक्ष रवि गुप्ता ने आरोप लगाया कि सेमिनार के संचालन के दौरान सेमिनार हॉल में अनावश्यक की आवाजाही हो रही थी. बीच से ही शिक्षक व कर्मी उठकर अपने काम पर जा रहे थे. ना केवल उदघाटन सत्र बल्कि दोनों दिन के सत्रों में ऐसी स्थिति देखी गयी. सेमिनार के दौरान कोई मोबाइल पर बात कर रहा था तो कोई आपस में ही. ऐसे में बाहर से आये वक्ता भी असहज हो गये. एकाध बार तो अपनी स्पीच रोककर उन्होंने चेयरपर्सन का भी ध्यान आकृष्ट कराया. इस प्रकार के सेमिनार आयोजित कर शाबाशी लेना काफी दुर्भाग्यपूर्ण है.

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