राजगीर. नालंदा विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक अध्ययन विभाग द्वारा ग्रीक इतिहास, साहित्य और संस्कृति पर विशेष व्याख्यानों का आयोजन किया गया. इस शैक्षणिक आयोजन में ग्रीस के अरस्तू विश्वविद्यालय (थेसालोनिकी) के प्रतिष्ठित विद्वानों ने हिस्सा लिया और ग्रीक सभ्यता की समृद्ध विरासत और इसकी वैश्विक ऐतिहासिक धरोहर, खासकर भारतीय संस्कृति से जुड़े पहलुओं पर चर्चा की. इस अवसर पर ग्रीक गणमान्य अतिथियों ने श्याम सुंदर राव द्वारा लिखित एक पुस्तक का विमोचन भी किया. कार्यक्रम की शुरुआत नालंदा विश्वविद्यालय के परिचयात्मक वीडियो की स्क्रीनिंग से हुई. इसके बाद, ऐतिहासिक अध्ययन विभाग के प्रो. कश्शाफ ग़ानी ने अतिथियों का परिचय कराया और उनके अभिनंदन समारोह का आयोजन किया. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अभय कुमार सिंह ने प्राचीन भारत-ग्रीस के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों पर जोर देते हुए कहा, इन दोनों महान सभ्यताओं ने एक-दूसरे को न सिर्फ समझा, बल्कि समृद्ध भी किया और पूरी दुनिया की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध बनाया. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि नालंदा विश्वविद्यालय में जल्द ही इंडिया-ग्रीस स्टडीज़ सेंटर ” की स्थापना की जाएगी. विशेष व्याख्यानों में ग्रीक विचारधारा, साहित्य और सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के विकास पर चर्चा हुई, जिनका वैश्विक बौद्धिक परंपराओं पर गहरा प्रभाव रहा है. प्रो. एंजेलिकी ज़िआका ने ग्रीस में हिंदू और बौद्ध धर्म का ज्ञान ” विषय पर अपना व्याख्यान दिया, जिसमें प्राचीन धार्मिक संवादों के पहलुओं को उजागर किया. प्रो. शैकर मूसा ने “ग्रीक साहित्य में पूर्वी प्रभाव: प्राचीन और आधुनिक ग्रीक ग्रंथों की समीक्षा विषय पर गहराई से प्रकाश डाला और बताया कि कैसे भारतीय और पूर्वी दर्शन ने ग्रीक साहित्य को प्रभावित किया. प्रो. इओआना नाउम ने कॉन्स्टेंटिनोस थियोटोकीस: एक ””””आकर्षित”””” आधुनिक लेखक – सांस्कृतिक समन्वय और सामाजिक चिंताएं ” विषय पर चर्चा की, जिसमें आधुनिक साहित्य में क्रॉस-कल्चरल प्रभावों की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया गया. इन व्याख्यानों के बाद एक रोमांचक चर्चा और प्रश्नोत्तर सत्र हुआ, जहां फैकल्टी और छात्रों ने वक्ताओं के साथ अपने विचारों का आदान-प्रदान किया, जिससे गहन अकादमिक संवाद को बढ़ावा मिला. कार्यक्रम का समापन स्कूल ऑफ इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट स्टडीज के प्रो.. किशोर धवाला द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ. नालंदा विश्वविद्यालय वैश्विक अकादमिक साझेदारी के माध्यम से सार्थक संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है. ऐसे आयोजन इसकी इतिहास और सांस्कृतिक अध्ययन के केंद्र के रूप में भूमिका को और मजबूत करते हैं और इसे एक अंतर-सांस्कृतिक ज्ञान के केंद्र के रूप में स्थापित करते हैं.
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